रविवार, 25 अगस्त 2013

खतरे में भारत की धर्मनिरपेक्षता-

कुछ दिन पहले बीबीसी ने पुरी दुनिया में रहने वाले 30 लाख हिंदुओं पर एक सर्वे कराया था कि हिंदुओं का सबसे प्रिय भजन कौन सा है| इस सर्वे से जो परिणाम निकल कर सामने आया, वह करारा जबाब है उन धर्म के ठेकेदारों का जो हिन्दु मुस्लिम एकता के बीच दीवार खड़ी करते हैं| 30 लाख हिंदुओं ने जिन 10 भजनों का चयन किया उनमें से 6 'शकील बदायुनी' के लिखे हुए हैं, और 4 'साहिर लुधियानवी' के लिखे हुए हैं| उन 10 के 10 भजनों में संगीत हैं 'नौशाद साहब' का| उन सभी 10 भजनों को आवाज़ दिया हैं 'रफी साहब' ने| ये 10 भजन 'महबूब अली खान' की फिल्मों में हैं, और इन 10 भजनों पर अभिनय किया हैं 'यूसुफ खान' उर्फ दिलीप कुमार ने| यह जीता जागता उदाहरण हैं भारतीय धर्मनिरपेक्षता और हिंदू-मुस्लिम एकता का|
लेकिन वर्तमान समय में धर्म को राजनीतिक रूप देकर एक खास समुदाय की आस्था के साथ जो सौतेला व्यवहार हो रहा हैं, वह भारत की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल खड़ा कर रहा है| भारतीय संविधान हर समुदाय के साथ समान दृष्टिकोण अपनाने की बात करता है| राम जन्मभूमी अयोध्या से हिंदुओं की एक खास आस्था जुड़ी है| यूपी सरकार का यह कहना एकदम गलत है कि 84 कोसी यात्रा से सांप्रदायिक सद्भाव को खतरा है| सांप्रदायिक सद्भाव को खतरा तो अब पैदा हो सकता हैं जब सरकार साधु-संतो के साथ ज्यादती करने पर उतारू है| जो यात्रा किसी दूसरे समुदाय के विरुद्ध नही हो तो उससे सांप्रदायिक तनाव कैसे पैदा हो सकता है? यह बात समझ से परे है कि जो यूपी सरकार अवैध धार्मिक स्थल की दीवार गिराए जाने को हथियार बनाकर सिर्फ 40 मिनट में आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति का निलंबन कर सकती है तो फिर वह 84 कोसी यात्रा पर प्रतिबंध कैसे लगा सकती है? जो यूपी सरकार करोड़ों लोगो के हुजूम वाले कुंभ मेले का आयोजन कर उसे सुरक्षा प्रदान कर सकती है तो फिर वह 84 कोसी यात्रा को सफल क्यो नही बना सकती?
जो लोग रामजन्मभूमि के इतिहास से वाकिफ हैं उन्हे यह पता होगा कि वर्ष 2003 में हाईकोर्ट के आदेश पर भारतीय पुरातत्व विभाग ने विवादित स्थल पर 12 मार्च 2003 से 7 अगस्त 2003 तक खुदाई की जिसमें एक प्राचीन मंदिर के प्रमाण मिले| 12 सितंबर 2011 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल बाबरी मस्जिद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इस स्थल को राम जन्मभूमि घोषित कर दिया। हाईकोर्ट ने इस मामले में बहुमत से फैसला करते हुए तीन हिस्सों में बाट दिया। विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि मानते हुए इसको हिंदुओं को सौंपे जाने का आदेश दिया गया। एक हिस्से को निर्मोही अखाड़े को देने का आदेश दिया गया। इस हिस्से में सीता रसोई और राम चबूतरा शामिल था।  तीसरे हिस्से को मुस्लिम गुटों को देने का आदेश दिया गया। अदालत का कहना था कि इस भूमि के कुछ टुकड़े पर मुस्लिम नमाज अदा करते रहे हैं लिहाजा यह हिस्सा उनके ही पास रहना चाहिए। 
90 वर्षीय याचिकाकर्ता हाशिम अंसारी ने इस फैसले पर खुशी जताते हुए कहा था कि अब इस फैसले के बाद इस मुद्दे पर सियासत बंद हो जाएगी। लेकिन इन दो समुदायों को राजनीति के नजरिए से देखने वाले लोग यह नही चाहते कि अयोध्या भी हिंदू-मुस्लिम एकता की एक निशानी बने जहाँ एक ओर हिंदू तो दूसरी ओर मुस्लिम एक साथ अपने-अपने वद दिगार से इस देश के सलामती की दुआ माँगें| डॉ कुमार विश्वास जी के शब्दों में,
''दिवाली में अली बसे राम बसे रमजान,
ऐसा होना चाहिए अपना हिंदुस्तान|''
 
