‘’मेरे मन की गंगा का तेरे मन की यमुना से
बोल राधा बोल संगम
होगा कि नहीं,,,,,’’
1964 में आई हिंदी
फिल्म ‘संगम’ का यह गीत कुछ शब्दों के हेर फेर के साथ अगर इस अंदाज में कहा जाय,
‘’तेरे नापाक इरादों
का अंत हमारी भूमी से
बोल शरीफ बोल कभी होगा
कि नहीं,,,,’’
तो यह भारत की आजादी
के बाद से ही सुरसा की भांति मुंह फैलाए खड़ी उस समस्या पर यक्ष प्रश्न होगा जिसकी
रक्त पिपासा दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है| आजादी के बाद से भारत पाकिस्तान के बीच
चार जंग लड़े जा चुके हैं और चारो में पाकिस्तान ने मुंह की खाई है| लेकिन ऐसा नहीं
कि भारत की कोइ छति नहीं हुई, भारत की भी छति हुई है और अपूर्णीय छति हुई है|
लेकिन अफ़सोस कि आज भी समस्या जस के तस बनी हुई है| आए दिन ख़बरें आती हैं,
‘पकिस्तान द्वारा सीजफायर के उलंघन में इतने सैनिक शहीद, कश्मीर में घुसपैठ की
कोशिश को नाकाम करने में इतने सैनिक शहीद| किसी भी शहादत के बाद हम गर्व से कहते
हैं कि हमारा सिपाही अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हुआ, हमें फक्र है|
लेकिन इसका एक पहलु और भी है, और हम उसे नहीं देखते जब ‘एक प्रेयसी की मेहंदी
सूखने से पहले ही मांग उजड़ जाती है, हाथो में राखी लिए एक बहन अपने भाई का मृत
शरीर देखने को विवस हो जाती है, एक माँ की अंधी आँखों के लिए जीवित और मृत शारीर
में फर्क करना मश्किल हो जाता है और एक बुढा बाप जवान बेटे के शव पर सर रखकर विलाप
करता है|
हमारे नए
प्रधानमंत्री जी के शपथ में शरीक होने आए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ‘शरीफ साहब’ ने
जब कहा कि, ‘हम वहीँ से बात आगे बढ़ना चाहेंगे जहाँ से अटल जी के समय में बात आगे
नहीं बढ़ पाई थी’ तो मन में एक आशा जगी है कि शायद अब इन गोलों बारूद बम हथियार की
जगह बातचीत से रास्ता निकलेगा| लेकिन अतीत के आईने में झाँकने से लगता है कि
‘’यह उनकी पुरानी
आदत है इजहारे इश्क करने की,
बढाते है खुद ही हाथ
अपनी और खुद ही खींच लेते हैं|’’
बात चाहे 1948 की
हो, 1965 की, 1971 की या 1999 की पाकिस्तान के नापाक इरादों को हम हर बार देख चुके
हैं, और हर बार हमने अपनी तरफ से बातचीत का रास्ता हमेशा खुला रखा है| लेकिन फिर
भी पकिस्तान हमारी अस्मिता पर हमला करने से कभी बाज नहीं आया| 66 वर्षों के बाद जब
पिछले साल पाकिस्तान में लोकतंत्र का राज कायम हुआ और ‘नवाज शरीफ’ प्रधानमंत्री
बने थे तब उन्होंने कहा था कि ‘मै पाकिस्तान की भूमि का इस्तेमाल भारत में अस्थिरता
फैलाने के लिए नहीं करने दूंगा’ लेकिन तब से अब तक ना ही सीमा पार से सीजफायर का
उल्लंघन रुका और ना ही उधर से शांति वार्ता की कोइ पहल हुई| ‘संगम’ फिल्म के गीत
की कुछ पंक्तियाँ यहाँ सटीक बैठेगी कि,
‘’आप हमारे दिल को
चुरा कर आँख चुराए जाते हैं,
ये एकतरफा रस्मे वफ़ा
हम फिर भी निभाए जाते हैं|’’
अब जबकि भारत ने पहल
की है, पकिस्तान को चाहिए कि वो भारत के साथ बातचीत के लिए कदम से कदम मिलाकर चले
क्योकि पाकिस्तान की राजनीति में ‘शरीफ साहब’ के सबसे बड़े दुश्मन और भारत के साथ
दुश्मनी के हिमायती ‘परवेज मुशर्रफ’ की वास्तविकता दुनिया देख चुकी है|
कुछ दिन पहले गूगल
ने अपने प्रचार के लिए एक वीडियो जारी किया था जिसमे सरहद के नाम पर बांट दिए गए
दो जिगरी दोस्तों की कहानी है जो पुरी जिन्दगी मिलने को बेचैन रहते हैं लेकिन
‘गूगल’ की सहायता से मिलते भी हैं तो तब जब एक पैर कब्र में हैं| यह वीडियो दिखाता
है कि केवल सरहद और सियासत बंट जाने से दिल नहीं बंटते, आज भी पकिस्तान की आवाम का
दिल हिन्दुस्तान की आवाम के लिए और हिंद्स्तान का पाकिस्तान के लिए धड़कता है| आज
भी लोग उस क्रिकेट को नहीं भूले हैं जब बैटिंग करते समय ‘राहुल द्रविड़’ के जूते का
फीता खुल गया था, जिसे शायद भारतीय खिलाडियों ने भी देखा हो लेकिन माहौल उस समय
बदल गया जब पाकिस्तानी टीम के सबसे उम्रदराज खिलाड़ी ‘इन्जेमामुल हक’ ने पीच से आकर
उस फीते को बांधा था| आज भी गाँवो की गलियों में लोग कहा करते हैं कि ‘काश ऐसा होता
कि एक क्रिकेट टीम होती जिसमे सचिन और सोएब एक साथ खेलते, फिर किस देश की हिम्मत
थी हमारे सामने अड़ जाने की| आज भी इस पर चर्चा होती है कि अगर भारत-पाकिस्तान अपने
गिले-शिकवे दूर कर दोस्ती का दामन थाम लें तो फिर हमारे सामने कौन है जो अपनी
दादागिरी दिखा सके| हम आशा करते हैं कि नए प्रधानमंत्री अपने सन्देश रूप में
‘संगम’ फिल्म के एक गीत की इन पंक्तियों को अपने पाकिस्तानी समकक्ष तक पहुंचा पाने
में कामयाब होंगे और यह सार्थक भी होगा कि,
‘’तुझे गंगा मै
समझूंगा तुझे यमुना मै समझूंगा
तु दिल के पास है
इतना तुझे अपना मै समझूंगा|’’
निरंजन कुमार
मिश्रा.
विद्यार्थी-
पत्रकारिता स्नातक.