इस 31 अक्तूबर को हम
''श्रीमती इंदिरा गाँधी जी''
की 28 वी पुण्य
तिथि मना रहे
है|
1980 के आम चुनाव
में जब की
पुरे भारत में
''कांग्रेस हटाओ देश
बचाओ'' का स्लोगन
जन-जन का
नारा बन चूका
था| उस विषम
परिस्थिति में इंदिरा
जी ''गरीबी हटाओ
देश बचाओ'' का
नारा देकर पुनः
आम-जन के
दिल पर काबिज
हो गई| पर
दुर्भाग्यवश, शायद ''जठराग्नि को
आर्थिक सुधारों के पैरो
तले रौदा जाना,
भारतीय जनता के
नसीब में लिखा
ही था| एक
प्रधानमंत्री के रूप
में इंदिरा जी
की ''गरीबी हटाओ
देश बचाओ'' की
आखिरी ख्वाहिस आज
28 साल बाद भी
पूरी तरह अधूरी
है| केंद्रीय मंत्रिमंडल
में बदलाव के
द्वारा उनके उतराधिकारियो
के पास शायद
ये आखिरी मौका
था, जन-जन
के दिल पर
काबिज होने और
अपनी नेत्री की
ख्वाहिस पूरी करने
का| लेकिन अब
जान पड़ता है
कि इस सरकार
को जनता कि
दुर्दशा से ज्यादा
आर्थिक सुधारो की चिंता
है| मंत्रिमंडल विस्तार
के बाद हमारे
हुक्मरानों द्वारा आम-जन
के लिए पहली
खबर, पेट्रोलियम पदार्थो
से सब्सिडी हटाने
तथा रेल किराया
बढ़ाने के रूप
में आई है|
आज जब 78% भारतीय
20 रूपये प्रतिदिन पर गुजरा
करने को विवश
है, क्या यह
खबर उन्हें उन्हें
सुकून देगी? क्या
घोटालो में बर्बाद
जनता के पसीने
कि कमाई 4 लाख
38 हजार करोड़ रूपये
और विदेशी बैंको
में जमा 21 लाख
करोड़ भारतीय पैसो
से इस सब्सिडी
और इस महंगाई
की भरपाई नहीं
हो सकती है?
जगदीश गुप्त जी ने ठीक ही कहा है-
''कौन खाई है कि जिसको पाटती है कीमते,
उम्र को तेजाब बनकर चाटती है कीमते,
आदमी को पेट का चूहा बनाकर रात-दिन
नोचती है, कोचती है, काटती है कीमते|''
जगदीश गुप्त जी ने ठीक ही कहा है-
''कौन खाई है कि जिसको पाटती है कीमते,
उम्र को तेजाब बनकर चाटती है कीमते,
आदमी को पेट का चूहा बनाकर रात-दिन
नोचती है, कोचती है, काटती है कीमते|''