मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

अलविदा 2013

साल 2013 जहाँ हम सबको सियासत और हवस का नंगा नाच दिखाया वहीँ,
इस साल जनता ने अपने लोकतान्त्रिक अधिकार का सार्थक उपयोग किया. साथ ही
और माननीय को 'आम आदमी बनने का दुर्भाग्य और 'आम आदमी को सता सुख प्राप्त हुआ|

एक तरह से यह साल हमारे लिए मिला जुला रहा, आज जब साल 2013 हम सबसे रुखसत हो रहा है|
हमें मिलकर कहना चाहिए,,,,
अलविदा 2013 ,,,,,,

''अलविदा-अलविदा, अलविदा-अलविदा,,,
नए साल के आने की खुशियों में गुम,
भूल गए आप मुझको कहना अलविदा,
अलविदा-अलविदा, अलविदा-अलविदा,,,

वोट बैंक ने मुझको बदनाम किया,
2013 को दंगों का नाम दिया,,,पर
माननीयों को आम आदमी का तगमा दिया
जनता को तख्तो-ताज पे बैठा दिया,,
केदारेश्वर हुए क्यूँ ना जाने खफा,,,
अलविदा-अलविदा, अलविदा-अलविदा,,,

लोग महंगाई की अग्नि में जलते रहे,
नेता 12 5 और 1 रूपये में पेट भरते रहे,
जिनको समझा था हमने कभी रहनुमा,
वो गरीबी को मन का मैल कहते रहे,,,
पर जाने से मेरे तुमको क्या फायदा,
मानसिकता तेरी अब तक बदली नहीं,
अबला की आबरू अब भी लुटती यहाँ,
गुड़िया रो रही देखो अब भी कहीं,
फिर भी कहता रहूँगा यहीं मै सदा
अलविदा-अलविदा, अलविदा-अलविदा,,,''

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

माँ हो गई मैली-


हिमालय की शुद्धता को खुद में समेटे हरिद्वार की भूमी को पवित्र कर कर काशी विश्वनाथ के चरणों के पखारती तीर्थराज प्रयाग की धरती को  संगम से पाप मुक्त करती, महात्माबुद्ध की भूमी पाटलिपुत्र को पावन कर, भारत को सुंदरवन की सौगात सौंप, गंगासागर में जाकर समुद्र के आगोश में समाहित हो जाने वाली 'गंगा' देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है| अतः मानव-समाज सदा ही इनका ऋणी रहा है एवं जन्मदायिनी माता की भाँति इनका सम्मान करता आया है| वेदों में भी कहा गया है:
''देवि सुरेश्वरि भगवति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे|
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्ताम तव पद्कमले||''
अर्थात, ''हे गंगा माँ आप स्वर्ग की पवित्र नदी हैं| तीनो लोकों से मुक्ति दिलाने वाली माँ आप सर्वथा शुद्ध हैं| भगवान शंकर के जटा की शोभा बढ़ाती हे माँ गंगा, मेरे मन को अपने चरणों में विश्राम की अनुमति दो|''

आधुनिकता की इस अंधी दौड़ ने वेदो के कई सूक्तियों की सार्थकता समाप्त कर दी है| शायद यही कटु सत्य उपर्युक्त श्लोक के 'तरलतरंगे' के साथ भी घटित होने वाला है| भारत के लगभग एक-चौथाई भू-क्षेत्र को अपवाहित कर उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था का मेरुदण्ड कहलाने वाली गंगा, तटवर्ती क्षेत्रों के जीवन का आधार गंगा, लगभग 130 लाख किलोवाट की अनुमानित जलविद्युत क्षमता वाली गंगा, कई बड़े शहरों के सूखे कंठ को तृप्त करने वाली गंगा और देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी से 'पल्स ऑफ इंडिया' की उपाधी प्राप्त करने वाली गंगा आज अपनों की बेरुखी के कारण ही 'भारतीय संस्कृति की वाहक' से 'मृत्यु के वाहक' में तब्दील हो रही हैं| आज अपने जल में विभिन्न प्रकार के भयंकर बिमारियों का जीवाणु लेकर बहने वाली गंगा क्या वही गंगा है जिसने राजा सगर के 60000 पुत्रों का उद्धार किया था और जिसके लिए वेदों में कहा गया है,
''तव जलममलं येन निपीतं परमपदं तनु येन गृहीतं,
मातगंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुम न यमः शक्तः|''
अर्थात, ''हे माँ, जो भी आपके पावन जल को ग्रहण करता है, वह निःसंदेह परम धाम को प्राप्त होता है| हे माँ गंगा, यहाँ तक की मृत्यु के देवता यमराज भी आपके भक्तो को कोई हानि नहीं पहुंचा सकते हैं|''
भारतीय सिनेमा सामाजिक वास्तविकता को भली-भांति परदे पर प्रदर्शित करता है| राजकपूर साहब ने सन 1960 में भारतीय संस्कृति की वाहक गंगा की विशेषताओ का बखान करती एक फिल्म बनाई, ''जिस देश में गंगा बहती है|'' लेकिन अगले ढाई दशक में ही लोगो की निजी स्वार्थ सिद्दी ने गंगा को उस स्थिति में ला खड़ा किया कि, गंगा की विषम परिस्थिति पर राजकपूर साहब को 1985 में फिर से एक फिल्म बनानी पडी, ''राम तेरी गंगा मैली|'' पवित्रता की सूचक रही गंगा आज अपवित्रता के उस मुहाने पर खड़ी है कि किसी गीतकार को गंगा रूप में लोगो को संबोधित करना पड़ता है, ''मानो तो मै गंगा माँ हूँ, ना मानो तो बहता पानी|''

