मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

नकल की तस्वीरों से ना आंकी जाय बिहारी प्रतिभा

बीते 22 मार्च को जब बिहार दिवस के अवसर पर राज्य में चहुँ ओर सांस्कृतिक कार्यक्रम लोगो को मंत्रमुग्ध कर बिहारी होने के अहसास पर इठलाने को मजबूर कर रहे थे उसी दिन समूचा देश मीडिया के माध्यम से बिहार की एक अलग छवि का विश्लेषण कर रहा था | हालाँकि यह विश्लेषण बिहार की विलक्षण प्रतिभा पर प्रश्न चिन्ह लगाने को काफी था | किसी माननीय के मुख से यह बोल निकले तो शायद ब्रेकिंग न्यूज की शक्ल अख्तियार कर ले परन्तु इस सत्य से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि कम या ज्यादा भारत का हर सूबा परीक्षा में नकल की महामारी से ग्रसित है | लेकिन वैशाली के महनार में विद्यानिकेतन की बिल्डिंग पर लटके नक़ल कराने वालो की हुजूम ने बिहार के साथ परीक्षा में नक़ल के संबंधो को एक अलग रूप में पेश किया और मीडिया में जंगल की आग की तरह फ़ैली इस खबर पर घी का काम किया हमारे सियासतदानो के गैर जिम्मेदाराना बयान ने | ‘पुलिस चाह दे तो किसी मंदिर के सामने से कोइ चप्पल भी चोरी नहीं कर सकता है’ सिंघम फिल्म के इस डायलॉग की सत्यता बिहार के शिक्षा मंत्री के बयान की भेंट चढ़ गई जब उन्होंने नक़ल को रोक पाने में अपनी असमर्थता जाहिर कर दी | हद तो तब हो गयी जब पीके शाही जी ने यह कह दिया कि, ‘अपने ही लोगो पर गोलियां थोड़े न चलवा सकते हैं |’ मंत्री जी भी जानते ही होंगे कि प्रशासन की कामयाबी सिर्फ बन्दूको और गोलियों की मोहताज नहीं होती | ‘बिहार में मैट्रिक की परीक्षा में नक़ल की जो तस्वीर सामने आई है मैं उनके प्रत्येक पहलु के विरुद्ध हूँ | इन तस्वीरों में पूरे बिहार की कहानी नहीं है | बिहार के छात्र मेधावी हैं और देश दुनिया में अपनी प्रतिभा से अपनी जगह बनाते रहे हैं | नक़ल की कुछ तस्वीरें बिहार की प्रतिभा पर हावी नहीं हो सकती |’ अपने इस बयान में बिहारी प्रतिभा का कुछ ठीक ठीक मूल्यांकन तो कर दिया मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लेकिन बिहार की इस बदरंग तस्वीर पर सूबे के मुखिया की जो तल्खी दिखनी चाहिए थी वह नदारद थी | 
नालंदा विश्वविद्यालय के माध्यम से पूरे विश्व में ज्ञान का अलौकिक प्रकाश फैलाने वाला बिहार, भगवान् बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति की धरती बिहार और अपनी विलक्षण प्रतिभा की उपज से देश-विदेश में एक अलग पहचान बनाने वाला बिहार शायद और भी शर्मिन्दा हो गया होगा जब पूर्व मुख्यमंत्री ‘लालू यादव’ ने यह कहा कि हमारे समय में तो बच्चे किताब देख कर लिखा करते थे |’
माननीयों के गैर जिम्मेदाराना बयानों की फेहरिस्त ही वह कारण बनी कि कई राज्यों में नक़ल की तस्वीरों पर बिहार में नक़ल की खबर हावी हो गयी | कई टीवी चैनल और अखबारों के स्तम्भ बिहारी प्रतिभा का पुनर्मूल्यांकन करते दिखे | हालाँकि इस पुनर्मूल्यांकन को भी गैर  वाजिब नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि बिहार के प्रशासनिक अमले का ढुलमुल रवैया और अभिभावकों की शर्मनाक हरकत ने ही लोगो को मौक़ा दिया कि वे बिहार की प्रतिभा पर प्रश्न चिन्ह लगा सके | वैशाली, पटना, हाजीपुर, समस्तीपुर, छपरा, सिवान, गोपालगंज सहित कई और जगहों पर पुलिस वाले ही पैसे लेकर बच्चों तक पर्चे पहुंचाते देखे गए | पढाई के समय बच्चों पर ध्यान ना दे कर परीक्षा के समय दिवाल पर चढ़ के किसी भी तरह से अपने लाडलो को पास कराने की जुगत में जुटे अभिभावकों का भी एक अशोभनीय रूप दिखा बिहार की मैट्रिक परीक्षा के समय | सारण में एक परीक्षा केंद्र पर नक़ल रोके जाने से नाराज अभिभावकों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी तो वही हाजीपुर में जब बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष लाल्केश्वर प्रसाद और सचिव श्रीनिवास महनार ने परीक्षा में कड़ाई करने का निर्देश दिया तो उन्हें भी अभिभावकों का कोपभाजन बनना पड़ा | गला काट प्रतियोगिता के इस युग में नक़ल के सहारे बच्चों को पास कराने के लिए खुद के जान की बाजी लगाने वाले अभिभावक भी शायद इस प्रश्न के उत्तर से भली भाँती वाकिफ होंगे कि, वे अपने लाडले के उज्जवल भविष्य का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं या उनके लिए अंधकारमय कल का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं ?