रविवार, 14 सितंबर 2014

हिन्दी दिवस, एक बार फिर !

अन्य दिवस की तरह हिन्दी की अहमियत और अपनापन को समझने के लिए एक दिन मुक़र्रर किए जाने की परम्परा आज फिर 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में जगजाहिर कर रही है | भारत के विकास के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा मनसा वाचा कर्मणाका अभाव ही हिन्दी के भी आड़े आता है | आज के दिन घर-घर में हिन्दी अपनाने की वकालत करने वाले लोग जो बचपन से ही बच्चो को हिन्दी सीखाने की सीख देते हैं वे खुद
इस काबिल नहीं है कि इसकी शुरुआत अपने घर से करें | 
14 सितम्बर 1949 को जब हिन्दी को राजभाषा के रूप में अधिग्रहित किया गया था उस समय सर्वसम्मति से यह निर्णय भी हुआ था कि अगले 15 साल में सरकारी कार्यों से अंग्रेजी को पूर्णतः हटा दिया जाएगा | लेकिन यह हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तानियों और हिन्दी का दुर्भाग्य है कि इस गुलामी की निशानी को विकास का पैमाना समझने वाले तथाकथित भारत के खेवनहारो ने 1963 में यह निर्णय लिया कि जब तक सभी लोग सहमत ना हो तब तक अंग्रेजी भारत में बनी रहेगी | आज मुझे भारत का वह अंधकारमय भविष्य दिख रहा है जब ना ही सर्वसम्मती होगी और ना ही हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में अंगीकृत किया जाएगा | ‘गांधी जीके सपनो का भारत बनाने की दिशा में कार्यरत हमारे हुक्मरान शायद यह भी जानते होंगे कि 15 अगंस्त 1947 की रात महात्मा गांधी ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि ‘’जो लोग आज अंगरेजी को भी अपनाने की बात कर रहे हैं उन्हें मै देशद्रोही तो नहीं कह सकता लेकिन वे मातृद्रोही हैं | पर अफ़सोस कि जिन लोगो को गांधी जी ने मातृद्रोही कहा था वे ही आज हमारे नितिनिर्धारक बन बैठे हैं, और आज शिवकुमार बिलग्रामीजी की यह पंक्तियाँ सार्थक होती दिख रही है कि,
‘’धनवान भी इस देश में क्या क्रेज रखते हैं,
हिन्दी सीखाने के लिए अंग्रेज रखते हैं |’’


आज यह खबर आई है कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी’ अमेरिका दौरे के समय ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिन्दी में संबोधित करेंगे | विरोध का मुद्दा दुसरा हो सकता है लेकिन आज मुझे 'ऑक्सफोर्ड की डिग्री' पर स्टेशन पर चाय बेच कर अर्जित की गयी शिक्षा भारी प्रतीत होती दिख रही है, जब हमारे प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से लगातार 65 मिनट तक बिना सर नीचा किए धाराप्रवाह भाषण देते हैं और उस 10 साल के अंधियार को ख़त्म करते हैं जब आत्मगौरव के समय भी एक सरदार असरदार प्रतीत होता था | यह गर्व करने वाली बात है कि भूटान और जापान के हुक्मरान 'मोदी' को हिन्दी में सुनते हैं (माध्यम अलग हो सकता है ) और अब बारी आने वाली है ‘संयुक्त राष्ट्र अमेरिका’ की | अटल जी के बाद नरेन्द्र मोदी दुसरे ऐसे प्रधानमंत्री होंगे जो संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिन्दी में संबोधित करेंगे | कोइ कुछ भी कहे मुझे गर्व है कि मै यथासंभव अपने संवाद में राजभाषा का उपयोग करता हूँ लेकिन यह भी तय है कि वो समय नहीं आएगा जब मुझे अंग्रेजी नहीं जानने के कारण शर्मिन्दा होना पड़े |

गुरुवार, 11 सितंबर 2014

सैनिको का अपमान


हम बोलेंगे तो बोलेगा कि बोलता है,,,
लेकिन फिर भी बोलना जरुरी है,,,,यह सता का नशा है या अवस्था की मजबूरी ?