वर्षों से मानव-समाज का उद्धार करती चली आ रही गंगा आज अपने स्वयं के उद्धार के लिए निरीह अवस्था में स्वार्थी मनुष्यों का मुँह ताक रही है| 'नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम यानी एनसीआरपी' के हाल में हुए एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि गंगा में इतनी ज्यादा धातुएं और घातक रसायन घुल गए हैं कि इस पानी के संपर्क में रहने वाले लोग कैंसर से पीड़ित होने लगे हैं| शोध के मुताबिक गंगा किनारे रहने वाले लोगों में पित्ताशय, किडनी, भोजन नली, प्रोस्टेट, लीवर, यूरिनरी ब्लैडर और स्किन कैंसर होने का सबसे ज्यादा खतरा है| गंगा के किनारे रहने वाले हर 10 हजार लोगों में 450 पुरुष और एक हजार महिलाएं, पित्त की थैली के कैंसर से पीड़ित हैं| अध्ययन के मुताबिक पित्त की थैली के कैंसर के दूसरे सबसे ज्यादा मरीज भारत में गंगा किनारे बसते हैं|

आज अगर कथित भावी प्रधानमन्त्री 'नरेंद्र मोदी' यह कहते हैं कि गंगा की सफाई के लिए दिल्ली और उत्तर प्रदेश में तख्तापलट की जरुरत है, तो यह उनके सता की राजनीति हो सकती है| मगर सच यह है कि 'गंगा' को उसका खोया वैभव और पवित्रता वापस दिलाने के लिए मनुष्य की मानसिकता में बदलाव की जरुरत है, क्योकि वे कुंठित मानसिकता के लोग ही हैं जो गोमुख से हरिद्वार पहुंचते-पहुंचते गंगा को प्रतिदिन 89 मिलियन लीटर मल-मूत्र ढोने को विवश करते हैं| आज जब पर्यावरण गुणवत्ता निगरानी समूह पीपुल्स लोक विज्ञान संस्थान (पीएसआई, देहरादून) की एक अध्ययन में यह सच्चाई सामने आती है कि “हरिद्वार में मात्र दो नालों 'ललताराव पुल' और 'ज्वालापुर' से 140 लाख लीटर से भी ज्यादा मलजल गंगा में गिरता है|'' हर की पौड़ी के ऊपर स्थित नाला एस-1, गंगा में दिन प्रतिदिन 2.4 मिलियन लीटर कचरा ले जाता है। जिसमें 100 मिलीलीटर में 31.3 लाख फैकल कॉलिफोर्म और 140 मिलीग्राम/लीटर बीओडी होता हैं| तो मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि 1984 में बने 'गंगा एक्शन प्लान' के तहत आज तक लगभग 1400 करोड़ रुपयो का क्या हुआ? "गंगा को प्रदुषण मुक्त" करने के लिए मई 2011 में 'विश्व बैंक' से लिया गया करीब साढ़े चार हज़ार करोड़ का क़र्ज़ भी क्या गंगा में मलजल के साथ ही बह गया?
कहा जाता है, ''जब से जागो तभी सवेरा'' अतः अभी भी समय है भारतीय संस्कृति की इस सबसे बड़ी विरासत को बचाने का, नहीं तो सुरसा की भांती मुह फैलाये खड़ी यह समस्या एक दिन पूरी भारतीय संस्कृति को ही निगल जाएगी|

मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

क्या यह भारत की संप्रभुता पर हमला नहीं है?

