आम आदमी की आवाज को अराजकता का नाम देकर उसे दबाने की कोशिश में देश पर थोपा गया आपातकाल आजाद भारत का वह काला दिन था जब हुक्मरान की छवी पर हावी होती तानाशाही ने देशवासियों को स्वतंत्रता की आबो हवा में परतंत्रता की दस्तक का कटु अनुभव कराया था| लेकिन आज उस घटना के 39 साल बाद भी इस बात का सुकून है कि हमारे लोकतंत्र की चाबी उस जम्हूरियत के हाथो में है जो सता की मद में मदमस्त हाथी को साधने की कुवत रखता है और इसके पास माननीय को आम आदमी और एक आम नागरिक को सता सौंपने का अचूक हथियार है और यह हथियार निजी महत्वाकांक्षा को देश हित के ऊपर हावी होते नहीं देख सकता|
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