बीते 20 अक्टूबर को हम
भारत-चीन युद्ध
की 50वी बरसी
पर हम हमेशा
की तरह बहुत
सरे वादों से
रूबरू हुए उस
युद्ध के पांच
दशक बीतने जा
रहे है, आज
भी हमारी 38 हजार
वर्ग किलोमीटर भूमि
चीन के कब्जे
में है| युद्ध
में शहीद हुए
ढाई हजार से
अधिक सैनिक हमारे
हुक्मरानों के गलत
फैसले के नतीजे
थे| क्योकि जब
चीनी सैनिक हम
पर चढ़ आये थे
तब तक हमारे
हुक्मरानों को इसी
बात का इत्मिनान
था कि युद्ध
होने नहीं जा
रही है| ऐसा
नहीं था कि
हमारे पास युद्ध
से सम्बंधित सूचनाओ
का आभाव था,
हमारी गुप्तचर संस्थाए
सरकार को बार-बार युद्ध
के प्रति इतिला
कर रही थी,
युद्ध के प्रति
सरकार कि अनदेखियो
के कारण हमारे
सेनाध्यक्ष को अपने
पद से इस्तीफा देना
पड़ा| 1961 में जब
युद्ध के बादल
मडरा रहे थे
उस समय हमारी
आयुध कंपनिया प्रगति
मैदान के रक्षा
पवेलियन में सैन्य
शस्त्रों के बजाय
चाय कॉफ़ी का प्रदर्शन
कर रही थी|
फलतः बिना पर्याप्त
हथियार और पोशाकों
के हमारे सैनिक
14 हजार फीट से
अधिक उचाई पर
पर्याप्त सुविधाओ से लैस
चीनी सैनिको का
आखिरी साँस तक
वीरता पूर्वक सामना
किये| चीन द्वारा
युद्ध समाप्ति की घोषणा
किये जाने के
7 दिन पूर्व 14 नवम्बर
को भारतीय संसद
ने सर्वसम्मति से
शपथ ली कि
हर हाल में
अपनी सरजमीं को
चीनी कब्जे से
मुक्त कराएँगे| आज
इस शपथ को
पचास साल होने
जा रहे है
लेकिन आज भी
हालत वही है
'ढाक के तीन पात'|
क्या, मरणोपरांत वीर
चक्र, परमवीर चक्र
देने भर से
ही हमारे जांबाज
शहीदों को सच्ची
श्रधांजली मिल जाती
है? आज जब
हमारी जमीं फिरंगियों
के पैरो तले
रौंदी जा रही
है, तो क्या
हमारे वीर सिपाहियों
कि आत्मा को
शांति मिलती होगी
जो अपनी मातृभूमि
के उस अभिन्न
अंग के लिए
हँसते हुए सिने
पर गोलियाँ खाए
थे| जब भी
देश किसी विषम
परिस्थिति से गुजरता
है हमारे हुक्मरान
जनता के सामने
अपने वादों कि
लम्बी फेहरिस्त पटक
उनका मुह बंद
कर देते है|
लेकिन ज्यो-ज्यो
समय बीतता है
हमारे निति-नियताओ
कि खुद के
स्वार्थ सिद्धि में मग्नता
सारे वादो पर
काई जमा देती
है|
यही कारण
है कि आज
आतंकवादियों के सुरक्षा
कि चिंता उनके
हुक्मरानों से ज्यादा
हमारे हुक्मरानों को
है| अगर आज
ऐसा नहीं होता
तो, जम्मू कश्मीर
विधानसभा, संसद हमले
के दोषी 'अफजल
गुरु' के रिहाई
कि मांग नहीं
करता, तमिलनाडु विधानसभा
राजीव गाँधी के
हत्यारों को रिहा
करने की मांग
नहीं करता| इतना
ही नहीं बब्बर
खालसाके आतंकवादी भुल्लर की
रिहाई 'कांग्रेस और अकाली
दल' की संयुक्त
मांग है| इन
सब के बाद
भी विपक्ष चुप्पी
साधे हुए है
क्योकि पंजाब में एन.डी.ए
और अकाली दल
के गठबंधन की
सरकार है|
किसी ने सच
ही कहा है-
''शहीदों की मजारो पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मरने वालो का यही वाकी निशां होगा|''
''शहीदों की मजारो पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मरने वालो का यही वाकी निशां होगा|''
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