मोदी को अमेरिकी वीजा ना देने के लिए अमेरिका को पत्र लिखने वाले 65 सांसद इस समय कहाँ हैं जब एक भारतीय राजनयिक के कपडे उतार कर उसकी तलाशी ली गई| क्या यह भारत की संप्रभुता पर हमला नही है कि, दिल्ली हाई कोर्ट के द्वारा अंतरिम आदेश जारी कर रोजगार के नियम एवं शर्तो के आधार पर भारत के बाहर 'देवयानी खोबरागडे' के खिलाफ कोई कार्रवाई शुरू करने पर रोक लगाने के बावजूद अमेरिका ने न सिर्फ उन्हें गिरफ्तार किया बल्कि उन्हें पुलिस स्टेशन में सेक्स वर्करों, अपराधियों और नसेड़ियों के बीच खड़ा किया गया। साथ ही उनकी डीएनए स्वेबिंग भी की गई। भारत को इसका जबाब कड़ाई के साथ देना चहिए, क्योकि यह पहला मौक़ा नहीं जब अमेरिका ने भारत को इस तरह नीचा दिखाने की कोशिश की है| पिछले साल ही भारतीय सिने जगत के मशहूर अभिनेता 'शाहरुख़ खान' अमेरिका में आयोजित किसी समारोह में भाग लेने गए थे तो न्यूयार्क एअरपोर्ट पर अधिकारियों ने उनके साथ बदतमीजी की थी| उसी न्यूयार्क एअरपोर्ट पर हमारी भारतीय महिला राजदूत की सिर्फ इसलिए तलाशी ली गई थी कि वो साड़ी पहने हुए थीं जो कि भारत की परंपरा है, क्या यह देश के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का अनादर नहीं है| वहीं, भारतीय सिक्ख उच्चायुक्त की पगड़ी खोलकर तलाशी ली गई थी जो कि देश के साथ-साथ धर्म का भी अपमान है| इससे एक कदम आगे बढ़कर अमेरिका ने उस 'अब्दुल कलम जी' की तलाशी लेकर बदतमीजी की जो भारत के पूर्व राष्ट्रपति हैं| आज अमेरिकी राजदूत को तलब करने और लोकसभा अध्यक्ष 'मीरा कुमार जी' तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार 'शिवशंकर मेनन' जी द्वारा अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से ना मिलने के फैसले से बात नहीं बनने वाली| भारत को अमेरिका की इस गुस्ताखी का मजबूती से जबाब देना चाहिए|




रविवार, 15 दिसंबर 2013

अबला की आबरू खतरे में आखिर कब तक-

आज निर्भया काण्ड के पुरे एक साल बीतने के बाद यह सवाल लाजिमी है कि क्या दरिंदो के दरिंदगी की शिकार उस बहन, उस बेटी के बलिदान से हमने कुछ सीख ली? हमेशा नेताओ के लिए नारे लगाने और झंडे थामने वाले हाथो का बिना किसी नेतृत्व के हजारो की संख्या में देश के सबसे बड़े दरवाजे पर दस्तक देना सार्थक हुआ? मानवता को शर्मसार करने वाली घटना पर उपजे गुस्से को दबाने के लिए बेरहमी से बरसाई गयी लाठियों ने क्या हमारे मानसपटल से उस राक्षस का वध किया जो औरत को पांव की जूती और भोग की वस्तु समझता है? 5.2 डी.से. वाले ठंढ दिन में भी अपने माँ-बहनों के आबरू की रक्षा के लिए कृतसंकल्पित युवक-युवतियों को ठंढी हवा के थपेड़ो के बीच भी नहीं डिगा सकने वाली वाटर कैनल की मार इस बात की सूचक थी कि शायद अब किसी अबला की आबरू से खिलवाड़ नहीं होगा| राजघाट से लेकर रायसीना हिल्स, कश्मीर से कन्याकुमारी और कोहिमा से कांडला तक उपजा जनाक्रोश यह बयां कर रहा था कि अब यह समाज मानवता पर पशुता को हावी होते नहीं देख सकता| आजाद भारत में पहली बार बिना नेतृत्व के राष्ट्रपति भवन तक पहुंची हजारो की भीड़ ने माननीयो को यह सन्देश भेजा कि अब यह समाज लचर व्यवस्था को बर्दास्त नहीं करेगा, और हमारी संसद को नया बलात्कार-विरोधी कानून बनाने के लिए बाध्य होना पड़ा था| लेकिन इन कानूनो का क्या फायदा जब इन्हे बनाने वाले नेता ही अपने गंदे बयानो से महिलाओ को निचा दिखाएँ|


