गुरुवार, 29 जनवरी 2015

गांधी के देश में गोडसे की पूजा !



महात्मा गांधी उन चंद महान लोगो की फेहरिस्त में सबसे आगे हैं जिनके विचारों को वैश्विक स्तर पर मान्यता दी जाती है | बात चाहे किसी अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा ‘राजघाट’ पर पुष्पचक्र अर्पण की हो, या संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस मनाए जाने के निर्णय को चीन द्वारा समर्थन की, महात्मा गांधी का व्यक्तित्व सबके लिए अनुकरणीय है | जन्मभूमि भारत और पहली कर्मभूमि दक्षिण अफ्रिका के बाहर गांधी जी के विचारों का सम्मान करने वाले दुसरे देशों में केवल अमेरिका और चीन ही नहीं है. इंग्लैण्ड, इटली, फिलिस्तीन सहित कई देशों में आज गांधीवादी विचारधारा की झलकियाँ देखी जा सकती हैं | जिनके विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व कर गांधी जी ने भारत को आजादी दिलाई उन्ही अंग्रेजो के देश में गांधी जी की प्रतिमा के आगे उनके चाहने वाले नतमस्तक होते हैं | इटली में कुछ दिन पहले तक साझा सरकार में रहे एक प्रमुख राजनीतिक दल ‘रैडिकल इटालियन’ का झंडा गांधी जी के चित्र से सुशोभित होता है | अपनी मांगो के लिए अनशन का रास्ता अपनाने वाले रैडिकल इटालियन’ पार्टी के कार्यकर्ता अपने दल के उस झंडे के साथ आम लोगो के हक़ की आवाज बुलंद करते हैं जिसका पिछले 20 सालो से गांधी जी का चित्र शोभा बढ़ा रहा है | यही नहीं फिलिस्तीन को अलग करने वाली जेरुसल्लम और रामल्ला के बीच एक गाँव में बनी दीवार पर गांधीजी का एक विशाल चित्र उकेरा गया है | इजराईल के हमलो से त्रस्त फिलिस्तीन में भी गांधी जी की विचारधारा से प्रभावित कई संगठन हैं, जो लोगों को अहिंसा के प्रति जागरूक करते हैं | ऐसे ही एक संगठन ने वहां पर ‘गांधी प्रोजेक्ट’ नाम के एक कार्यक्रम चलाया है जिसके माध्यम से अहिंसा और सत्याग्रह के लाभों का प्रचार किया जाता है | गांधी प्रोजेक्ट के तहत ही ‘रिचर्ड एटनबरो’ की फिल्म गांधी को अरबी में डब करवाकर शरणार्थी शिविरों और फिलिस्तीन के अन्य भागो में दिखाया जाता है | अमेरिका में गांधी जी किस तरह से रचे बसे हैं, इस घटना से समझा जा सकता है | सीनेट चुनाव के समय जब हिलेरी क्लिंटन अपने एक संबोधन में यह कह गई कि, ‘गांधी जी सेंट लुई में गैस स्टेशन चलाया करते थे’ तो वहां के लोगों ने इस कथन के विरोध में इतना प्रदर्शन किया कि हिलेरी क्लिंटन को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी थी | हिलेरी क्लिंटन ने बाद में कहा भी कि, ‘मैंने तो यू ही मजाक में कह दिया था, वास्तविकता तो यह है कि गांधी जी बीसवी शताब्दी के एक महान नेता थे |
ये तमाम उदाहरण यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि महात्मा गांधी अपने सुविचारों और सुकर्मों के बल समूचे विश्व में अपनी उपस्थिति बनाए हुए हैं | पर अफ़सोस कि गांधी के ही देश में उनकी विचारधारा को तिलांजली दी जा रही है | गांधी तो आज नहीं हैं और ना ही आ सकते हैं यह कहने कि ‘नाथूराम गोडसे’ मेरा हत्यारा है उसकी पूजा मत करो | लेकिन यह लानत है हम सब पर कि जिनके कारण हम आज आजाद हवा में सांस ले रहे उन्हें के हत्यारों को महिमामंडित किया अजा रहा है और हम चुप हैं | शायद हम बोल भी नहीं सकते क्योंकि हम जिन्हें अपनी आवाज बना कर संसद में भेजते हैं उन्ही से आशा करते हैं कि वह हमारी बात करेंगे लेकिन वर्तमान समय में यह होता नहीं दिख रहा है | गांधी जयंती के दिन ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की शुरुआत कर इसे एक आन्दोलन का रूप देने वाले हमारे प्रधानमंत्री जी भी इस मुद्दे पर खामोशी की चादर ओढ़े हुए हैं | गांधी के इस देश में उनके हत्यारे गोडसे की मंदिर बनाने के लिए भूमि पूजन कर लिया जाता है लेकिन हमारे हुक्मरानों की तरफ से विरोध का एक स्वर मुखरित नहीं हो पाता है | आखिर क्यों, आखिर क्यों वे सब लोग खामोश हैं जो खुद को गांधी का उतराधिकारी बताते हैं  

