शनिवार, 4 जनवरी 2014

ये जीडीपी क्या है?

कल शाम मै मेट्रो में यात्रा कर रहा था, मेट्रो में दो सज्जन आपस बात कर रहे थे, बातचीत प्रधानमंत्री जी के प्रेस कांफ्रेंस से संबंधित थी| एक आदमी जो शायद प्रधानमंत्री जी का प्रेस कांफ्रेंस नहीं देख या सुन पाया था दूसरे से पूछा कि प्रधानमंत्री जी ने क्या बोला?  ''अरे बोलेंगे क्या,यह विश्व का आठवा अजूबा ही है कि 'मनमोहन सिंह' जैसा आदमी भी प्रधानमंत्री के रूप में 10 साल पूरा करने जा रहा है, दूसरे आदमी ने कहा| एक तो यूपीए-2 में यह प्रधानमंत्री जी का चौथा प्रेस कांफ्रेंस था और बोले भी तो अंग्रेजी में, क्या विवशता है, एक हिंदी भाषी राष्ट्र का प्रधानमंत्री भी प्रेस कांफ्रेंस को अंग्रेजी में संबोधित करता है| चैनल पर निचे हिंदी में लिख कर आ रहा था मै उसे ही देख कर समझा, वैसे उन्होंने कुछ बातें हिंदी में भी की| तुम जानते हो यह जीडीपी क्या होता है? उन्होंने कहा कि हमारे कार्यकाल में जीडीपी 9 फीसदी तक पहुँच गई| दुइरे आदमी ने जबाब दिया, हमें जीडीपी से क्या मतलब, हम पर तो इंद्र भगवान की कृपा दृष्टि बनी रहे और माल-मवेशी आबाद रहे, उनके खाद-पाने की बदौलत अपना फसल लहलहा जाय फिर हमें इस प्रधानमंत्री के भाषण बाजी से क्या लेना देना, अगर 'देह में पैसा ना फूंकना होता' तो इस अमीरो की दिल्ली का दर्शन भी ना करते|''

दोनों की बातचीत भोजपुरी में हो रही थी, मेरा गंतव्य स्थान आ चुका था अतः मुझे जाना पड़ा| लेकिन उनकी बातचीत ने यह तो साबित कर दिया कि आज आजादी के 67 साल बाद भी एक किसान इंद्र भगवान की पानी और मवेशियों के खादर-गोबर की बदौलत खेती करता है| विश्व के सबसे बड़े अर्थशास्त्री का 10 सालों तक भारत का निजाम बने रहने का क्या फायदा जब आज भी गांवो के लोग जीडीपी का मतलब नहीं समझ सके| मै भी एक गांव से ताल्लुक रखता हूँ और अच्छी तरह से समझता हूँ कि वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण के दम पर विकाश के शीशमहल की बात करने वाले प्रधानमंत्री जी के गाँवो की हकीकत क्या है? अगर दो तीन लोगों को छोड़ दें तो आजादी के बाद से अब तक भारत के हर हुकमरान ने अपनी विदाई के समय जिन मुद्दों पर अपनी विवशता प्रकट की उन्ही समस्याओं को 'मनमोहन सिंह जी' ने भी दोहराया| प्रधानमंत्री जी ने कहा कि, 'रोजगार, फल-सब्जियों के दाम और भ्रष्टाचार' कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनपर हम ठीक ढंग से काम नहीं कर पाएं| उनसे पूछा जाना चहिए था कि आपने ठीक ढंग से किया ही क्या है?, इन तीन मुद्दों को छोड़ भी दें तो आज भी हमारी गाँवो में लोग दिए की लौ के साथ बच्चों के भविष्य को प्रकाशित करने में प्रयासरत हैं| गांवो तक विकाश पहुंचाने की बात करने वाले प्रधानमंत्री जी और उनकी सरकार को पता होना चाहिए कि रील लाइफ का हर जादू रियल लाईफ में कारगर नहीं होता है| फ़िल्मी पर्दों पर लोगों के द्वारा वाह-वाही लूटने वाली अभिनेत्री को तो इन लोगों ने शौचालय के प्रति जागरूकता फैलाने का काम सौंप दिया लेकिन ये भूल गए कि जागरूकता रूपी गाड़ी बिना पैसे के पहिए के गंतव्य तक नहीं पहुँच सकती है, और क्योंकि 'पैसे पेड़ पे नहीं लगते' इसलिए आज भी गांवो में लोग खुले में शौच को जा रहे हैं| यूपीए कुनबा का हर नेता अपनी वाह-वाही में मनरेगा की बात करना नहीं भूलता, लेकिन अपने उस पूर्वज की बात भूल जाता है जिन्होंने कहा था कि, 'मै 1 रूपये भेजता हूँ तो 20 पैसा आम आदमी के पास पहुंचता है|' अफ़सोस कि यह बात आज भी सार्थक है| दिल्ली से लेकर ग्राम पंचायत तक बाबुओ के बीच के बंदरबांट में मनरेगा का कितना पैसा गांवो तक पहुंचता है, कितना काम ट्रैक्टर-जेसीबी करते हैं और कितना काम हाथ में कुदाल लिए मजदुर करता है, इसकी वास्तविकता का पता 10 जनपथ या हवाई सर्वेक्षण से नहीं चलेगा| जिस राहुल गांधी जी को उन्होंने 2014 में कमान सौंपे जाने की वकालत की उन्हें इस वास्तविकता से रुबरु हो जाना चाहिए कि अमेठी में अब मामला 'युवराज बनाम कविराज' का हो गया है| इस बार दलित की झोपडी में घुसकर सुखी रोटी चबा लेने भर से वे दलित के दिल में अपने लिए जगह बना पाने में कामयाब नहीं हो सकेंगे| प्रधानमंत्री जी की एक बात मुझे अजीब लगी जब उन्होंने कहा कि बहुत से घोटाले यूपीए-1 में और हुए उसके बाद भी जनता ने हमें चुनकर भेजा| यानि आप जम्हूरियत का मजाक उड़ा रहे हैं कि जनता को घोटालो की फिक्र नहीं है| यह हो सकता है कि आपके कुछ अच्छे कामो की बदौलत जनता ने आपको सुधरने का मौका दिया हो लेकिन यह कतई नहीं हो सक्ता कि जनता अपने हित से जुड़े मुद्दों को नजर अंदाज कर दे| हमारे गृहमंत्री जी कहते हैं कि जनता कोयला घोटाला भी भूल जाएगी| गृहमंत्री जी आपने जनता के याददाश्त की ताकत चार राज्यों के चुनावी परिणाम में देख ली होगी| जनता कुछ नही भूलती  इसे सब याद रहता है,
''इसे 2-जी भी याद है इसे कोयला भी याद है,
सब आदर्श घोटाले के माफिक ही याद है,
और इस भ्रम में मत रहिएगा कि ये भूले जाते हैं,
इन्हे तो लोकसभा चुनाव की तारीख भी याद है|''