अवस्था की मजबूरी तो नहीं होनी चाहिए क्योकि हमारे ये गृहमंत्री उस राजनीतिक विरासत के वारिस हैं जहाँ एक बुढा फ़क़ीर एक छोटी सी लकुटिया पहने हाथ में केवल एक लाठी लेकर अपने सारे काम खुद करते हुए भी भारत को आजाद कराया | यह वह समय है जब गृहमंत्री क्या प्रधानमंत्री को भी हमारे जवानो का गुणगान करना चाहिए, लेकिन क्या सितम है कि चुनावों के समय जुड़कर प्रणाम की मुद्रा में उठ जाने वाले हाथ आज जूते बाँधने के भी काबिल नहीं रहे |
लेकिन जैसा कि हमारे राजनीतिक गलियारों की परम्परा रही है कि, ‘तुम करो तो गलत नहीं फिर हम करें तो क्या परेशानी’ यह संकेत काफी है साबित करने के लिए कि इस घटना के कारणों का भी ऐसा जादुई खाका खींचा जाएगा जो वास्तविकता का पटाक्षेप करने के लिए पर्याप्त होगा | वैसे भी किसी शायर ने ठीक ही फरमाया है,
‘’जिनके आँगन में अमीरी का सजर लगता है,
उनका एब भी जमाने को हुनर लगता है |’’

गुरुवार, 4 सितंबर 2014

शिक्षक दिवस: गुरु शिष्य के अटूट रिश्ते का पर्व



''सात समुन्दर की मसी करूँ लेखनी सब वनराय,                                         पृथ्वी सब कागद करूँ गुरु गुण लिखा न जाय |''

संत कबीर का यह कहना कि 'सात समुद्र के जल को स्याही, जंगल की सभी लकड़ियों को कलम और पूरी धरती को भी कागज बना देने के बाद भी गुरु गुण नहीं लिखा जा सकता है' यह बताता है कि सच में गुरु की महता क्या होती है | गुरु शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है, 'गु' यानी अँधेरे से 'रु' यानी प्रकाश की ओर ले जाने वाला | प्राचीन काल की बात करें तो आरुणी से लेकर वरदराज और अर्जुन से लेकर कर्ण तक सबने गुरु की महिमा को समझा और उनका गुणगान किया है | आज भी सफलता के शिखर पर पहुँचने वाला कोइ भी इंसान अपने गुरु को नहीं भूल सकता है जिन्होंने उसके सपनो को जीया है, उसकी सफलता को खुद का सपना बनाया है |
समाज को समाज बनाने का काम यदि कोइ शिल्पकार करता है तो वह होता है शिक्षक, शिक्षक वह समाजी शिल्पकार है जो बिना किसी मोह के इस समाज को तराशते हैं। शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही नहीं बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्रों को परिचित कराना भी होता है। शिक्षकों की इसी महत्ता को सही स्थान दिलाने के लिए हमारे देश में एक व्यक्ति का नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है और वो हैं एक महान शिक्षाविद, दार्शनिक, चिन्तक और स्वतन्त्र भारत में प्रथम उपराष्ट्रपति, सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन | आज का दिन यानि 5 सितम्बर ही वह पुनीत दिन है जिस दिन इस पुरोधा का जन्म हुआ था | और तमाम पदों पर रहते हुए भी अध्यापन सेवा के प्रति उनकी निष्ठा ही थी कि उनके जन्मदिवस को हम ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाते हैं | भारत ही नहीं वरन समूचा विश्व डॉ राधाकृष्णन के व्यक्तित्व का गुणगान करता है | एक बार उनके स्वागत भाषण में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन कैनेडी ने कहा था, ''अमेरिका की धरती पर एक पगड़ीधारी स्वामी विवेकानंद तथा दूसरी बार डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के रूप में भारतीयता की अमिट छाप जो अमेरिकावासियों के हृदयों पर अंकित हुई है, सदा अमिट रहेगी।’'
लेकिन इसे हमारी विरासत में आधुनिकता का घुसपैठ कहें या भागदौड़ की जिन्दगी में जीवन के प्रथम शिक्षक के प्यार-दुलार और डांट-प्यार से दूरी, आज नई पीढी गुरु-शिष्य परम्परा से दूर होती जा रही है | लेकिन इस बात की प्रमाणिकता में आज भी कोइ संदेह नहीं है कि,
‘’गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है गढ़ी-गढ़ी काढ़े खोट,                                       
 भीतर हाथ सहलाय दे बाहर मारे चोट  |''