मध्यप्रदेश के एक पूर्व मंत्री 'विजयवर्गीय' ने कहा था कि ''महिलाएं मर्यादा नहीं लांघें। मर्यादा का उल्लंघन होता है तो सीता का हरण होता है। जब लक्ष्मण रेखा हर व्यक्ति की खींची हुई है। उस लक्ष्मण रेखा को कोई पार करेगा तो रावण सामने बैठा है। वह सीता का अपहरण कर लेगा।'' अरे मंत्री जी रावण की लंका में भी सीता सुरक्षित रह जाती है, लेकिन आप का प्रशासन उसे सुरक्षा दे पाने में नाकाम है, आज थाने में भी एक महिला सुरक्षित नहीं है| महिलाओ और पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलाकर लड़ने के बाद भारत आजाद हुआ| हमें एक स्वतन्त्र भारत मिला खुलकर जीने को| लेकिन दुःख होता है जब तमाम सुरक्षा व्यवस्था से घिरी एक महिला मुख्यमंत्री महिलाओ की आजादी को ही बलात्कार का कारण मानती हैं| पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री 'ममता बनर्जी' ने आजादी को रेप की वजह बताया था। उन्होंने कहा था कि लड़के-लड़कियों को माता-पिता द्वारा दी गई आजादी से ही बलात्कार जैसी घटनाएं हो रही हैं। यहीं कारण है कि राजधानी में महिलाओं की सुरक्षा स्थिति में ज्यादा कुछ बदलाव नहीं आया है। दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, 30 नवंबर तक राष्ट्रीय राजधानी में बलात्कार के कुल 1493 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले 1 जनवरी से 30 नवम्बर 2012 के बीच 611 थे|  उत्पीड़न के दर्ज मामले भी पांच गुना बढ़कर 3,237 हो गए। 5 दुष्कर्म के मामले (औसतन) रोजाना दर्ज होते हैं दिल्ली में जो पिछले 1 साल के मुकाबले बहुत ज्यादा है|

यह उस भारत की तस्वीर है जहाँ, 543 संसदीय क्षेत्रो, 4032 विधानसभा क्षेत्रो और 638596 गाँवो में 10 लाख से अधिक महिलाये नेतृत्वकारी भूमिका अदा कर रही है। जहाँ कुछ दिनों पहले तक एक महिला को देश का प्रथम नागरिक होने का गौरव प्राप्त था। एक महिला ही जिस देश के सतासिन दल की अध्यक्षा है। लोकतंत्र की धड़कन कहे जाने वाले लोकसभा के अध्यक्ष की कुर्सी भी एक महिला के हाथो में है| लोकतंत्र के रीढ़ विपक्ष की नेता भी एक महिला ही हैं, और जिस देश के 3 बड़े राज्यों की कमान महिलाएँ संभाल रही है। आखिर क्यों? आखिर क्यों इन सब के बावजूद 5 वर्ष की बालिका को हवस का शिकार बना कर दरिन्दगी की सभी हदें पार कर दीं जाती हैं| आखिर क्यों खुद को समाज का अगुवा और पथप्रदर्शक बताने वाले लोग भी इस जघन्य अपराध में सम्मिलित नजर आ रहे हैं|

इन सब घटनाओ से स्थाई निजात पाने के लिए हमें मानविय मूल्यों को समझना होगा, हमारी आने वाली नश्लों को संवेदनशील बनाना होगा और इन्सान को इन्सान के दुख-दर्द को समझने की संस्कृति पैदा करनी होगी। हमें 'मनसा वाचा कर्मणा' एक होकर 'यात्रा नर्यास्ता पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' का अर्थ समझना होगा| हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि अपनी अदम्य साहस, अपनी जीजिविषा और फिर अपने बलिदान से हर किसी को मर्माहत करने वाली दामिनी सिंगापूर के अस्पताल में मौत के आगोस में सोते समय इसी बात से व्यथित होगी कि,
रहेगी अबला कि आबरू खतरे में आखिर कब तक?
रहेगी नर की जननी दहशत में आखिर कब तक?
रोज नजारा देख रहें हम यहाँ द्रौपदी दुशासन का,
करेंगे इन्तजार हम केशव का आखिर कब तक ?

विरासत पर सियासत-

वंसानुगत राजनीति की शुरुआत करने वाले नेताओ के जन्मदिन और पुण्यतिथि पर उनके लिए श्रद्धांजलि संदेशो से भरे समाचारपत्रों का एक भी कोना आज ऐसा नहीं दिखा जहाँ उस महान पुरोधा के लिए दो शब्द लिखें हो जिन्होंने संविधान की प्रस्तावना में लिखे शब्दों-'सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, पंथनिरपेक्ष, और लोकतंत्रात्मक गणराज्य' की नीव रखी थी| जिन्होंने रियासतो में खंडित भारत को अखंड भारत बनाया| आज देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों के आलाकमान 'सरदार पटेल' की विरासत को अपना बताने की होड़ में लगे हैं| क्या सरदार पटेल की गगनचुंबी प्रतिमा स्थापित कर देने से ही मात्र से ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि मिल जाएगी| देहावसान के बाद 'सरदार पटेल की कुल सम्पति 259 रूपए थी| आज उन्हें अपना बताने की होड़ में लगे राजनीतिक पार्टियो में किसी पार्टी के किसी नेता के पास हिम्मत है कि वो सरदार पटेल की इस विरासत को अपना सके|
''अपने बल पर जिन्होंने खंडित भारत को अखंड किया,
पुण्यतिथि पर उनके हम चरणो में शीश नवाते हैं,
गृहमंत्री बनकर जिन्होंने नवभारत को नई दिशा दी,
वह महान पुरोधा लौहपुरुष के नाम से जाने जाते हैं
राजनीति को देशभक्ति कहा करते थे जो महापुरुष,
आज देखो उनके नाम सता के लिए उछाले जाते हैं|''

