सियासत, सेक्स और हवस का नंगा नाच दिखाकर, क्रूरता की एक गन्दी कहानी बयां कर साल 2012 हमसे रुखसत हो रहा है। इस साल एक ओर जहां हमने विश्व पटल पर अपनी एक अलग पहचान बनाई, वही दूसरी ओर कई जाने माने लोग अपनी बेशकीमती यादो के साथ हमें छोड़ गए। यह साल कई ऐतिहासिक मुद्दों के लिए भी जाना जायेगा। जहां इस साल मुंबई हमले के एकमात्र जिन्दा आतंकी अजमल कसाब को फांसी हुई, वही इस साल को घोटालो का साल कहना गलत नहीं होगा। मार्च 2012 में जब नियंत्रक महालेखा परीक्षक ने एक लाख छियासी हजार करोड़ के कोयला घोटाले का खुलासा किया तो सारा देश सन्न रह गया। यू पी में 'एनएचआरएम' में दस हजार करोड़ का घोटाला और महाराष्ट्र में 72 हजार करोड़ के सिंचाई घोटाले ने नेताओ के प्रति आम जनता के मन में एक गलत भावना को जन्म दिया। अपनी अनोखी गजल गायिकी से दुनिया भर के गजल प्रमियो के दिलो पर राज करने वाले गजल गायिकी के बेताज बादशाह 'मेहंदी हसन' 13 जून को इस दुनिया को अलविदा कह गए। असम में 19 जुलाई को दो समुदायों के बीच हुए झड़प में चार लोगो की हत्या के बाद उपजी हिंसा ने दंगो और मारकाट का ऐसा रूप लिया जिसने भारत के सांप्रदायिक सदभाव को पूरी तरह हिला कर रख दिया। दंगो की आग से झुलस रहे असम को प्रकृति ने भी अपना भयंकर रूप दिखाया, जिसमे जून से लेकर अगस्त तक मानसून की कहर से 150 से अधिक जाने गई और 2 लाख से अधिक लोग इस भयंकर बाढ़ से प्रभावित हुए। समस्त भारतवासियों को बिना राजनीति में आये भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना दिखाने वाले 'अन्ना हजारे' अपने प्रमुख सहयोगी 'अरविन्द केजरीवाल' को राजनितिक पार्टी बनाने से नहीं रोक सके। धारावाहिक रामायण में हनुमान के किरदार से जन-जन में लोकप्रिय 'दारा सिंह' 12 जुलाई को हमेशा के लिए अपने राम को प्यारे हो गए। छह दिन बाद अर्थात 18 जुलाई को कभी न मरने वाले आनंद भी भगवान को प्यारे हो गए। पुरे साल में भारतवासियों को सबसे ज्यादा दुखी करने वाले माह जुलाई में ही 24 तारीख को सुभास चन्द्र बोस की सहयोगी कैप्टेन लक्ष्मी सहगल का निधन हो गया। पांच अगस्त को एअरहोस्टेस गीतिका की आत्महत्या के बाद, उसकी गुनाहगार के रूप में सुर्खियों में आये हरियाणा के कद्दावर नेता और 'एमडीएलआर' एअरलाइंस के मालिक 'गोपाल कांडा' का सच जब सबके सामने आया तो सबको दांतों तले ऊँगली दबाने को मजबूर कर दिया। अगस्त महीने में ही विलाशराव देशमुख जैसे कद्दावर नेता और ए के हंगल जैसे अभिनेता कल-कलवित हो गए। रोमांस के बादशाह के नाम से मशहूर बॉलीवुड के सबसे सफल निर्देशक यश चोपड़ा भी 31 अक्टूबर को हमें रुला गए। 11 दिसंबर को इस धरती को संगीत का रवि हमेशा के लिए अस्त हो गया। सितार वादन को दुनिया के हर कोने तक पहुचने वाले पंडित रविशंकर परलोक वासी हो गए। ये साल कसाब की फांसी के रूप में मुंबई हमले के शहीदों के परिजनों को एक ख़ुशी दे गया। लेकिन जाते-जाते साल 2012 वहसी दरिंदो का एक ऐसा सच दिखा गया जिसे कोई हिंदुस्तानी कभी नहीं भूल पायेगा। 