आम आदमी की आवाज को अराजकता का नाम देकर उसे दबाने की कोशिश में देश पर थोपा गया आपातकाल आजाद भारत का वह काला दिन था जब हुक्मरान की छवी पर हावी होती तानाशाही ने देशवासियों को स्वतंत्रता की आबो हवा में परतंत्रता की दस्तक का कटु अनुभव कराया था| लेकिन आज उस घटना के 39 साल बाद भी इस बात का सुकून है कि हमारे लोकतंत्र की चाबी उस जम्हूरियत के हाथो में है जो सता की मद में मदमस्त हाथी को साधने की कुवत रखता है और इसके पास माननीय को आम आदमी और एक आम नागरिक को सता सौंपने का अचूक हथियार है और यह हथियार निजी महत्वाकांक्षा को देश हित के ऊपर हावी होते नहीं देख सकता|
बुधवार, 25 जून 2014
गुरुवार, 5 जून 2014
भाई खुद पर भी तो रहम करो,,,,,
पिछले 10 महीने से
यानी अगस्त 2013 से मै डीटीसी की बस नंबर 534 का नियमित यात्री हूँ| चुकी यह बस अपने
सफ़र में यमुना नदी पार करती है इसलिए कृष्ण को उनकी बंसी के लिए तट देने वाली इस
पावन नदी को हर दिन आधुनिकता की महामारी से जूझते देखता हूँ| विकास की बात करने
वाली बिगड़ी व्यवस्था के हाथो बर्बाद होना तो जैसे इस नदी की बदनसीबी बन गयी है|
लेकिन आरामपरस्त युवा पीढी जिसे भविष्य के भारत का कर्णधार कहा जा रहा है, वे भी भारत
की इस अमूल्य धरोहर का सम्मुल नष्ट करने पर आमादा हैं| यह बात मै यूँ ही नहीं कह
रहा हूँ, मेरी आँखे वो हकीकत देखी है कि कैसे आस्था का ढोंग करने वाले बहुरूपिये
अपने घर से यमुना तट तक किसी कीमती सामान की तरह गाड़ी की डिक्की में सहेज कर लाए
हुए घर के कूड़े को इस नदी में बहा देते हैं| जी हाँ, आप दिल्ली में यमुना पर बने
किसी भी सड़क पुल पर चले जाईए खासकर सुबह ऑफिस जाने के समय आपको ऐसे अनगिनत नज़ारे
दिख जाएँगे कि लोग कैसे अपने घर के अवशिष्ट को इस भारतीय विरासत को अपवित्र बनाने
के काम ला रहे हैं| एक काम और जिसे करना लोग हिन्दू धर्म की रीति समझते हैं, आप सब
भी शायद ये करते हों जब तक मै इसके कुफल से अनभिग्य था मै भी किया करता था| यह काम
है भगवान् पर चढ़ाए हुए फूलो को सहेज कर नदी में फेंकना भले ही वो सड़ क्यों नहीं गए
हों| हद तो तब हो जाते है जब लोग ऐसे सड़े गले फुल नदी में बहाकर उसकी ईह लीला की
समाप्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं और फिर हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं| वाह रे ‘आँख
के अंधे नाम नयनसुख|’ जो लोग ऐसा करने की सलाह देते हैं या जो इसके कुप्रभाव जानते
हुए भी यह सब करते हैं उन अक्ल के अन्धो से मै पूछना चाहूंगा कि यह किस धार्मिक
ग्रन्थ में लिखा है कि बेकार फूलो को नदी में ही फेकना चाहिए और अगर कहीं लिखा भी
हो तो मै उसकी जगह ‘माखन लाल चतुर्वेदी जी’ द्वारा व्यक्त की गयी पुष्प की अभिलाषा
को तरजीह दूंगा कि,
‘’मुझे तोड़ लेना
वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमी पर शीश
चढाने जिस पथ जावें वीर अनेक|’’
अगर आंकड़ो की बात