तालियाँ बजती रहेंगी,,,



''…बेटियां जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रही थी,
पिता तुम पर गर्व है चुप-चाप जाकर बोल आई.''
'डॉ. कुमार विश्वास की यह पंक्ति अपने पिता की शहादत को सलाम करती एक बेटी के आत्म गौरव का बखान कर रही है. एक सच्चे भारतवासी के रूप में यह बेटी भाग्यशाली है, क्योंकि यह उस पिता की पुत्री है जिसने खुद की कुर्बानी देकर इस मातृभूमि का ऋण चुकाया है. आँखें भले ही पिता से बिछड़ने के दुःख से आंसुओं से भरी है लेकिन दिल में गार्वानुभुती होगी खुद को माँ भारती के इस महान बेटे की बेटी कहने में.
भारत की संप्रभुता अपर आंच ना आए इसके लिए 'कर्नल एम.एन. राय' ने खुद की कुर्बानी दे दी और अपने व्हाट्सअप स्टेट्स को चरितार्थ कर गए. धरती रूपी रंगमंच पर माँ भारती के वीर सपूत का किरदार निभाने वाले कर्नल के रोल का तो पटाक्षेप हो गया लेकिन इस वास्तविक रंगमंच पर हिन्दुस्तान का यह सिपाही वह कर गया जिसके लिए हमेशा तालियाँ बजती रहेंगी।
मैने कहीं पढ़ा था कि मानवता और अहिंसात्मक रवैया भारत को विश्व परिदृश्य में एक अलग रूप में दिखाती है लेकिन कभी-कभी भारत को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है. ‘कर्नल एम.एन. राय’ भी शहीद नहीं होते अगर उन्होंने मानवता पर पर्दा डाल दिया होता. सैन्य अधिकारियों व स्थानीय लोगों के मुताबिक, मंगलवार को मुठभेड़ स्थल पर आतंकी आबिद के पिता जलालुद्दीन ने कर्नल राय को बताया कि उनका पुत्र आत्मसमर्पण करना चाहता है. जलालुद्दीन के दूसरे पुत्र उवैस ने भी सुरक्षाकर्मियों से आग्रह किया कि वे फायरिंग रोक दें. उसका भाई लड़ना नहीं चाहता, वह समर्पण करने को तैयार है. आतंकी के परिजनों के यकीन दिलाए जाने पर कर्नल राय ने अपने जवानों को फायरिंग रोकने को कहा. इसके बाद कर्नल राय खुद आतंकी का समर्पण कराने के लिए उसके ठिकाने की तरफ बढ़े तो आतंकी ने मौका पाकर फायरिंग कर दी. इसमें कर्नल जख्मी हो गए, लेकिन जमीन पर गिरने से पहले उन्होंने अपने साथियों संग जवाबी फायर कर दोनों आतंकियों को भी मार गिराया.
आतंकी को मारने की बजाय उसे गिरफ्तार करने के विकल्प वाले मानवता की पुकार ही ‘कर्नल’ के परिजनों के चीत्कार का कारण बन गयी. शत-शत नमन इस वीर सपूत को.