 
 

सोमवार, 19 अगस्त 2013

बढ़ते बिहार के विकास में अवरोध का जिम्मेदार कौन-

मिड डे मिल और चापाकल में जहर से नौनिहालो की मौत तथा नवादा और बेतिया के दंगों से झुलसी बिहार की भूमि एक बार फिर खगड़िया के बदलाघाट रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन की चपेट में आने के कारण हुए 37 लोगो कि मौत से रक्तरंजित हो गई है| बिहार की वह पावन धरती 'बोधगया' जहाँ से महात्मा बुद्ध ने ''वशुधैव-कुटुम्बकम'' की अवधारणा प्रुस्तुत भारत को जगत गुरु होने की संज्ञा दिलाई थी, वहाँ आतंकी अपने नाकाम मंसूबों से निर्दोषों का खून बहा कर चले जाते है| वह बिहार जहाँ के बच्चे अपनी प्रतिभा से भारत ही नही वरन्‌ पुरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनाये हुए हैं, वहाँ छोटे-छोटे निर्दोष बच्चे जहरीले भोजन और पानी से तड़प-तड़प के मर रहे हैं|
प्रत्यक्षदर्शीयो के अनुसार इस रेल हादसे का जिम्मेदार चालक हैं जो अगर सीटी बजाते हुए गाड़ी को आगे बढ़ाता तो कई लोगों की जान बच सकती थी। लेकिन उन हादसों का जिम्मेदार कौन हैं जिसके कारण सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे और उनके अभिभावक खौफ में जी रहे है| उन अराजक ताकतों का सरगना कौन है जो नवादा और बेतिया में हिन्दु मुस्लिम भाईचारे के बीच दीवार खड़ा करता है| पिछ्ले 8 सालों से विका के पथ पर अग्रसर बिहार में बीते एक महिने से अराजकता का जो दौर शुरु हुआ है उसका एकमात्र कारण राजनीति का विषाक्त रक्तबीज है| वह राजनीति जिसके लिए सामाजिक भाईचारा कोइ मायने नही रखती, जो वोट पाने के लिए किसी भी हद तक गिरने को तैयार रहते है|
यह वही बिहार है जिसने 1857 के सिपाही विद्रोह में अंग्रेजी शासन की नीव हिलाने वाला ''कुंवर-सिंह'' पैदा किया| बिहार ही वह पावन भूमि है जहाँ से महात्मा गाँधी ने चम्पा यात्रा शुरू करके भारतीय  स्वतंत्रता संग्राम का श्रीगणेश किया| बिहार की ही धरती से कर्पुरी ठाकुर के नेतृत्व में डा. राम मनोहर लोहिया ने सबसे पहले अपनी समाजवादी पार्टी के सिद्धान्तों को जमीन पर उतारने की शुरूआत की थी| यह नही भुला जाना चहिए कि बिहार भारत का वह पहला राज्य है, जहाँ 58% लोग 25 वर्ष से कम आयु के है| यह बिहारियों के ही श्रम का कमाल है कि 'दिल्ली' पुरे विश्व को अपने वैभव से रूबरू करा रहा है| चाहे महाराष्ट्र की प्रगति हो, पंजाब का कृषि विका हो या गुजराती विकास मॉडल, सब बिहारियों के पसीने का ही प्रतिफ है| बिहार में कुछ साल पहले तक कम के आभाव में लोग जीवकोपार्जन के लिए दुसरे राज्यों का रुख करते थे, पर वर्तमान समय में पलायन में कमी आई है| ''नितीश कुमार जी'' के नेतृत्व में बिहार दिन-दुनी रात-चौगुनी प्रगति कर रहा है| लेकिन ये सब घटनाएँ तेजी से बढ़ते बिहार के लिए 'स्पीड ब्रेकर' के समान है
किसी ने कहा है,
''नदी के घाट पर भी गर सियासी लोग बस जा,
तो प्यासे लोग एक एक बूँद पानी को तरस जा,
गनीमत है कि मौसम पर हुकूमत चल नही सकती,
नही तो सारे बादल इनके आँगन में बरस जा|''

