हम बोलेंगे तो बोलेगा कि बोलता है,,,
लेकिन फिर भी बोलना जरुरी है,,,,यह सता का नशा है या अवस्था की मजबूरी ?
अवस्था की मजबूरी तो नहीं होनी चाहिए क्योकि हमारे ये गृहमंत्री उस राजनीतिक विरासत के वारिस हैं जहाँ एक बुढा फ़क़ीर एक छोटी सी लकुटिया पहने हाथ में केवल एक लाठी लेकर अपने सारे काम खुद करते हुए भी भारत को आजाद कराया | यह वह समय है जब गृहमंत्री क्या प्रधानमंत्री को भी हमारे जवानो का गुणगान करना चाहिए, लेकिन क्या सितम है कि चुनावों के समय जुड़कर प्रणाम की मुद्रा में उठ जाने वाले हाथ आज जूते बाँधने के भी काबिल नहीं रहे |
लेकिन जैसा कि हमारे राजनीतिक गलियारों की परम्परा रही है कि, ‘तुम करो तो गलत नहीं फिर हम करें तो क्या परेशानी’ यह संकेत काफी है साबित करने के लिए कि इस घटना के कारणों का भी ऐसा जादुई खाका खींचा जाएगा जो वास्तविकता का पटाक्षेप करने के लिए पर्याप्त होगा | वैसे भी किसी शायर ने ठीक ही फरमाया है,
‘’जिनके आँगन में अमीरी का सजर लगता है,
उनका एब भी जमाने को हुनर लगता है |’’
लेकिन फिर भी बोलना जरुरी है,,,,यह सता का नशा है या अवस्था की मजबूरी ?
अवस्था की मजबूरी तो नहीं होनी चाहिए क्योकि हमारे ये गृहमंत्री उस राजनीतिक विरासत के वारिस हैं जहाँ एक बुढा फ़क़ीर एक छोटी सी लकुटिया पहने हाथ में केवल एक लाठी लेकर अपने सारे काम खुद करते हुए भी भारत को आजाद कराया | यह वह समय है जब गृहमंत्री क्या प्रधानमंत्री को भी हमारे जवानो का गुणगान करना चाहिए, लेकिन क्या सितम है कि चुनावों के समय जुड़कर प्रणाम की मुद्रा में उठ जाने वाले हाथ आज जूते बाँधने के भी काबिल नहीं रहे |
लेकिन जैसा कि हमारे राजनीतिक गलियारों की परम्परा रही है कि, ‘तुम करो तो गलत नहीं फिर हम करें तो क्या परेशानी’ यह संकेत काफी है साबित करने के लिए कि इस घटना के कारणों का भी ऐसा जादुई खाका खींचा जाएगा जो वास्तविकता का पटाक्षेप करने के लिए पर्याप्त होगा | वैसे भी किसी शायर ने ठीक ही फरमाया है,
‘’जिनके आँगन में अमीरी का सजर लगता है,
उनका एब भी जमाने को हुनर लगता है |’’
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