बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

जठराग्नि अमर रहे?

इस 31 अक्तूबर को हम ''श्रीमती इंदिरा गाँधी जी'' की 28 वी पुण्य तिथि मना रहे  है| 1980 के आम चुनाव में जब की पुरे भारत में ''कांग्रेस हटाओ देश बचाओ'' का स्लोगन जन-जन का नारा बन चूका था| उस विषम परिस्थिति में इंदिरा जी ''गरीबी हटाओ देश बचाओ'' का नारा देकर पुनः आम-जन के दिल पर काबिज हो गई| पर दुर्भाग्यवश, शायद ''जठराग्नि को आर्थिक सुधारों के पैरो तले रौदा जाना, भारतीय जनता के नसीब में लिखा ही था| एक प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा जी की ''गरीबी हटाओ देश बचाओ'' की आखिरी ख्वाहिस आज 28 साल बाद भी पूरी तरह अधूरी है| केंद्रीय मंत्रिमंडल में बदलाव के द्वारा उनके उतराधिकारियो के पास शायद ये आखिरी मौका था, जन-जन के दिल पर काबिज होने और अपनी नेत्री की ख्वाहिस पूरी करने का| लेकिन अब जान पड़ता है कि इस सरकार को जनता कि दुर्दशा से ज्यादा आर्थिक सुधारो की चिंता है| मंत्रिमंडल विस्तार के बाद हमारे हुक्मरानों द्वारा आम-जन के लिए पहली खबर, पेट्रोलियम पदार्थो से सब्सिडी हटाने तथा रेल किराया बढ़ाने के रूप में आई है| आज जब 78% भारतीय 20 रूपये प्रतिदिन पर गुजरा करने को विवश है, क्या यह खबर उन्हें उन्हें सुकून देगी? क्या घोटालो में बर्बाद जनता के पसीने कि कमाई 4 लाख 38 हजार करोड़ रूपये और विदेशी बैंको में जमा 21 लाख करोड़ भारतीय पैसो से इस सब्सिडी और इस महंगाई की भरपाई नहीं हो सकती है?
जगदीश गुप्त जी ने ठीक ही कहा है-
''कौन खाई है कि जिसको पाटती है कीमते,
  उम्र को तेजाब बनकर चाटती है कीमते
 आदमी को पेट का चूहा बनाकर रात-दिन
 नोचती है, कोचती है, काटती है कीमते|''

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

युवा नेतृत्व की जरुरत-

वर्तमान समय में देश के राजनीतिक परिदृश्य को देखकर हम सहज ही अनुमान लगा सकते है कि भारत को एक सशक्त युवाशक्ति के नेतृत्व कि सख्त जरुरत है| जो उभरते भारत को आरोपों-प्रत्यारोपों, अनशन और आंदोलनों कि राजनीती से निकाल कर एक सही दिशा दे सके, जो जनहित में फैसले लेकर जन-जन को देश के विकाश में सहयोग का अवसर प्रदान करे| और इस सब के लिए हमें इस मानसिकता से छुटकारा पाना होगा
कि ''आज कि राजनीति गन्दी तथा चोरो-डकैतों कि अंतिम शरणस्थली है|'' हम ये सब बहाने बना कर कब तक आम जनता को महंगाई और भ्रष्टाचार की गहरी खाई में ढकेलते रहेंगे| अगर राजनीति गन्दी है तो इसे साफ करने की जिम्मेदारी किसकी है? आज जनता एक ऐसे युवा नेतृत्व की तलाश में है, जो यह समझे की उसके पीछे 121 करोड़ जनता की उम्मीदे जुड़ी है| जो 19 करोड़ लोगो का समर्थन प्राप्त आतंकवादियों से निजात पाने के लिए, 39 करोड़ जनता का समर्थन प्राप्त सरकार के आगे हाँथ पसारते हुए 121 करोड़ जनता की ताकत ना भूले| लेकिन इसके लिए हमें उन लोगो की नियत को पहचानना होगा जो अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए आत्मविश्वास से लबरेज युवा शक्ति को अनशन-आन्दोलन और बन्दों की राजनीति में ढकेलते है| हमें जनता को लोहिया जी की बातें यद् दिलानी होगी की ''जिन्दा कौमें पाँच साल तक इंतजार नहीं किया करती हमें याद रखना होगा की हम बुद्ध के वंसज है जिन्होंने भारत को जगत गुरु होने की संज्ञा दिलाई थी| आज भी संसार का मार्गदर्शन, भारतीय दर्शन के द्वारा ही संभव है, लेकिन हमारी इस विरासत पर फिर से फिरंगियों की नजर पड़ गई है, और हमें अपनी इस विरासत की रक्षा करनी ही होगी|
डॉ. कुमार विश्वास जी के शब्दों में-
''मुर्दा लोहे को भी औजार बनाने वाले,
  अपनी आंसू को भी हथियार बनाने वाले,
  हमको नाकाम समझते है शियासत-दा मगर,
  हम है इस देश की सरकार बनाने वाले''

