सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

भटकता लोकतंत्र

आज कल एफ एम रेडियो तथा टी वी पर भारत सरकार का एक विज्ञापन '' हो रहा भारत निर्माण, भारत के इस निर्माण पे हक़ है मेरा..''बहुत ही जोरो पर है जिसे सुन कर हम खुद को बहुत ही गौरवान्वित महसूस करते है| वर्तमान राजनीति को देखते हुए हम सहज ही यह अनुमान लगा सकते है कि भारत का निर्माण किस दिशा में हो रहा है| आज की राजनीति आरोपों-प्रत्यारोपो कि राजनीति भर बन कर रह गई है| हर कोई अपने विपक्षी पार्टी या विपक्षी नेता की टी वी गलत कारगुजारियो को उजागर करने में लगा है| दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की यह हालत देखकर मुझे 'श्री लाल शुक्ल जी' द्वारा उनकी रचना 'रागदरबारी' में कही गई बातें सही प्रतीत हो रहो है, कि ''देश में लोकतंत्र चौराहे पर लेटी 'कुतिया' कि तरह हो गया है जिसे कोई भी लात मार सकता है|'' अगर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राजनीति कि यही दशा रही, तो मै दावे के साथ कह सकता हूँ की आगामी कई दशको तक हम भारत का निर्माण ही करते रहेंगे, हमारी भावी पीढ़िया हमें एक ऐसे पूर्वज के रूप में याद करेगी जो 40 के दशक में आजाद हुए देश को भी विकाशशील ही छोड़ गए| हमें आजाद हुए 65 साल हुए और आज भी 78% भारतीय 20 रूपये प्रितिदिन में गुजरा करते है| हम सोच सकते है कि इस 20 रूपये में वे एक समय कि रोटी भी मुश्किल से जुटा पाते है, फिर शिक्षा और स्वास्थ्य तो दूर कि बात है, और यही से शुरू होता है नए भारत का निर्माण.......| दुनिया कि सबसे बड़ी आबादी रखने के बाद भी आज चीन उस जगह पर खड़ा है कि विश्वशक्ति अमेरिका भी उस पर ऊँगली उठाने से डरता है| परमाणु बम का प्रकोप सहने के बाद भी जापान अपनी उन्नत तकनीक से विश्व व्यापर पर अपना एकाधिकार कायम किये हुए है| भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ 64% लोग 15-62 आयु वर्ग के है जिसे कामकाजी आयु वर्ग माना जाता है फिर भी हम विकाश के क्षेत्र में फिसड्डी है क्यों?


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