शनिवार, 5 सितंबर 2015

पाकिस्तान की 'बजा' देने वाले 'ऑपरेशन बैंगिल' के 50 साल

'झाड़ देंगे अय्यूब का हिटलरी गुमान
ख़बरदार दुश्मन , दुश्मन सावधान
ऐक्शन में आ गये हैं, लाख लाख जवान।'

1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय नापाक पाकिस्तान के नामुराद सैन्य अधिकारी अय्यूब खान को ललकारते हुए लिखी गई महाकवि नागार्जुन की यह पंक्तियाँ सार्थक हुई जब आज से ठीक 50 साल पहले 6 सितम्बर को भारत ने जबरदस्त पलटवार कर पाकिस्तान को यह अहसास कराया कि उसने भारत को काम आंकने की भारी भूल कर दी है। भारतीय सेना तो अपनी जांबाजी और बहादुरी के लिए विश्व विख्यात है ही, उस समय भारतीय शासन की कमान भी प्रधानमंत्री शब्द को सार्थक करने वाले उस निडर, निर्भीक, नेतृत्व गुणसंपन्न और निर्णय क्षमता से परिपूर्ण नेता के हाथों में थी जिन्होंने पाकिस्तान और विश्व समुदाय को यह सन्देश दिया कि,

'हैं गांधी भी मगर हम हाथ में लाठी भी रखते हैं'

लाल बहादुर शास्त्री के तत्कालीन सचिव सीपी श्रीवास्तव ने अपनी किताब 'अ लाइफ ऑफ़ ट्रुथ पॉलिटिक्स' में लिखा है, ''एक सितम्बर को सुबह जब छंब सेक्टर में पाकिस्तानी टैंकों और तोपों के जबरदस्त हमले ने भारतीय सेना और खुफिया एजेंसियों को अचरज में डाल दिया था उसी दिन रात में करीब 11 बजकर 45 मिनट पर शास्त्री जी अचानक अपनी कुर्सी से उठे और दफ्तर के कमरे में एक छोर से दूसरे छोर तक तेजी से चहलकदमी करने लगे। शास्त्री जी तभी ऐसा करते थे जब उन्हें कोई बड़ा फैसला लेना होता था। मैंने उनको बुदबुदाते सुना...'अब तो कुछ करना ही होगा' अगले दिन और तीन सितम्बर को उन्होंने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई और पाकिस्तान पर हमला करने की योजना को अंतिम रूप दिया।''
पहले तय हुआ कि पाकिस्तान पर हमला 7 सितम्बर को होगा लेकिन फिर पश्चिम क्षेत्र के कमांडर इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंह ने 24 घंटा पहले हमला करने की योजना बनाई। जिसे नाम दिया गया था 'ऑपरेशन बैंगिल' इस हमले ने पाकिस्तान की रीढ़ तोड़कर रख दी।
कई पाकिस्तानी टैंकों को नेस्तनाबूद करने के बाद एक पाकिस्तानी टैंक का शिकार होने से बुरी तरह झुलस गए मेजर भूपेंद्र सिंह जब दिल्ली के बेस हॉस्पिटल में थे और प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री उनसे मिलने गए तो मेजर की आँखों से आंसू निकल आए। शास्त्री जी के यह कहने पर कि 'आप इतनी बहादुर सेना के सिपाही हैं आपकी आँखों पर आंसू शोभा नहीं देते', मेजर भूपेंद्र ने कहा, 'मैं इसलिए नहीं रो रहा कि मुझे दर्द है, मैं इसलिए रो रहा हूँ कि एक सिपाही खड़ा होकर अपने प्रधानमंत्री को सैल्यूट नहीं कर पा रहा है।' पांच फुट के उस सबसे बड़े प्रधानमंत्री और उस युद्ध में शहीद हुए लगभग 3000 हिन्दुस्तानी सैनिकों को इन पंक्तियों के माध्यम से मेरा शत-शत नमन,

'ये तो मातृभूमि के दीवाने हैं जो विजय गीत ही गाते हैं,
दुम दबाकर दुश्मन भागे जब भी ये गुर्राते हैं,
ज़िंदा में भारत के सपूत और मरकर अमर कहलाते हैं,
कहते हैं फिर से बनूँ मातृभूमि का सैनिक हो अगर दुबारा जन्म,
धन्य हो धारा के लाल...तुमको मेरा शत नमन...।