गुरुवार, 15 मार्च 2018

तारीखों के 'राही'...

'हुआ उजाला तो हम उनके नाम भूल गए,
जो बुझ गए हैं चराग़ों के लौ बढ़ाते हुए...'

किसी कवि की ये पंक्तियां हमें इसे लेकर आगाह करती हैं कि हमारी इस अक्षुण संस्कृति के अथाह समंदर में एक बूंद का योगदान देने वालों को भी हम उसी शिद्दत से याद करें, जैसे बड़ी शख्सियतों या अपने स्वार्थ से जुड़े लोगों को याद करते हैं... और यह सिर्फ किसी शख्सियत की बात नहीं है, यह 'तारीख' की बात भी है, जो अपने आप में इतिहास का एक बड़ा कालखण्ड समेटे हुए हैं। यूं तो कहा जाता है कि इतिहास एक दिन से नहीं बनता, लेकिन इस इतिहास में कई ऐसे 'एक दिन' होते हैं, जो खुद में इतिहास होते हैं। आज की तारीख यानि 15 मार्च भी कुछ वैसी ही है। 
आज का दिन, वेदव्यास के महाकाव्य को हमारी समझ की भाषा में रूपांतरित कर महाभारत के रूप में चलचित्र के माध्यम से हम तक पहुंचाने वाले उस राही मासूम रज़ा से जुड़ा है, जिन्होंने 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' को हर गृहस्त आश्रम के लिए सूक्ति बना दिया और जिनकी कलम से निकले ये शब्द अपने घर, अपने देश के लिए तड़पते हर प्रवासी के पीड़ा की अभिव्यक्ति बन गए कि 'हम तो हैं परदेश में, देश में निकला होगा चांद...' राही मासूम रज़ा अदब की दुनिया के उन चंद हस्ताक्षरों में से एक थे, जिन्होंने साहित्य में भाषा की सीमारेखा को समाप्त किया। शेर-ओ-शायरी और ग़ज़लों की दुनिया के तो वे बेताज बादशाह हैं ही, हिंदी साहित्य को भी उन्होंने अनमोल कृतियां दी है। हिंदी सिनेमा को तो नाज़ होना चाहिए कि उसके साथ राही मासूम रजा का नाम जुड़ा। कई अनाड़ी हीरे को पत्थर समझ लेते हैं। मुहब्बत को बदकिरदारी का नाम देकर अलीगढ़ के उर्दू विभाग ने राही को निकाल दिया था। लेकिन कहते हैं न कि जो जगह दिल में बसी हो, उसकी यादें पीछा नहीं छोड़तीं, राही ने अलीगढ़ को याद करते हुए अपने एक दोस्त को एक नज्म लिखी थी, जिसके दो शेर हैं:
'...ऐ सबा तू तो उधर से गुजरती होगी
तू ही बता अब मेरे पैरों के निशां कैसे हैं,
मैं तो पत्थर था फेंक दिया, ठीक किया
अब उस शहर में लोगों के शीशे के मकां कैसे हैं...'
गौरतलब यह भी है कि महाभारत धारावाहिक से मिली प्रसिद्धि के बाद अलीगढ़ के उसी उर्दू विभाग ने राही को इज्जत के साथ आमंत्रित कर उनका सम्मान किया था। नाम और टाइटल में सियासत का सामान ढूंढने वाली वर्तमान राजनीति को उस राही मासूम रज़ा के बारे में पता होना चाहिए, जिसके पास वरिष्ठ भाजपा नेता आडवाणी जनसंघ के नेता दीन दयाल उपाध्याय के ऊपर बनने वाली डॉक्यूमेंट्री का स्क्रिप्ट लिखवाने गए थे, और आडवाणी के यह पूछने पर कि मेहनताना क्या लेंगे? राही का जवाब था- 'दिल्ली में आपके साथ एक वक्त का खाना खा लूंगा...' 65 साल कोई बड़ी उम्र नहीं होती जाने की, लेकिन कहते हैं न कि ईश्वर को भी अच्छे लोगों की जरूरत होती है, आज ही के दिन 15 मार्च 1992 को जन्नत की सफ़र पर निकलते हुए राही अपनी पंक्तियों को सार्थक कर गए कि,
'इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई, 
हम न सोए रात थककर सो गई...'
और इत्तेफाक देखिए कि 'थककर सोने' के अहसास वाले अपने इस शेर को चरितार्थ कर जिस दिन राही इहलोक से रवाना हुए उसी दिन दुनिया #WorldSleepyDay मनाती है... 15 मार्च उस दीन दयाल उपाध्याय के सपनों से भी जुड़ा है, जिनपर बनने वाली डॉक्यूमेंट्री की स्क्रिप्ट राही मासूम रजा ने लिखी थी। 1996 में 14 दिन की सरकार गिरने के बाद अटल जी के नेतृत्व में आज ही के दिन 15 मार्च 1998 को केंद्र में दोबारा भाजपा की सरकार बनी थी। ये अलग बात है कि आज भारी बहुमत से केंद्र में बैठने के साथ-साथ 22 राज्यों तक पहुंचने वाली भारतीय जनता पार्टी अपनी विरासत को बिसारती जा रही है। खैर, सरकार या सियासत से इतनी उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। शहादत को भी सियासत का समान बना लेनी वाली वर्तमान राजनीतिक बिरादरी में से कौन ऐसा है, जिसे याद हो कि कारगिल में तिरंगा फहराने के बाद 26/11 को मुम्बई बचाते हुए शहीद होने वाले मेजर संदीप उन्नीकृष्णन आज ही के दिन 15 मार्च 1977 को जन्मे थे। लेकिन देश की एक बड़ी राजनीतिक बिरादरी को यह तो याद ही होना चाहिए कि जिस दबे-कुचले और पीड़ित-शोषित के नाम पर उनकी सियासी दुकान चलती है, उन्हें वास्तव में सार्थक रूप से सियासत के लिए मुद्दा बनाने वाले कांशीराम भी आज ही के दिन 15 मार्च 1934 को जन्मे थे। बॉल और बल्ले में खेलों की दुनिया को समेटती जा रही वर्तमान पीढ़ी को यह तो जरूर पता होना चाहिए कि सबसे पहले आज ही के दिन 15 मार्च 1975 को हम अपने राष्ट्रीय खेल हॉकी में विश्व विजेता बने थे। आज़ादी के बाद अंग्रेज़ों द्वारा घायल छोड़ी गई इस सोने की चिड़िया को आज ही के दिन 15 मार्च 1950 को योजना आयोग के रूप में विकास की दवा का फॉर्मूला मिला था। तो मूल बात यह है कि हर दिन खास होता है, ये अलग बात है कि उनमें से कुछ उस अहसास से भी जुड़े होते हैं, जिनके लिए राही मासूम रजा ने लिखा कि
'हां उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें
हां वही लोग जो अक्सर हमें याद आए हैं...'