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

2014 मे मेरी चाहत-

चाहूंगा ये कि अबकी बदल दूँ मै ये सरकार,
रोक दूँ मै अब बढ़ती हुई महंगाई की रफ़्तार,
खुशियों से लबालब भरे अब अपना ये चमन, 
नफरत से भरा दोस्तों बदल दूँ मै संसार.

वैर भावना हो ना किसी से ना ही द्वेष हो,
ना कुछ ऐसा करूँ जिससे किसी को क्लेश हो,
जमीर पर ना मै अपने आंच आने दूँ कभी,
साथ सच के चलूँ भले मुझसे कोइ नाखुश हो.

कुव्यवस्था हटाने को मै चलाता रहूँ कलम,
सत्य के ही पथ पर हरदम मेरे बढ़ते रहे कदम,
ईश्वर से यही है चाहना बस दे वे मुझे इतना,
असहायों का मै हर कदम पर बन सकूँ सम्बल.

बुधवार, 1 जनवरी 2014

स्वागत-2014 -

स्वागतम-स्वागतम, स्वागतम-स्वागतम,
2014 का है हो चुका आगमन,
स्वागतम-स्वागतम, स्वागतम-स्वागतम.

सबके जीवन से दुःख के अब दिन दूर हो,
नए साल में सबके चर्चे मशहूर हो,
आंसू स्पर्श करे ना किसी के नयन,
स्वागतम-स्वागतम, स्वागतम-स्वागतम.

आपके लिए हो इस साल का हरदिन हंसी,
आपके लबो पर सजी रहे हरदम ख़ुशी,
मस्ती में झूमता रहे अब अपना चमन,
स्वागतम-स्वागतम, स्वागतम-स्वागतम.

जनता बिन बसेरे सड़को पर ठिठुरती रही,
नेता नववर्ष मनाने गए मनाली कुल्लू,
उन सब की नियत को मई पहचान गया,
अबकी उनको मिलेगा बाबा जी का ठुल्लु,
स्वागतम-स्वागतम, स्वागतम-स्वागतम.