अवसादग्रस्त युवा-

 
24 अक्टूबर की सुबह समाचार पत्र पढ़ते समय एक खबर पर नजरें थम सी  गई, मै सोचने पर मजबूर हो गया की हमारी युवा पीढ़ी दिन--दिन इतनी अवसाद ग्रस्त क्यों होती जा रही है| खबर थी उतरप्रदेश के फरीदाबाद की जहाँ माँ के डांटने पर बेटे ने किरोसिन छिड़क खुद को आग के हवाले कर दिया| यह सर्व विदित है कि ''पुत्र कुपुत्र सुने है पर,ना माता सुने कुमाता'' दुनिया कि कोई ऐसी माँ नहीं होगी जो यह चाहेगी कि उस के कारण उसके बेटे कि आत्मा को ठेस पहुचे| फिर यह बात तो विश्वास से परे है कि माँ के डांट-फटकार की नियत बेटे के जीवन-लीला की समाप्ति हो| कोई भी माता-पिता खुद के फायदे के लिए बच्चो को नहीं डांटते, उनका उद्देश्य उनके बच्चो का सुखद भविष्य होता है| एक बात समझ से परे है कि आज का युवा इतने उबाल में क्यों है, जबकि यह उबाल सुकर्मो के लिए नहीं है| किसी के दुष्कर्मो को रोकने के लिए हमारी रगों के उबाल नहीं आता, किसी परहोते अत्याचार को देखकर हमारी ऊँगली नहीं उठती, फिर हम स्वयं ही स्वयं के जान के दुश्मन कैसे बन जाते है| आजकल शायद ही किसी दिन किसी समाचार पत्र का कोई ऐसा पृष्ठ होता है जिस पर युवाओ के आत्महत्या की खबर नहीं है| अगर हम दिल्ली की बात करें, तो यहाँ के कुछ गिने-चुने मेट्रो स्टेशन ही है जो युवक युवतियों के आत्महत्या के गवाह नहीं बने है| हमारी युवा पीढ़ी का इस तरह अवसाद ग्रस्त होना हमारे देश के लिए एक ज्वलंत मुद्दा बनता जा रहा है|
हमें सोचना चाहिए कि हम उसी देश के वासी है जहाँ का एक छोटा बच्चा शेर के मुह में हाँथ डाल कर उसका दांत गिनने की ताकत रखता है, जहाँ माँ के पेट में पल रहा बच्चा चक्रव्यूह भेदना सिख जाता है| हम उस भारत में निवास करते है जहाँ 'तथागत अवतार तुलसी' जैसे बच्चे भी होते है जो 9 साल में मैट्रिक,10 साल में स्नातक और 12 साल में स्नातकोतर पूरा करने की ताकत रखते है|

भटकता लोकतंत्र

आज कल एफ एम रेडियो तथा टी वी पर भारत सरकार का एक विज्ञापन '' हो रहा भारत निर्माण, भारत के इस निर्माण पे हक़ है मेरा..''बहुत ही जोरो पर है जिसे सुन कर हम खुद को बहुत ही गौरवान्वित महसूस करते है| वर्तमान राजनीति को देखते हुए हम सहज ही यह अनुमान लगा सकते है कि भारत का निर्माण किस दिशा में हो रहा है| आज की राजनीति आरोपों-प्रत्यारोपो कि राजनीति भर बन कर रह गई है| हर कोई अपने विपक्षी पार्टी या विपक्षी नेता की टी वी गलत कारगुजारियो को उजागर करने में लगा है| दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की यह हालत देखकर मुझे 'श्री लाल शुक्ल जी' द्वारा उनकी रचना 'रागदरबारी' में कही गई बातें सही प्रतीत हो रहो है, कि ''देश में लोकतंत्र चौराहे पर लेटी 'कुतिया' कि तरह हो गया है जिसे कोई भी लात मार सकता है|'' अगर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राजनीति कि यही दशा रही, तो मै दावे के साथ कह सकता हूँ की आगामी कई दशको तक हम भारत का निर्माण ही करते रहेंगे, हमारी भावी पीढ़िया हमें एक ऐसे पूर्वज के रूप में याद करेगी जो 40 के दशक में आजाद हुए देश को भी विकाशशील ही छोड़ गए| हमें आजाद हुए 65 साल हुए और आज भी 78% भारतीय 20 रूपये प्रितिदिन में गुजरा करते है| हम सोच सकते है कि इस 20 रूपये में वे एक समय कि रोटी भी मुश्किल से जुटा पाते है, फिर शिक्षा और स्वास्थ्य तो दूर कि बात है, और यही से शुरू होता है नए भारत का निर्माण.......| दुनिया कि सबसे बड़ी आबादी रखने के बाद भी आज चीन उस जगह पर खड़ा है कि विश्वशक्ति अमेरिका भी उस पर ऊँगली उठाने से डरता है| परमाणु बम का प्रकोप सहने के बाद भी जापान अपनी उन्नत तकनीक से विश्व व्यापर पर अपना एकाधिकार कायम किये हुए है| भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ 64% लोग 15-62 आयु वर्ग के है जिसे कामकाजी आयु वर्ग माना जाता है फिर भी हम विकाश के क्षेत्र में फिसड्डी है क्यों?


