सोमवार, 5 मई 2014

कुंठित समाज का दर्पण

''सजा ये है कि नींदे छीन ली दोनों की आँखों से,
खता ये थी कि इन दोनों ने मिलकर ख़्वाब देखा था|''

जहाँ से कभी भी असमानता दूर नहीं हो सकती उसका नाम भारत हैं,,,,क्या सितम है कि  एक वयोवृद्ध उपनाम के कगार पर पहुंचे नेता जी के नव वैवाहिक जीवन की पाती अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं जबकि कुंठा की शिकार हो चुकी कृष्ण की यह धरती आज प्रेम के ऐसे कुफल देखने को विवश हैं जो अखबारों के भीतरी पन्नो के किसी कोने में दफ़न हो कर रह जाता है,,,,,

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