रविवार, 25 जनवरी 2015

गणतंत्र दिवस की शुभकामना.



गणतंत्र दिवस की शुभकामना आप सब को मेरी ओर से,
है मेरी कामना भारत चले विकास के पथ पर चहुँ ओर से.
गणतंत्र दिवस की शुभकामना हम उन सब को भी देते हैं,
जो 65 साल के गणतंत्र भारत में भी भूखे पेट ही सोते हैं.
उन उल्लासित बच्चों को भी जो ले लो झंडा चिल्लाते हैं,
एक निवाले के लिए तिरंगा का सौदा कर मुस्कुराते हैं.
इस गणतंत्र दिवस की शुभकामना उन कर्णधारों को भी,
जो फटेहाल होने के कारण मैकडोनाल्ड में ना खा पाते हैं.
शुभकामना गणतंत्र दिवस की उस पतिव्रता जशोदाबेन को,
जो पीएम की पत्नी होकर भी मायके में जिन्दगी बिताती है,
ओबामा के संग मिशेल को देख के अपने दिल की ख्वाहिस को,
अपने साहब की तौहीनी जान मन में ही दबा जाती है.
देश के वीर जवानो और उनके परिवार जनों को भी,
दिल से इस गणतंत्र दिवस की शुभकामना हम देते हैं,
रहे सलामत देश की आन, बान और शान इसलिए,
देश हित के ऊपर जो हरदम निजी हित का त्याग कर देते हैं.
देशहित जो गुमनामी का चादर ओढने से ना कतराते हैं,
उन आईबी और रॉ के वीरो को भी शत बार नमन हम करते हैं,
देशहित जान गँवा कर भी जो शहीद नहीं कहलाते हैं,
उन वीरो को भी गणतंत्र दिवस की शुभकामना हम देते हैं.