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

देश के दिल दिल्ली में जम्हूरियत का जलवा-

'बेटा, डीएम बन जाना लेकिन पीएम या सीएम बनने की बात मत सोचना', यही सुझाव था उस सज्जन का मेरे लिए जिन्होंने मुझसे पूछा था कि, तुम पढ़ाई कर के क्या बनना चाहते हो, और मेरा उतर कि 'मै डीएम सीएम और पीएम बनना चाहता हूँ' सुनने के बाद उन्होंने मुझे समझाया, ''आज की राजनीति भ्रष्टों और चोर-डाकुओ की अंतिम शरणस्थली है, राजनीति के वो दिन लद चुके हैं जब इस क्षेत्र में महात्मा गांधी, सरदार पटेल, और शास्त्री जी जैसे लोग हुआ करते थे| आज यह उस मुकाम पे पहुँच गई है कि कोई ईमानदार आदमी भी देश सेवा के इरादे से राजनीती में आना चाहे तो बेदाग इससे नहीं निकल सकता है, यह आज उस काजल की कोठरी के जैसी हो चुकी है जिसके लिए कहा जाता है, 'काजल की कोठरी में कैसे ही सयाने जाय, एक लिक काजल की लागी है पै लागी है|' इसलिए इससे दूर ही रहना|'' लेकिन मैंने सोचा कि अगर राजनीति गन्दी है तो फिर इसे साफ़ करने की जिम्मेदारी किसकी है? आखिर कब तक एक माँ संसद की कार्यवाही देख रही अपने बेटे की हाथों से टीवी का रिमोट छिनती रहेगी? आखिर कब तक फिरंगियो के हाथो पहले ही लूट चुकी इस सोने की चिड़िया को अब हम अपनों के हाथो लुटते हुए देखते रहेंगे? आंकड़े गवाह हैं, वर्त्तमान लोकसभा में हमारे प्रमुख विपक्षी दल का हर दूसरा सांसद करोड़पति है, पिछले 10 सालों से केंद्र की सता पर काबिज राजनीतिक दल के 10 में से 7 सांसद करोड़पति है| कहा जाता है 'जाके पांव ना फटी बेवाई, सो का जाने पीर पराई|' एसी की कूलिंग बढ़ा कर देश की समस्या पर विचार करने वाले ये राजनेता उस माँ की मर्म को कैसे समझ सकते हैं जो कड़ाके की सर्द रात में फुटपाथ के निचे अपने कलेजे के टुकड़े को अपनी गोद में तड़प कर मरते देखने को विवस होती है| लजीज व्यंजनो से पटे थाली में भोजन करने वाले नेता उस बच्चे की जठरागन को कैसे समझ सकते हैं जो एक निवाले के लिए कूड़े के ढेर से लड़ रहा होता है|

लेकिन देश के दिल दिल्ली में जम्हूरियत के जलवे ने पुरे देश में लोगों को एक सकारात्मक राजनीति का सपना दिखाया है| चार राज्यो के चुनावी नतीजे ने तो बहुत से अहंकारियों की हवा निकाल दी है| कुछ दिनों पहले गरीबी को मनःस्थिति बताने वाले 'युवराज' भी अब 'आम लोगों की पार्टी आम आदमी पार्टी' से सबक लेने की बात करते सुने जाते है| वो नेता भी 'आप' को देश का भविष्य बता रहे हैं जिन्होंने कुछ दिनों पहले एक गरीब के भूख की कीमत 1 रूपये आंकी थी|
यह सब प्रतिफल है क्रन्तिकारी विचारधारा से लबरेज उस आम आदमी का जिसने देश के गर्तोन्मुख गंतव्य को दिशा देने के लिए खुद का स्वर्णिम भविष्य दाव पर लगा दिया| यह प्रतिफल है उस नेतृत्व क्षमता का जो किसी कवि की इन पंक्तियों पर खरा उतरता है कि,
''चल पड़े जिधर दो पग डगमग, चल पड़े कोटि पग उसी ओर,
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि गड़ गए कोटि दृग उसी ओर|''