करें तो वेदों में पवित्र कही गयी इस नदी को अपवित्र बनाने के 57 फीसदी उस पानी का
योगदान है जो मॉल मूत्र के रूप में यमुना में गिरता है| साथ ही यह भी गहन चिंतन का
विषय है कि लाखो करोड़ रूपये इसकी सफाई के नाम पर बहाए जाने के बाद भी आज स्थिति यह
है कि 3296 मिलियन लीटर गंदा पानी हर रोज यमुना में बहाया जाता है|
आज ‘पर्यावरण दिवस’
पर ही सही हमें अपनी इन प्राकृतिक विरासतों की हिफाजत के लिए सोचना चाहिए, नहीं तो
सुरसा की भांति मुंह फैलाए खड़ी यह समस्या एक दिन पुरी मानवता को ही अपनी चपेट में
ले लेगी लेकिन तब तक बड़ी देर हो चुकी होगी और हम इसका कुप्रभाव सहन करने के सिवा
कुछ नहीं कर पाएँगे| इसलिए अपनी ही बर्बादी का सामान तैयार करते समय हमें खुद पर
ही रहम करने की आवश्यकता है,,,,,,
बुधवार, 4 जून 2014
क्या यही है उत्तर प्रदेश?
‘’एक आंसू भी हुकूमत
के लिए ख़तरा है,
तुमने देखा नहीं
आँखों का समंदर होना.’’
उत्तर प्रदेश की
धरती से आने वाले ‘मुनव्वर राणा’’ जी का यह शेर उसी उत्तर प्रदेश के उस निठल्ले और
बेकार हुक्मरान को समर्पित है जिसके कारण आज यह गौरवशाली राज्य बदसूरत वर्तमान में
जीने को मजबूर है और अपने स्वर्णिम अतीत को याद कर आंसू बहा रहा है| खुद का और बाप
का फोटो लगा लैपटॉप बांटकर शिक्षा को भी प्रचार का माध्यम बना देने वाला कृष्ण कुल
का कंस सदृश शासक यह भूल गया कि शिक्षा के लिए एक शांत और भयरहित वतावरण का होना
भी नितांत आवश्यक है| अभी कुछ घंटे पहले खबर आई है कि प्रतापगढ़ में अपना रिजल्ट
लेने जा रही आठवी क्लास की एक बच्ची को अगवा कर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म को
अंजाम दिया गया है|
वाह रे नाकाम बाप के
निकम्मे औलाद यही है तुम्हारी सरपरस्ती कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के साथ
पुरी दुनिया में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला उत्तर प्रदेश आज संयुक्त राष्ट्र
संघ में बदनामी के बोल सुनने को मजबूर है| बदायूं में दो नाबालिग लडकियों के साथ
हुई बर्बरता के बाद भी यूपी में महिलाओ के खिलाफ अपराध बढ़ता ही जा रहा है| यूपी
सरकार के कुकृत्यो ने हवस के पुजारियों के हौसले कितने बुलंद कर दिए हैं इस बात का
अंदाजा हम इस बात से ही लगा सकते हैं कि एक महिला जज के साथ भी दुष्कर्म का मामला
सामने आया है|
यूपी में महिलाओं के
खिलाफ बढ़ती यह घटनाएं कहीं, नेता नाम को बदनाम करने और लोहिया के समाजवाद की
सार्थकता समाप्त कर देने वाले ‘मुलायम’ के बलात्कारियों से हमदर्दी का नतीजा तो
नहीं है, जो उन्होंने कुछ दिनों पहले अपने एक भाषण के माध्यम से व्यक्त किया था कि
‘लड़के हैं गलती हो जाती है|’ कैसी विडम्बना है कि ‘सुचेता कृपलानी’ और ‘सरोजिनी
नायडू’ की राजनीतिक विरासत वाला राज्य हर दिन औरतो की अस्मत लुटते देखने को मजबूर
है और युवा मुख्यमंत्री निर्दोष शिक्षकों पर लाठियां बरसवा रहे हैं|
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