शुक्रवार, 14 मार्च 2014

रुक जा ओ अंधी दौड़ के राही,,,

‘’...जैसे हमके मारअ तारअ उहे मार खईबअ
हमरा जइसन बबुआ एक दिन बुढ होई जईब.’’  
हमारे कंपार्टमेंट में बहुत शोर हो रहा था लेकिन उस शोर को भी निशब्द कर रही इस भोजपुरी गीत की मार्मिकता आधुनिकता की चपेट में आकर अपनी विरासत को ताक पर रख रही  वर्तमान समाज का घिनौना रूप प्रदर्शित कर रही थी| इस गीत के श्रवण पटल पर दस्तक देते ही मेरी आँखों के सामने एक दिन पहले के समाचार पत्र का वह खबर घूम गया जिसमे एक बुजुर्ग दम्पती अपने ही बेटे के खिलाफ शिकायत करने पुलिस कप्तान के पास पहुंचे थे| उस बुजुर्ग दम्पती के बदन पर चोट के निशान मानवता को भी शर्मसार कर रहे थे| यह सत्य है कि उन बुढी आँखों से बहते आंसू जो आँखों की गहराई को भी मात नहीं दे पा रहे थे, उस कुपूत के लिए समुद्र की सुनामी का काम करेंगे जो अपने जन्मदाता को ही आंसू बहाने पर विवश कर रहा है| हम अनुमान नहीं लगा सकते कि उस माँ का दिल कितना बड़ा होगा जिसने उसे दुःख के सागर में धकेलने वाले बेटे के लिए ही पुलिस कप्तान से कहा कि सर वो अबोध है उसे समझा दीजियेगा मारियेगा मत| कुपात्र बेटे के लिए भी एक माँ के मुंह से निकले ऐसे बोल इस बात की ताईद करते है कि ‘’पुत्र कुपुत्र सुने है पर ना माता सुने कुमाता|’’
एक अंगरेजी पत्रिका द्वारा 91 देशो में किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है कि बुजुर्गो की सुरक्षा के दृष्टिकोण से भारत का स्थान 73वा है| रिपोर्ट के मुताबिक, बुजुर्गो  के रहने के लिए सबसे बेहतर देश स्वीडन है, उसके बाद नार्वे व र्जमनी का नंबर आता है|
लानत है आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल उन लोगो को जो सिरडी  जाना तो नहीं भूलते लेकिन उस हस्ती को ही भूल जाते है जिसने उन्हें दुनिया देखने की ताकत दी| विरासत और सभ्यता संस्कृति के लिए प्रख्यात  भारत भूमी, और श्रवण कुमार जैसे बेटे को जन्म देनी वाली भारत भूमी का यह दुर्भाग्य है कि आज इसे भी वृद्धाश्रमकी संस्कृति से रूबरू होना पड़ रहा है| बेटे के सुखद भविष्य के सपने को साकार करने के लिए तमाम तरह के कष्ट उठाने वाले माता-पिता को अपनी जिन्दगी के अवसान में बुढापे के सहारे के लिए किसी न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है, तो यह इस अक्षुण पारिवारिक व्यवस्था की कमजोर नीव की तरफ इशारा कर रहा है| विश्व की सबसे महान और पुरानी सस्कृति पर हावी इस कुसंस्कृति का विलोप नहीं हुआ तो सुरसा की भांती मुह फैलाए खड़ी यह समस्या एक दिन भारतीय सांस्कृतिक विरासत को ही निगल जाएगीजवानी के जोश में अपने जन्मदाता को ही आंसू बहाने पर मजबूर करती उन बलिष्ट भुजाओ के लिए किसी कवि की यह पंक्तियाँ सार्थक है कि,
''ना रहो युवाओं अमर जवानी के भ्रम में,
क्यों कुदरत के नियम को झुठला रहे हो ?
किसके कन्धों का कहो तुम लोगे सहारा,
जो आज जवानी के जोश में इठला रहे हो.

शनिवार, 8 मार्च 2014

मै नारी हूँ.

उस दिव्य पुंज को 'अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस' की हार्दिक शुभकामनायें जिसे हवा के लाख थपेड़े भी कभी बुझा ना सके हैं,,और जो आदिकाल से ही पुरे जग को दीप्तमान करती आ रही है| 



मै नारी हूँ,
नर की जननी हूँ,
जग की धरणी हूँ,
दुःख की हरणी हूँ,
सुख की करणी हूँ,
मै नारी हूँ,
ममता की आशा हूँ,  
दुःख की दिलाशा हूँ,
प्यार की पिपासा हूँ,  
सबके लिए सुवासा हूँ,
मै नारी हूँ,
जख्म मिले जितने भी,
हंस के मै सहती हूँ,
जितने भी हलाहल मिले,
अमृत समझ मै पीती हूँ,
मै नारी हूँ,
कोइ जिसे समझे ना,
ऐसी मै नीति हूँ,
कोइ जिसे मानता नहीं,
ऐसी एक रीति हूँ,
मै नारी हूँ,,,
महक जिससे आ ना सके,
ऐसी एक चन्दन हूँ,
जिसमे सर्वथा ही अंजन है,
ऐसी मै 'निरंजन' हूँ,    
मै नारी हूँ,,,,|