बुधवार, 21 जनवरी 2015

’49 दिन’ से आगे,,,

वर्तमान समय में दिल्ली की फ़िजा चुनावी रंग में आकंठ डूबी हुई है | आकंठ इसलिए कि सुबह के सैर से लेकर, बस-मेट्रो की बतकही, स्कुल-कॉलेज-ऑफिस से लेकर चाय की दूकान और पार्कों के प्रेमियों से लेकर लाल बत्ती की ट्रैफिक पुलिस, सब अपनी मांगो और उपलब्धियों के आधार पर दिल्ली विधानसभा का चुनावी गणित सुलझाने में लगे हैं | राजनीतिक बहस को समय की बर्बादी समझने वाला युवा वर्ग भी इस बार के चुनाव में दिलचस्पी ले रहा है | दिल्ली मेट्रो, जहाँ हर बोगी में आपको ऐसे जोड़े दिख जाएंगे जो दुनिया के रंजो-गम से बेखबर अपनी ही दुनिया में मशगुल रहते हैं | लेकिन दिल्ली मेट्रो में मेरा दीदार एक ऐसे नज़ारे से हुआ जिससे मुझे लगता है कि उस कवि का सन्देश युवा भारत तक पहुँच चुका है जिसने कभी कहा था, ‘बच्चों तुम तक़दीर हो कल के हिन्दुस्तान के’ |
जेपी आन्दोलन के समय भी युवा जोश उभर कर सामने आया था, लेकिन बाद में वह आत्मस्वार्थसिद्धि की आग में जल कर राख हो गया | लोकपाल के लिए अनशन कर रहे अन्ना हजारे के साथ भी युवक-युवतियों की फ़ौज खड़ी हुई थी लेकिन जब तक ये उस आन्दोलन में अपनी सहभागिता समझ पाते तब तक आन्दोलन ही बिखर गया | माँ-बहनों की सुरक्षा पर जब सवालिया निशान लगा तब भी इस भारत का मुस्तकबिल बिना किसी नेतृत्व के देश के सबसे बड़े दरवाजे पर अपना प्रश्न लेकर गया था, परन्तु जनहित को सियासत के नजरिये से देखने वालो ने उस मुद्दे को भी राजनीति का अखाड़ा बना डाला | कहने का तात्पर्य यह है कि सियासी जमात के साथ खड़े होकर या उस रूप में ढल कर युवा भारत सवा सौ करोड़ भारतीयों के सपनो को साकार करने का रास्ता अख्तियार नहीं कर सकता है | यदि कर सकता तो जेपी के लिए लाठियां खाने वाला लालू यादव चारा घोटाले में जेल नहीं जाता | यदि युवा भागीदारी से ही राजनीतिक परिवर्तन आने वाला होता तो अन्ना हजारे का कुनबा उन राजनीतिक पार्टियों में ही नहीं बंटता जिनके करतूतों के खिलाफ वे जंग छेड़े थे | यदि इंडिया गेट पर लाठियां खा लेने भर से ही बहन-बेटियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो जाने वाली होती तो आज भी अखबारों के पन्ने महिला उत्पीड़न की ख़बरों से नहीं भरे होते |  
वर्तमान समय के आरोपों-प्रत्यारोपो की राजनीति से तटस्थता और मुद्दों के प्रति जनता को जागृत कर के युवा भारत, हिन्दुस्तान के मुस्तकबिल को संवार सकता है | प्रेमिका की बातों से सहमत नहीं होकर भी सहमती में सर हिलाने वाला एक युवक अगर राजनीतिक मुद्दों पर प्रेमिका की दलीलों को सिरे से नकारता है तो कारण की तह में जाना जरुरी है | नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर हाथ में हाथ डाले मेट्रो में चढ़ने वाले युवक-युवती पर लोगों की ध्यान तब जाती है जब दिल्ली चुनाव के ऊपर उनके बहस की शोर यात्रियों की सुविधा के लिए मेट्रो द्वारा सुनाए जाने वाले निर्देशों से ऊँची हो जाते है | दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में युवती की पसंद ‘किरण बेदी’ के ऊपर केजरीवाल को साबित करने के लिए युवक द्वारा दिए गए दलील चलती मेट्रो में ही समर्थक जुटा लेती है | युवक का यह कहना सच में चिंतनीय है कि, ‘’भारतीय राजनीति में ‘अरविन्द केजरीवाल’ अकेला ऐसा नेता है जो अपनी गलती कबूल करता है, और जनता से उसके लिए माफी भी मांगता है | जनता उसे माफ़ नहीं करे यह अलग बात है | अपने-अपने राजनीतिक कुनबे के नेताओं की बदजुबानी को सही ठहरा कर भी ‘नेता’ बने रहने वाले राजनीतिज्ञों की इस रेस में अरविन्द केजरीवाल भले ही पीछे छुट जाय लेकिन अगर भारतीय राजनीति में ‘आप’ नामक पार्टी का उद्भव नहीं हुआ होता तो आज भी आम आदमी ‘घोषणापत्र’ की सार्थकता से मरहूम होता, केवल कहने को ही सही हर राजनीतिक पार्टी भाई-भतीजावाद से किनारा नहीं करती |’’
बहस के इस मोड़ तक मेरा गंतव्य आ चुका था और मुझे मेट्रो से उतरना पड़ा लेकिन मन में ही उस युवक की बाते दोहराते हुए मैं अतीत में पहुँच गया, जब मोबाईल चोरी होने पर  एफआईआर लिखने में आनाकानी करने वाले एक पुलिस इंस्पेक्टर से की गयी बहस में मुझे भी सुनने को मिला था, ‘ज्यादा केजरीवाल मत बन’ | पुलिस इंस्पेक्टर का नाम जान जाने के बाद भी मैं उसको वाजिब जवाब नहीं दे सका क्योंकि ‘दिल्ली में केजरीवाल नहीं था |’