गुरुवार, 22 मई 2014

जेपी के दो सिपाही फिर एक साथ-

'2स्टेट्स' फिल्म की एक बात मुझे अच्छी लगी थी कि, ‘जवानी में उस दरवाजे को कभी मत ठुकराना जिसके आगे बुढापे में हाथ फैलाना पड़े|’ लेकिन यह जूमला राजनीति में कारगर नहीं है| ये तो अन्दर की बात है कि पहले हाथ छोटे भाई के बड़े बाबू शरद जी ने फैलाया या बड़े भाई के सिपहसलार सिद्धिकी जीने पिछड़ी जाति के मुख्यमंत्री को समर्थन देने के बहाने फिर से कमंडलको रोकने का मार्ग प्रशस्त करने का प्रयास किया| भारत की राजनीति के लिए यह एक अनूठा कदम है कि रंगा-बिल्ला’, ‘चाणक्य-चन्द्रगुप्त’, और छोटे भाई-बड़े भाईसरीके उपनामों से बिहार की राजनीति में प्रसिद्द लालू-नितीश की यह जोड़ी फिर से हाथ मिला चुकी है| जेपी आन्दोलन के स्तम्भ रहे इन दो नेताओ के साथ से यह मुमकिन है कि रामविलासजी के चिराग तले अन्धेरा जाय| राजग गठबंधन में बिहार के मुख्यमंत्री पद का सपना संजोये रालोसपा के कुशवाहा जी का सपना सपना ही रह जाय और सुशील मोदी जी को भी इतिहास एक भूतपूर्व उपमुख्यमंत्री के तौर पर ही याद करे|
जेपी आन्दोलन से उपजी लालू-नितीशकी यह जोड़ी दिन-ब-दिन राजनीति में नए प्रतिमान स्थापित कर रही थी| लेकिन थ्री इडियट्समें आर माधवनने क्या खूब कहा है कि, ‘दोस्त फेल हो जाय तो दुःख होता है, लेकिन दोस्त पास हो जाय तो उससे भी ज्यादा दुःख होता है|’ वहीँ बात यहाँ भी लागू होती हैं| वीपी सिंह की खिचड़ी सरकार गिरने के बाद नितीश की पब्लिसिटी में कमी और अडवाणीका रथ रोकने के बाद एक ख़ास समुदाय और निचली जातियों में लालूकी बनती पैठ ने साम्प्रदायिकता के विरुद्ध खड़े राजनीति के इस केंद्र को बांटने का काम किया और 1994 में 20 साल पुरानी यह जोड़ी दो भाग में बंट गयी| 1995 के विधानसभा चुनाव में नितीश की समता पार्टी को मिले 7 सीटों ने एक नए साथी की तलाश का तलब पैदा किया| यह साथी वही भाजपाथी जो आज भंवर में फंसी नितीश की नैया का कारण बनी हुई है और जिसके लिए नितीश कुमार आज कहते हैं कि मिट्टी में मिल जाएँगे लेकिन भाजपासे हाथ नहीं मिलाएंगे|
आज स्थिति यह थी कि 20 साल पहले बिछड़ चुके इन दोनों भाइयो के राजनीतिक सितारे गर्दिश में थे| इस चुनाव में जातिगत और भ्रष्टाचार के मुद्दों से हटकर येदियुरप्पाऔर रामविलास पासवानसे हाथ मिलाने के भाजपा के प्रयोग को सफल हुआ देख कर नितीश को भी शायद इसकी लालसा जगी| और समाजवाद के सांचे से निकलकर साम्प्रदायिकता का लबादा ओढ़े भाजपा से हाथ मिलाने में गुरेज ना करने वाले नितीश कुमार ने वसूलो को रद्दी की टोकरी में डाल कर न्यायालय द्वारा अपराधी करार दिए गए लालू यादवसे हाथ मिला लिया| अब यह देखने वाली बात होगी कि जैसे कमंडल को रोकने के लिए वीपी सिंह ने मंडलका सहारा लिया था वैसे ही जेपीके ये दो सिपाही ऐसा कौन सा रास्ता अख्तियार करते हैं जो भारतीय राजनीति में इनका पुराना स्थान वापस दे सके| यह भी सोचने वाली बता है कि क्या नरेन्द्र मोदी की विकास के साथ हिंदुत्व की राजनीती का मुकाबला पिछडो, दलितों और धर्मनिरपेक्षता के मुद्दों से किया जा सकता है| 20 साल के साथ के बाद 20 साल पहले अलग हो चुके जेपी के दो सिपाहीयो को फिर से एक साथ लाने का श्रेय मोदीके साथ-साथ मांझीको भी दिया जाना चाहिए|


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