शहादत पर भारी वादों की फेहरिस्त

बीते 20 अक्टूबर को हम भारत-चीन युद्ध की 50वी बरसी पर हम हमेशा की तरह बहुत सरे वादों से रूबरू हुए उस युद्ध के पांच दशक बीतने जा रहे है, आज भी हमारी 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि चीन के कब्जे में है| युद्ध में शहीद हुए ढाई हजार से अधिक सैनिक हमारे हुक्मरानों के गलत फैसले के नतीजे थे| क्योकि जब चीनी सैनिक हम पर चढ़ आये थे तब तक हमारे हुक्मरानों को इसी बात का इत्मिनान था कि युद्ध होने नहीं जा रही है| ऐसा नहीं था कि हमारे पास युद्ध से सम्बंधित सूचनाओ का आभाव था, हमारी गुप्तचर संस्थाए सरकार को बार-बार युद्ध के प्रति इतिला कर रही थी, युद्ध के प्रति सरकार कि अनदेखियो के कारण हमारे सेनाध्यक्ष को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा| 1961 में जब युद्ध के बादल मडरा रहे थे उस समय हमारी आयुध कंपनिया प्रगति मैदान के रक्षा पवेलियन में सैन्य शस्त्रों के बजाय चाय कॉफ़ी का प्रदर्शन कर रही थी| फलतः बिना पर्याप्त हथियार और पोशाकों के हमारे सैनिक 14 हजार फीट से अधिक उचाई पर पर्याप्त सुविधाओ से लैस चीनी सैनिको का आखिरी साँस तक वीरता पूर्वक सामना किये| चीन द्वारा युद्ध समाप्ति की घोषणा किये जाने के 7 दिन पूर्व 14 नवम्बर को भारतीय संसद ने सर्वसम्मति से शपथ ली कि हर हाल में अपनी सरजमीं को चीनी कब्जे से मुक्त कराएँगे| आज इस शपथ को पचास साल होने जा रहे है लेकिन आज भी हालत वही है 'ढाक के तीन पात'| क्या, मरणोपरांत वीर चक्र, परमवीर चक्र देने भर से ही हमारे जांबाज शहीदों को सच्ची श्रधांजली मिल जाती है? आज जब हमारी जमीं फिरंगियों के पैरो तले रौंदी जा रही है, तो क्या हमारे वीर सिपाहियों कि आत्मा को शांति मिलती होगी जो अपनी मातृभूमि के उस अभिन्न अंग के लिए हँसते हुए सिने पर गोलियाँ खाए थे| जब भी देश किसी विषम परिस्थिति से गुजरता है हमारे हुक्मरान जनता के सामने अपने वादों कि लम्बी फेहरिस्त पटक उनका मुह बंद कर देते है| लेकिन ज्यो-ज्यो समय बीतता है हमारे निति-नियताओ कि खुद के स्वार्थ सिद्धि में मग्नता सारे वादो पर काई जमा देती है|
 यही कारण है कि आज आतंकवादियों के सुरक्षा कि चिंता उनके हुक्मरानों से ज्यादा हमारे हुक्मरानों को है| अगर आज ऐसा नहीं होता तो, जम्मू कश्मीर विधानसभा, संसद हमले के दोषी 'अफजल गुरु' के रिहाई कि मांग नहीं करता, तमिलनाडु विधानसभा राजीव गाँधी के हत्यारों को रिहा करने की मांग नहीं करता| इतना ही नहीं बब्बर खालसाके आतंकवादी भुल्लर की रिहाई 'कांग्रेस और अकाली दल' की संयुक्त मांग है| इन सब के बाद भी विपक्ष चुप्पी साधे हुए है क्योकि पंजाब में एन.डी. और अकाली दल के गठबंधन की सरकार है|
किसी ने सच ही कहा है-
''शहीदों की मजारो पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पे मरने वालो का यही वाकी निशां होगा|''