आईएएस बनने की ख्वाहिस लेकर दिल्ली आया एक लड़का जब भ्रष्ट व्यवस्था से अजीज आकर उसे बदलने के लिए मैदाने जंग में कूद जाता है, और राजनीति को व्यापार बनाने वाले कथित माननीय को आम आदमी बना देता है| अबला की आबरू बचाने को पत्रकरिता का पेशा छोड़कर राजनीति में आई एक लड़की जब एक दिग्गज नेता को पटकनी दे देती है| जब राजनेता के रूप में गुंडों और बलात्कारियो का लबादा ओढ़ने वाले और उनके टट्टुओं से आम आदमी के हक़ के लिए लड़ते हुए कुर्बान हो जाने वाली एक लड़की का भाई, लोकतंत्र के इस महापर्व में धमाकेदार जीत के साथ व्यवस्था परिवर्तन का साक्षी बनता है और अपनी जीत अपनी उस बहन को समर्पित करता है जो इस भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ते हुए शहीद हो गई, और जब बिना किसी वंशवाद की राजनीति के एक 25 साल का लड़का भी इस लोकतंत्र के महासमर को तर कर विधायक बन जाता हैं, तब लगता है कि पुरानी पतलून-कमीज और घिसी हुई चप्पल पहन कर पिछले 2 सालों से दिल्ली वासियों के दिल में जोश-ओ-जूनून पैदा करने वाले उस 'अरविन्द केजरीवाल की तपस्या रंग लाई जिन्होंने आम आदमी की आवाज बुलंद करने के लिए अपनी आयकर विभाग के कमिश्नर की नौकरी को लात मार दी| व्यवस्था परिवर्तन की इस आंधी में 'पत्रकार मनीष सिसोदिया' का भी बहुत योगदान है जो अपनी पत्रकार की नौकरी छोड़ कर इस आंदोलन का हिस्सा बने| देश हित में मुकदमा लड़ने वाले 'वकील प्रशांत भूषण और उनके पिता शांति भूषण जी' का भी आम आदमी के इस जंग में महत्वपूर्ण योगदानसे इंकार नहीं किया जा सकता| सच के लिए आवाज उठाने के कारण हुए हमले में आज भी पैरालाइसिस की मार झेल रहे 'श्री गोपाल राय' और अपनी अनुभव क्षमता की बदौलत आम आदमी पार्टी को नित संजीवनी प्रदान करने वाले 'योगेन्द्र यादव जी' को तो शत-शत नमन है| आजादी की इस दूसरी लड़ाई से अगर एक आदमी की आवाज निकाल दी जाय तो यह लड़ाई अधूरी मालूम पड़ती है, और वह आवाज है, युवाओ के चहेते कवि 'डॉ. कुमार विश्वास' की| 'दिनकर' के कुल का एक ऐसा दीपक जिसने कभी भी 'पद्य' पुरस्कारो की कामना नहीं की, लेकिन माँ भारती के लिए वो कर दिखाया जिससे कोई भी पुरस्कार उऋण नहीं कर सकते|
वैसे तो दिल्ली की यह जीत आम आदमी की जीत है और यह पार्टी भी आम लोगो की पार्टी है जैसा कि इस पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक भी कहते हैं, लेकिन मैंने यहाँ कुछ लोगों का नाम इसलिए लिया क्योकि अगर ये इस जंग में सरीक नहीं होते तो इन देश विरोधी सरकारों की जनविरोधी नीतियो के तले कुचले जाना यहाँ के लोगो की नियति बन जाती| 


इन देश भक्तो के लिए भी यह राह उतना आसान नहीं था| कदम-कदम पर बाधाएं पैदा की जा रही थी, मगर जैसा कि इन्हे पता था कि, 'एक बच्चे से खिलौना छीनने पर वो पुरी ताकत से उसे बचाने की कोशिश करता है' , ये छदम राजनेता भी वहीं खेल खेलेंगे| और ऐसा हुआ भी, अरविन्द केजरीवाल और उनके साथियो पर तमाम तरह के आरोप लगाए गए| फर्जी स्टिंग ऑपरेसन में फंसाया गया| लेकिन इनके पास करोड़ों लोगो का प्यार और समर्थन था जिसने इन्हे हर फर्जी आरोपों से बरी कर दिया| इनके पास उस कवि कि आवाज थी जिसने इन्हे बल दिया कि,
''वो हाथो में पत्थर बदलते रहते हैं,
इधर भी अहले जुनूं सर बदलते रहते हैं,
ये दबदबा ये हुकूमत ये नशा-ये-दौलत,
किरायदार हैं सब घर बदलते रहते हैं|''