16 दिसम्बर की रात छह दरिंदो ने चलती बस में एक युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। दिल दहला देने वाली ऐसी घटना पर सारा देश आक्रोशित हो गया। किसी भी प्रदर्शन से अछूते रहने वाले रायसीना हिल्स पर उमड़े हजारो युवक-युवतियों के हुजूम ने दिल्ली की केंद्र सरकार को भी झकझोर कर रख दिया। इस आक्रोश को दबाने के लिए दिल्ली पुलिस ने लाठी चार्ज किया, आंसू गैस के गोले दागे, कड़ाके की ठंढी में पानी के फव्वारे छोड़े गए। लेकिन फिर भी प्रदर्शनकारी डंटे रहे। पर शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था, पुरे देश को जगाकर 13 दिन जिंदगी और मौत से संघर्ष करने के बाद वह युवती पुरे देश को गमगीन कर गई।
शनिवार, 29 दिसंबर 2012
गुरुवार, 27 दिसंबर 2012
युवाओ को मौका-
वर्तमान भारतीय क्रिकेट टीम
के कप्तान महेंद्र सिंह
धौनी के बारे
में यह कहना
बुरा नहीं होगा
कि, 'गर्व सफलता
की सीढिया गढ़ता
है जबकि गुरुर
विफलता की। यदि
आप अपने आत्मविश्वास से
आगे बढ़ कर
कोई काम करते
है तो आपकी
विफलता तय है।
एक कप्तान में
नेतृत्वकारी गुण होने के
साथ-साथ अच्छा
प्रदर्शन करने की काबिलियत भी
होनी चाहिए। जिसका
वर्तमान में धौनी में
घोर आभाव दिख
रहा है। अगर
आप खुद ही
अच्छा प्रदर्शन नहीं
कर पा रहे
है तो फिर
इसके लिए टीम
के दुसरे खिलाडियों को
किस मुह से
कहेंगे। सचिन तेंदुलकर भी
जब अपनी कप्तानी में
अच्छा नहीं खेल
पा रहे थे
तो उन्होंने खुद
ही कप्तानी से
इस्थिपा दे दिया था।
धौनी को इनसे
सीख लेनी चाहिए।
सौरभ गांगुली के
सन्यास लेने के
बाद धौनी ने
ही कहा था,
कि टीम में
अब युवाओ को
मौका दिया जाना
चाहिए। तो फिर
ये ही इस
कर्तव्य से पीछे क्यों
हट रहे है।
धौनी के कारण
ही किसी नए
विकेट कीपर को
भी मौका नहीं
मिल पा रहा
है। क्योकि टीम
में एक ही
विकेट कीपर रह
सकता है, और
जब एक कप्तान ही
विकेट कीपर हो
तो फिर उसकी जगह
कोई कैसे ले
सकता है। धौनी
कहते सुने जाते
है कि कोई
नया विकल्प ढूंढ़
कर लाइए तो
मै कप्तानी छोड़
दूंगा। तो ये
क्यों नहीं समझ
रहे है कि
इन्हें जब कप्तानी सौपी
गई थी उस
समय ये भी
नए थे, फिर
कैसे भारत को
दो-दो विश्व
विजेता का ताज
पहना दिए। क्या
पता कोई दूसरा
इनसे भी आगे
निकल जाय। इनके
गलत निर्णय और
नेतृत्व की वजह से आस्ट्रेलिया तो पहले ही
भारत को धुल
चटा चूका है।
अभी कुछ दिन
पहले इंगलैंड भी
28 साल
बाद हमारे ही
घर में हमको
हमारी औकात दिखा
दिया। 25 दिसम्बर को
पाकिस्तान के खिलाफ खेले
गए टी 20 मैच
का परिणाम शायद
कुछ और ही
होता, अगर मलिक
जैसे बल्लेबाज के
लिए भुवनेश्वर कुमार
का एक ओवर
बचा कर रखा
गया होता। इन
सब असफलताओ से
सीख लेकर धौनी
को किसी भी
एक फॉरमेट में
युवाओ के लिए
जगह खाली करनी
चाहिए। ये खुद
उनके लिए भी
अच्छा होगा और
भारतीय क्रिकेट के
लिए भी। खेल
में हार जीत
तो होती ही
रहती है। लेकिन
जब एक विश्व
विजेता टीम लगातार
धराशायी होती है तो
प्रशंसको के उम्मीदों को
भारी ठेस पहुचती
है। दूसरी तरफ धौनी की कप्तानी में
शुरू से ही
टीम में एकजुटता का
आभाव दीखता आ
रहा है। सहवाग
और गंभीर से
धौनी का मनमुटाव इनमे
नेतृत्व की कमी दर्शाता है।
अभी हाल ही
में इंगलैंड से
टेस्ट मैच के
समय पिच क्यूरेटर को
लेकेर हुआ विवाद
धौनी की काबिलियत पर
सवालिया निशान खड़ा करता
है।
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