शनिवार, 15 अप्रैल 2017

कश्मीर को बुखार नहीं जख्म की दवा चाहिए

किसी जख्म के कारण अगर बुखार हो जाता है, तो डॉक्टर बुखार की बजाय जख्म ठीक करने की दवा देता है। जख्म ठीक होने के बाद बुखार खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है। अफसोस कि दिल्ली में रायसीना की पहाड़ियों पर बैठने वाले हर किसी ने कश्मीर को हमेशा से डायरेक्ट बुखार की दवा दी है। किसी ने जख्मों को पूरी तरह से ठीक करने की कोशिश नहीं की। एक ने की थी, और ईमानदार कोशिश की थी, यही कारण भी है कि आज कश्मीरी भले ही दिल्ली को गाली देते हैं, लेकिन उनके घरों में अटल जी की तस्वीरें देखी जा सकती हैं।
दिल्ली की सल्तनत पर जब मोदी काबिज हुए और उन्होंने इंसानियत-जम्हूरियत-कश्मीरियत की बात कह कर कश्मीर के मामले में अटल जी की विरासत आगे बढ़ाने की बात कही, तब कश्मीरियों को भी लगा था कि अब उन्हें संगीनों के साए से आजादी मिलेगी और वे भी खुली हवा में सांस लेने वाले आम हिंदुस्तानी की तरह महसूस कर पाएंगे। लेकिन जब मोदी जी भी बम-बन्दूकों और जोर-जबरदस्ती से कश्मीर सुलझाने की नीति पर आगे बढ़े, तो कश्मीर को लेकर मोदी नीति अटल नीति से कोसों दूर हो गई। कश्मीर को लेकर मोदी नीति कुछ ऐसी ही है, जैसे कोई डॉक्टर जख्मों को कुरेद कुरेद कर ताजा बनाए रखता है और मरीज को बुखार की दवा देते रहता है। दिल्ली को अब समझना होगा कि कश्मीर का जख्म अब दर्द की उस सीमा को पार कर चुका है, जिसे और कुरेद कर 'सबक' सिखाया जा सके।
जीप की बोनट पर बंधे कश्मीरी युवा वाली तस्वीर में भले ही आपको कश्मीर में भारतीय सेना की विजय नीति नजर आए, लेकिन इन सब रणनीतियों से भारत हर दिन कश्मीर में हार रहा है। आप अगर कहते हैं कि भारतीय सेना कश्मीर में मजबूर है, तो मैं ये नहीं मान सकता। सेना वहां ताकतवर है लेकिन हमारी रणनीति गलत है। हमारी सरकार के फैसलों के कारण वीर सैनिक वहां आए दिन शहीद हो रहे हैं। हमारे गांवों में भी ये घटना आम है कि पुलिस कहीं छपेमारी करने या किसी की धर-पकड़ करने जाती है, तो कई बार उन्हें स्थानीय लोगों के विरोध का सामना करना पड़ता है। कई बार पुलिस वालों पर गांव वाले हमले भी करते हैं, पुलिस वाले घायल भी हो जाते हैं। लेकिन वहां पुलिस की हिम्मत नहीं होती कि दहशत फैलाने के लिए वो अगले दिन किसी को अपने जीप की बोनट पर बांध कर गांव में घूमा सके। लेकिन पुलिस कश्मीर में ऐसा कर सकती है, फिर कैसे आप ये आशा करते हैं कि कश्मीरी युवा टूरिज्म को चुनेंगे। आप यहां कह सकते हैं कि कश्मीर बिहार नहीं है, लेकिन कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा तो कहते हैं न, तो फिर व्यवहार रूप में इसे क्यों नहीं उतारते।
मेरा मानना है कि दबाव की रणनीति से कश्मीरी युवाओं में भारत के प्रति नफरत और बढ़ता जा रहा है। मैं कतई ये नहीं कहता कि पत्थर चलाने वालों को बख्श दिया जाय, उन्हें कठोर से कठोर सजा दी जाय। लेकिन साथ ही उन कारणों की पड़ताल कर उनके समाधान की कोशिशें भी जारी रहे, जो उन्हें हाथों में पत्थर उठाने पर मजबूर कर रहे हैं। ईवीएम ले जाते सैनिकों को मारने वालों को सजा में किसी भी तरह की रियायत नहीं होनी चाहिए, लेकिन साथ ही उन्हें उन जैसा बनाने की कोशिश की जाय, जो उसी वीडियो में सैनिकों को वहां से सुरक्षित निकालते नजर आ रहे हैं।
आपको इसके पीछे की रणनीति समझनी होगी कि एक लंबी चुप्पी के बाद, चुनाव के दौरान ही अब्दुल्ला बाप बेटे ने पत्थरबाजों के समर्थन में बयान क्यों दिया। उन्होंने चुनावी फायदे के लिए ऐसा बयान दिया, ताकि पत्थर चलाने वाले भी उनके पक्ष में वोट कर सकें। गौर करने वाली बात है कि जिसे पुलिस जीप की बोनट पर बांधा गया, वो भी वोट देकर ही आ रहा था।
मेरा मानना है कि अजित डोभाल एक सफल सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दे सकते हैं, पड़ोसी देश से सामरिक संबंधों पर रणनीति बना सकते हैं, लेकिन उनसे यह आशा रखना कि वे भारत के भाल कश्मीर को इस लोकतंत्र का मणि बना सकते हैं, ये मूर्खता है। क्योंकि अब पत्थर चलाने वालों पर पैलेट की बौछार करके कश्मीर नहीं सुलझाया जा सकता।