''You people are behaving like Street boys'' 'अरविन्द केजरीवाल' और कुमार विश्वास' के लिए इसी वाक्य का प्रयोग किया था, विकलांगो को बैशाखी देने में घपला करने वाले 'सलमान खुर्शीद जी' ने जो 'ऑक्सफ़ोर्ड' में पढ़ने के बाद गलियों में उड़ने वाले धूल की कीमत भूल गए, और भूल गए धूल में उड़ने वाले उस छोटे से तिनके कि कीमत जिसके लिए कहा गया है,
''तिनका कबहु ना निंदिये जो पायान्तर होय,
कबहु उड़ी आँखिन पड़े पीर घनेरी होय,,,|'' 
पूर्व भाजपा अध्यक्ष 'नितिन गडकरी जी' ने 2 रूपये का चिल्लर कहा था 'अरविन्द केजरीवाल' और उनके साथियो को, लेकिन पिछले 15  साल से गडकरी जी के किसी धुरंधर से मात ना खाने वाले 'शीला दीक्षित' को 'केजरीवाल जी' ने लगभग 25000 के रिकार्ड वोटों से शिकश्त दे कर 2 रूपये के चिल्लर की कीमत दिखा दी, और वो मुख्यमंत्री भी अब 'भूतपूर्व' बनने के बाद 'मानसून के कीड़े की क्षमता समझ गई होंगी| 

अब भी राह चलते कई ऐसे लोग मिल जाते हैं जो कहते हैं कि ये 'आप' वाले अराजकता फैला रहे हैं, इन्होने अब तक देश हित में किया ही क्या हैं| तो उनके उतर स्वरुप 'डॉ. कुमार विश्वास' की ये पंक्तियाँ-
''कुछ देशभक्ति के मंत्र यहाँ हमने आकर बाचे तो हैं,
 हम अनाचार के विषधर के फन पर चढ़ कर नाचे तो हैं,
और भ्रष्टाचार के अंधड़ को आगे बढ़ ललकारा तो हैं,
धीमा ही सही तमाचा पर उसके मुँह पर मारा तो हैं|''
-निरंजन कुमार मिश्रा

बिलखती ममता, सिसकता बाप क्यों हुक्मरान है चुप-चाप?

एक माँ के लिए इससे बड़ी विपदा कुछ नहीं हो सकती है जब उसे अपने मृत बेटे का शव देखने को विवस होना पड़े| लेकिन उस माँ पर क्या बीत रही होगी जो पिछले 8 दिनों से अपने 11 माह के बेटे के शव के साथ दिन-रात गुजार रही है| सुनने में तो यह अजीब लगता है लेकिन यह सच है| यह सच है उस देश का जहाँ से इटली की सरकार अपने दो सैनिको को क्रिसमस मनाने के लिए इटली बुला लेती है जिनके ऊपर भारतीय मछुवारो के ह्त्या का इल्जाम है, लेकिन लानत है हम पर कि हमारे बेशकीमती वोटो द्वारा चुने हुए हमारे जन प्रतिनिधि अपने उस बेटे को भारत बुला सकने में अब तक नाकाम है जिसके 11 माह के बेटे का शव अंतिम संस्कार के लिए अपने उस पिता की राह देख रहा है जिसे उसके पिता ने अंतिम बार ढाई महीने की उम्र में देखा था| एक माँ इस देश के सबसे बड़े दरवाजे पर जा कर गिड़गड़ा रही है, अपने पति को उसकी लूट चुकी सम्पदा वापस सौंपने के लिए, लेकिन इस बार भी हमारे वजीरे आजम ने उस दुखिया को सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं दिया|
यह किस्सा है मुम्बई के 'कैप्टेन सुनील जेम्स का जो नेवी में कैप्टेन हैं, इसी साल उन्होंने इंग्लैण्ड की एक कंपनी 'यूनियन मैरिटाइन' के साथ 4 महीने का कॉन्ट्रैक्ट किया था| सुनील को 'एंटी ओसियन' नमक जहाज की जिम्मेदारी दी गई थी, जुलाई के महीने में उनके जहाज पर अफ़्रीकी देश 'टोगो' के पास समुद्री डाकुओ ने जहाज पर हमला कर के उसे लूट लिया| 'टोगो' की सरकार ने उन पर डाकुओ से मिले होने का आरोप मढ़ कर उन्हें हवालात में डाल दिया| सोचने वाली बात ये है कि उनके पास ना ही 'सुनील' के खिलाफ कोई सुबूत है ना ही साक्ष्य फिर भी क्यों नहीं रिहा किया जा रहा है सुनील को?

