मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

देश के दिल दिल्ली में जम्हूरियत का जलवा-

'बेटा, डीएम बन जाना लेकिन पीएम या सीएम बनने की बात मत सोचना', यही सुझाव था उस सज्जन का मेरे लिए जिन्होंने मुझसे पूछा था कि, तुम पढ़ाई कर के क्या बनना चाहते हो, और मेरा उतर कि 'मै डीएम सीएम और पीएम बनना चाहता हूँ' सुनने के बाद उन्होंने मुझे समझाया, ''आज की राजनीति भ्रष्टों और चोर-डाकुओ की अंतिम शरणस्थली है, राजनीति के वो दिन लद चुके हैं जब इस क्षेत्र में महात्मा गांधी, सरदार पटेल, और शास्त्री जी जैसे लोग हुआ करते थे| आज यह उस मुकाम पे पहुँच गई है कि कोई ईमानदार आदमी भी देश सेवा के इरादे से राजनीती में आना चाहे तो बेदाग इससे नहीं निकल सकता है, यह आज उस काजल की कोठरी के जैसी हो चुकी है जिसके लिए कहा जाता है, 'काजल की कोठरी में कैसे ही सयाने जाय, एक लिक काजल की लागी है पै लागी है|' इसलिए इससे दूर ही रहना|'' लेकिन मैंने सोचा कि अगर राजनीति गन्दी है तो फिर इसे साफ़ करने की जिम्मेदारी किसकी है? आखिर कब तक एक माँ संसद की कार्यवाही देख रही अपने बेटे की हाथों से टीवी का रिमोट छिनती रहेगी? आखिर कब तक फिरंगियो के हाथो पहले ही लूट चुकी इस सोने की चिड़िया को अब हम अपनों के हाथो लुटते हुए देखते रहेंगे? आंकड़े गवाह हैं, वर्त्तमान लोकसभा में हमारे प्रमुख विपक्षी दल का हर दूसरा सांसद करोड़पति है, पिछले 10 सालों से केंद्र की सता पर काबिज राजनीतिक दल के 10 में से 7 सांसद करोड़पति है| कहा जाता है 'जाके पांव ना फटी बेवाई, सो का जाने पीर पराई|' एसी की कूलिंग बढ़ा कर देश की समस्या पर विचार करने वाले ये राजनेता उस माँ की मर्म को कैसे समझ सकते हैं जो कड़ाके की सर्द रात में फुटपाथ के निचे अपने कलेजे के टुकड़े को अपनी गोद में तड़प कर मरते देखने को विवस होती है| लजीज व्यंजनो से पटे थाली में भोजन करने वाले नेता उस बच्चे की जठरागन को कैसे समझ सकते हैं जो एक निवाले के लिए कूड़े के ढेर से लड़ रहा होता है|

लेकिन देश के दिल दिल्ली में जम्हूरियत के जलवे ने पुरे देश में लोगों को एक सकारात्मक राजनीति का सपना दिखाया है| चार राज्यो के चुनावी नतीजे ने तो बहुत से अहंकारियों की हवा निकाल दी है| कुछ दिनों पहले गरीबी को मनःस्थिति बताने वाले 'युवराज' भी अब 'आम लोगों की पार्टी आम आदमी पार्टी' से सबक लेने की बात करते सुने जाते है| वो नेता भी 'आप' को देश का भविष्य बता रहे हैं जिन्होंने कुछ दिनों पहले एक गरीब के भूख की कीमत 1 रूपये आंकी थी|
यह सब प्रतिफल है क्रन्तिकारी विचारधारा से लबरेज उस आम आदमी का जिसने देश के गर्तोन्मुख गंतव्य को दिशा देने के लिए खुद का स्वर्णिम भविष्य दाव पर लगा दिया| यह प्रतिफल है उस नेतृत्व क्षमता का जो किसी कवि की इन पंक्तियों पर खरा उतरता है कि,
''चल पड़े जिधर दो पग डगमग, चल पड़े कोटि पग उसी ओर,
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि गड़ गए कोटि दृग उसी ओर|''

