सोमवार, 8 अक्तूबर 2018

यह पराश्रित होने की पीड़ा है

'अंगना में माई रोए ली,
दुअरा पर लोग बिटोराइल बा,
मेहरी बेहोश भइली गिर के धड़ाम से,
भूअरा के डेड बॉडी आइल बा आसाम से...'

...तब तक मेरे मन में यही धारणा थी कि ताबूत में बंद होकर बाहर से आना वाला हर शव दुश्मन के हाथों 'शहीद' हुए जवानों का होता है, तब नहीं पता था कि जवान सिर्फ देश की सीमा पर नहीं मरते, राज्यों के भीतर की सीमारेखा भी उन्हें काल का ग्रास बना सकती है... राजनीति के निठल्लेपन से उपजी बेरोजगारी और पलायन के पीड़ा बन जाने की दारुण दशा से अपना पहला साक्षात्कार उपर्युक्त भोजपुरी गीत के माध्यम से ही हुआ था। तब असम में बिहारियों को पीटा जा रहा था। अपनों की खुशी के लिए घर छोड़ पराया हुए लोग ताबूत या बोरे में बंद होकर आ रहे थे या फिर घायल अवस्था में। कुछ दिनों तक सब ठीक रहा, हम बाल्यकाल से किशोरावस्था में प्रवेश किए और बिहारियों पर होने वाले जुल्म ने भी प्रदेश बदल लिया, यह दौर था मराठी अस्मिता की आग में बिहारियों के हवन का। हमारे रहनुमाओं और हमने तब आवाज बुलंद की होती, तो फिर किसी ठाकरे के बाद किसी ठाकौर की मजाल नहीं होती ऐसा करने की। हमने समझा ही नहीं कि जो बिहारी बाहुबल गुजरात और महाराष्ट्र की तरक्की को धक्का दे सकता है, वो बिहारियों पर उठने वाले हाथों को भी मरोड़ने की कूवत रखता है। न हमने यह समझा और न सियासत ने हमें यह समझने दिया। वैसे यह समस्या सियासी और बेरोजगारी से ज्यादा पराश्रित होने की है, हम दूसरों के भरोसे खुद को सौंपकर निश्चिंत हो जाते हैं। 
याद कीजिए, जब नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 'जब एक बिहारी गुजरात जाता है, तो तब तक उसकी माँ चिंतित रहती है, जब तक वो गुजरात की सीमा पर प्रवेश नहीं कर जाता...' क्या उस समय किसी ने आवाज़ उठाई कि हम बिहारी गुजरात जाएं ही क्यों, आप हमें हमारे घर में ही कमाई के साधन क्यों नहीं मुहैया करा सकते...? ये पूछने की बात छोड़िए, जहां पर मोदी ने यह बात कही थी वहीं पर बंद चीनी मिल को लेकर भी यह कहा था कि अगली बार आऊंगा तो इस चीनी मिल की चीनी की चाय पीकर जाऊंगा। मोदी उस जगह दोबारा गए, लेकिन वो चीनी मिल आज भी बंद है। मोदी के उस दोबारा हुए दौरे पर बंद चीनी मिल को लेकर चूं तक नहीं करने वाले लोगों ने ही गुजरातियों को हौसला दिया कि वे हम बिहारियों को पीट सकें, क्योंकि उन्हें समझ आ गया है कि जो अपने घर में अपने हक के लिए आवाज़ नहीं उठा सकते, वो लौटकर तो यही आएंगे। यह बात गुजराती भली भांति जानते हैं, वो चाहे बिहारियों को पीटने का खुला एलान करने वाला गुजरात में बैठा बिहार कांग्रेस का प्रभारी हो, या बिहार के भरोसे अगली बार फिर प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब पाले देश की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठा व्यक्ति। मतलब हद है कि विरोधी पार्टी के शासन वाले राज्य में हुई एक बस दुर्घटना पर भी कई ट्वीट करने वाले हमारे प्रधानमंत्री ने 50 लाख बिहारियों के अपने गृह राज्य से मारपीटकर खदेड़े जाने पर एक ट्वीट तक नहीं किया...

'NRC से पहले कर दिया SRC बहाल
वडनगर के संत तूने कर दिया कमाल...'

*SRC- State Register of Citizens