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

बेशकीमती हथियार की कीमत-

आज दिल्ली में लोकतंत्र का महापर्व है| तमाम योद्धा मैदान में हैं| कुछ अपने पूर्वज नेताओ के नक्से कदम पर चलकर दारु-शराब और पैसे के बल पर आम जनता को लुभाते दिख रहे हैं, जैसा कि टीवी चैनल दिखा रहे हैं| तो वही इस चुनाव में भारतीय राजनीति का एक बदला हुआ चेहरा भी नजर आ रहा है| आज तक हमने सुचारु रूप से चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग और पुलिस को ही काम करते देखा था लेकिन दिल्ली के इस विधानसभा चुनाव में एक राजनितिक पार्टी भी लोकतंत्र के इस महापर्व को लोकतंत्र के अनुसार आयोजित करने को प्रतिबद्ध दिख रही है| दिल्ली पुलिस भले ही अपना यह काम ठीक ढंग से नहीं निभा पा रही हो (जैसा कि आम आदमी पार्टी के स्टिंग में दिखाया गया है), लेकिन 'आप' अपने वादे कि ''हम राजनीति करने नहीं बल्कि राजनीति को बदलने आये है'' के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्धता दिखाई| कुछ दिनों पहले 'आप' के एक नेता ने कहा था कि चुनाव लेने के परंपरागत तरीके शराब-पैसे के बाँटने वालो की कलई खोलने के लिए उनकी पार्टी ने 2000 खुफिया कैमरो की खरीदारी की है साथ ही उसके लिए 1500 कार्यकर्ताओ को ट्रेनिग दी गई है| अब जबकि 'आप' ने एक बड़ी पार्टी के एक नेता के गुर्गो को खुलेआम शराब बांटते दिखा दिया, 'आप' का यह मुहीम रंग ला रहा है|
वहीं एक निजी चैनल के स्टिंग में 'दिल्ली विधानसभा के स्पीकर रहे 'श्री योगानंद शास्त्री' जी और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री 'साहिब सिंह वर्मा' के बेटे प्रवेश वर्मा.के दफ्तर में और दफ्तर के बाहर उनके गुर्गों को शराब के साथ दिखाया गया है| वहीं दिल्ली विधानसभा के उप सभापति अमरीश सिंह गौतम के दफ्तर को शराब मिलने की वजह से सील किया गया| अब तक तो हम वोट लेने के लिए नेताओ द्वारा शराब और पैसे बाँटने की ही बात सुनते आ रहे थे लेकिन इस बार दिल्ली में एक नेता द्वारा 'आटे के पैकेट' बांटने की भी खबर आई है| कल रात तक चुनाव आयोग और दिल्ली पुलिस ने आचार संहिता का उल्लंघन करने के मामले में 300 से ज्यादा लोगों पर मुकदमा दर्ज कर दिया है, वहीं लगभग डेढ़ सौ लोग कानून की गिरफ्फत में आ चुके हैं| सोचने वाली बात ये है कि इन तमाम गिरफ्तार लोगों में ना कोई प्रत्याशी है और ना ही किसी दल का कोई प्रमुख चेहरा| ये वो लोग हैं जो आजादी के 6 दशक बीत जाने के बाद भी लोकतंत्र का मतलब नहीं समझ सके हैं| जो एक बोतल शराब और कुछ पैसो से उन तमाम क्रान्तिकारियो के सपनो से खिलवाड़ कर रहे हैं जो आजाद भारत का सपना आँखों में सजाए शहीद हो गए| जिह्वा स्वाद और चंद पैसो के लिए अपना जमीर दाव पर लगाने वाले ये लोग राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भारत के लिए उस सपने की बलि दे रहे है जिसे उन्होंने अपने एक भाषण में व्यक्त किया था, ''मेरे सपनो का भारत ऐसा होना चाहिए जिसमे हर व्यक्ति चाहे वह कितना भी गरीब हो चाहे वह कितना भी छोटा हो, अपनी सारी जरुरतो को पूरा कर सके, उसको सारी सुविधाए मिल जाय और वह बिना किसी डर के खुल कर अपनी बात कह सके| आज अगर हम चंद सिक्को के कारण बिक गए तो हमें तैयार रहना चाहिए उस पल के लिए जब हमारे इन बेशकीमती वोटो, जिन्हे हमने कीमतो में उछाल दिया, के द्वारा चुने हुए राजनेता हमारे सपनो को बेचे और हमारे देश को बेचें| क्या आजादी के 67 साल बाद भी जनता इतनी सजग नहीं हुई है कि वह लोकतंत्र में अपने सबसे बड़े हथियार वोट की कीमत समझ सके? पुरे 5 साल तक अपने हक़ के लिए जन प्रतिनिधियो के चक्कर काटने वाली जनता इसी एक दिन अपने मन का भड़ास क्यों नहीं निकाल लेती? क्यों नहीं वो दिखा देती अपनी ताकत उन तथाकथित नेताओ को जो गरीबी को मनःस्थिति समझते हैं और जिनकी नजर में जठराग्न से तड़पते एक पेट की कीमत सिर्फ 1 रूपये 5 रूपये और 12 रूपये होती है|
''गर आपके इस मुल्क में ये हथियार बेहतर चल गया,
याद रखना ऊंची जुल्म की अब सर कभी होगी नहीं,
आज भी गर बिक गए वजह से चंद सिक्को के तुम,
तो ये तय है कि हालत तेरी बेहतर कभी होगी नहीं|''