आईएएस बनने की ख्वाहिस लेकर दिल्ली आया एक लड़का जब भ्रष्ट व्यवस्था से अजीज आकर उसे बदलने के लिए मैदाने जंग में कूद जाता है, और राजनीति को व्यापार बनाने वाले कथित माननीय को आम आदमी बना देता है| अबला की आबरू बचाने को पत्रकरिता का पेशा छोड़कर राजनीति में आई एक लड़की जब एक दिग्गज नेता को पटकनी दे देती है| जब राजनेता के रूप में गुंडों और बलात्कारियो का लबादा ओढ़ने वाले और उनके टट्टुओं से आम आदमी के हक़ के लिए लड़ते हुए कुर्बान हो जाने वाली एक लड़की का भाई, लोकतंत्र के इस महापर्व में धमाकेदार जीत के साथ व्यवस्था परिवर्तन का साक्षी बनता है और अपनी जीत अपनी उस बहन को समर्पित करता है जो इस भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ते हुए शहीद हो गई, और जब बिना किसी वंशवाद की राजनीति के एक 25 साल का लड़का भी इस लोकतंत्र के महासमर को तर कर विधायक बन जाता हैं, तब लगता है कि पुरानी पतलून-कमीज और घिसी हुई चप्पल पहन कर पिछले 2 सालों से दिल्ली वासियों के दिल में जोश-ओ-जूनून पैदा करने वाले उस 'अरविन्द केजरीवाल की तपस्या रंग लाई जिन्होंने आम आदमी की आवाज बुलंद करने के लिए अपनी आयकर विभाग के कमिश्नर की नौकरी को लात मार दी| व्यवस्था परिवर्तन की इस आंधी में 'पत्रकार मनीष सिसोदिया' का भी बहुत योगदान है जो अपनी पत्रकार की नौकरी छोड़ कर इस आंदोलन का हिस्सा बने| देश हित में मुकदमा लड़ने वाले 'वकील प्रशांत भूषण और उनके पिता शांति भूषण जी' का भी आम आदमी के इस जंग में महत्वपूर्ण योगदानसे इंकार नहीं किया जा सकता| सच के लिए आवाज उठाने के कारण हुए हमले में आज भी पैरालाइसिस की मार झेल रहे 'श्री गोपाल राय' और अपनी अनुभव क्षमता की बदौलत आम आदमी पार्टी को नित संजीवनी प्रदान करने वाले 'योगेन्द्र यादव जी' को तो शत-शत नमन है| आजादी की इस दूसरी लड़ाई से अगर एक आदमी की आवाज निकाल दी जाय तो यह लड़ाई अधूरी मालूम पड़ती है, और वह आवाज है, युवाओ के चहेते कवि 'डॉ. कुमार विश्वास' की| 'दिनकर' के कुल का एक ऐसा दीपक जिसने कभी भी 'पद्य' पुरस्कारो की कामना नहीं की, लेकिन माँ भारती के लिए वो कर दिखाया जिससे कोई भी पुरस्कार उऋण नहीं कर सकते|
वैसे तो दिल्ली की यह जीत आम आदमी की जीत है और यह पार्टी भी आम लोगो की पार्टी है जैसा कि इस पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक भी कहते हैं, लेकिन मैंने यहाँ कुछ लोगों का नाम इसलिए लिया क्योकि अगर ये इस जंग में सरीक नहीं होते तो इन देश विरोधी सरकारों की जनविरोधी नीतियो के तले कुचले जाना यहाँ के लोगो की नियति बन जाती| 


इन देश भक्तो के लिए भी यह राह उतना आसान नहीं था| कदम-कदम पर बाधाएं पैदा की जा रही थी, मगर जैसा कि इन्हे पता था कि, 'एक बच्चे से खिलौना छीनने पर वो पुरी ताकत से उसे बचाने की कोशिश करता है' , ये छदम राजनेता भी वहीं खेल खेलेंगे| और ऐसा हुआ भी, अरविन्द केजरीवाल और उनके साथियो पर तमाम तरह के आरोप लगाए गए| फर्जी स्टिंग ऑपरेसन में फंसाया गया| लेकिन इनके पास करोड़ों लोगो का प्यार और समर्थन था जिसने इन्हे हर फर्जी आरोपों से बरी कर दिया| इनके पास उस कवि कि आवाज थी जिसने इन्हे बल दिया कि,
''वो हाथो में पत्थर बदलते रहते हैं,
इधर भी अहले जुनूं सर बदलते रहते हैं,
ये दबदबा ये हुकूमत ये नशा-ये-दौलत,
किरायदार हैं सब घर बदलते रहते हैं|''

''You people are behaving like Street boys'' 'अरविन्द केजरीवाल' और कुमार विश्वास' के लिए इसी वाक्य का प्रयोग किया था, विकलांगो को बैशाखी देने में घपला करने वाले 'सलमान खुर्शीद जी' ने जो 'ऑक्सफ़ोर्ड' में पढ़ने के बाद गलियों में उड़ने वाले धूल की कीमत भूल गए, और भूल गए धूल में उड़ने वाले उस छोटे से तिनके कि कीमत जिसके लिए कहा गया है,
''तिनका कबहु ना निंदिये जो पायान्तर होय,
कबहु उड़ी आँखिन पड़े पीर घनेरी होय,,,|'' 
पूर्व भाजपा अध्यक्ष 'नितिन गडकरी जी' ने 2 रूपये का चिल्लर कहा था 'अरविन्द केजरीवाल' और उनके साथियो को, लेकिन पिछले 15  साल से गडकरी जी के किसी धुरंधर से मात ना खाने वाले 'शीला दीक्षित' को 'केजरीवाल जी' ने लगभग 25000 के रिकार्ड वोटों से शिकश्त दे कर 2 रूपये के चिल्लर की कीमत दिखा दी, और वो मुख्यमंत्री भी अब 'भूतपूर्व' बनने के बाद 'मानसून के कीड़े की क्षमता समझ गई होंगी| 

अब भी राह चलते कई ऐसे लोग मिल जाते हैं जो कहते हैं कि ये 'आप' वाले अराजकता फैला रहे हैं, इन्होने अब तक देश हित में किया ही क्या हैं| तो उनके उतर स्वरुप 'डॉ. कुमार विश्वास' की ये पंक्तियाँ-
''कुछ देशभक्ति के मंत्र यहाँ हमने आकर बाचे तो हैं,
 हम अनाचार के विषधर के फन पर चढ़ कर नाचे तो हैं,
और भ्रष्टाचार के अंधड़ को आगे बढ़ ललकारा तो हैं,
धीमा ही सही तमाचा पर उसके मुँह पर मारा तो हैं|''
-निरंजन कुमार मिश्रा

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