केवल वोट के लिए टीया राजनीति पर आमादा नेताओं को अब समझ जाना चाहिए कि भोली-भाली जनता अपने रहनुमाओं की पहचान भाली-भाँति कर सकती है| 24 जून 1947 को पटना से दिल्ली जाते समय ट्रेन में 'महात्मा गांधी' ने कहा था, ''अब हम पूर्ण स्वराज ले लेंगे। परन्तु राजनीतिक स्वतंत्रता कितनी ही कीमती क्यों न हो, तो भी मिली हुई स्वतंत्रता में खुली आंखों से दिखने वाला लोगों का कल्याण न हो, तब तक हमें चैन न लेना चाहिए। अब हमारी समाज-व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिसमें शोषण का बिल्कुल नाश हो जाये। सारा व्यवहार लोकतंत्र के ढंग पर ही चलना चाहिए।'' आज जरूरत इस बात की है कि पटरी पर लौटे बिहार के निरंतर विकास के लिए सतापक्ष और विपक्ष आपस में मिल कर जन कल्याणकारी योजना बनाये जिसका लाभ आम आदमी तक पहुँच सके| और बिहार महात्मा गाँधी के उस सपने को साकार करे जिसे आँखों में लेकर वे चम्पा की धरती से आजादी का बिगुल फूँकें थे|  

बुधवार, 14 अगस्त 2013

आजाद भारत में गुलामी की तस्वीर-

आज हम सब, 200 साल की गुलामी के बाद मिली आजादी की 66 वी वर्षगाँठ मना रहे है| आज फिर वही सब होगा जो पिछ्ले 65 सालों से होता चला रहा है| आज फिर हमारे प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम संबोधन देंगे, आज फिर सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में तिरंगा लहरायेगा, आज फिर हम अपने शहीदों और उनकी कुर्बानीयों को याद कर उनके प्रति श्रद्धांजलि के दो शब्द बोलेंगे| चारों तरफ महात्मा गाँधी जिंदाबाद, सरदार पटेल जिंदाबाद, सुभाष चन्द्र बोस जिंदाबाद के नारों से आकाश गुंजयमान होगा|
पर क्या इतने सब से हम अपने पूर्वजों को सच्ची श्रद्धांजलि दे पा रहे है, जिनकी कुर्बानीयो कि बदौलत आज हम खुली हवा में साँस ले रहे है| आज कल हमारी सरकारें हमे अपनी कथित उपलब्धियों से अवगत कराने के नए नए तरीके ईजाद कर रही है, पर क्या ये जनता को उन समस्याओं से रूबरू करा पा रही है, जिनका समाधान जनता भी हो सकती थी| कवि कुल से सम्बन्ध रखने वाले हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपनी कविता 'स्वतंत्रता कि पुकार' में 15 अगस्त को सही अर्थो में पेश किया है| जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार है-
''15 अगस्त का दिन कहता आजादी अभी अधूरी है,
सपने सच होने बाकी है राखी की शपथ ना पुरी है,
जिनके लाशों पर पग धर कर आजादी भारत में आई,
वे अब तक है खानाबदोश गम की काली बदली छाई|''
सच में क्या आज हम पूर्णतया आजाद है? आज चारों तरफ भारत महान के नारे लगेंगे, पर मुझे कोइ बतायेगा कि भारत महान क्यो है? क्या इसलिए कि आजादी के 66 साल बाद भी हमारे देश में हर 5 मिनट में 1 आदमी भर पेट भोजन मिलने के कारण तड़प के मर जाता है? या इसलिए कि आज भी हमारी 78 फीसदी आबादी 20 रुपये प्रतिदिन पर गुज़ारा करने को विवस है| या इसलिए कि आज भी हमारी माँ बहनों को डर के साये में घर से निकालना पड़ता है| आज जब हमारे देश के दो बड़े पदो पर दो महान अर्थशास्त्री बैठे हुए है तब भी हालत ये है कि किसी समाचारपत्र के संपादक को विवस होकर यह लिखना पड़ता है कि ''कर ना सके हम प्याज का सौदा कीमत ही कुछ ऐसी थी|'' हमारे वे अर्थशास्त्री नेता जो बड़ी और बढ़ती हुइ आबादी को विका के रास्ते कि रुकावट मानते है, उन्हे दुनिया कि सबसे बड़ी आबादी वाले चीन से सीख लेनी चाहिए जो आज भी उस जगह खड़ा है जहाँ अमेरिका भी उस पर उँगली उठने से डरता है| परमाणु बम का प्रकोप सहने के बाद भी जापान अपनी उन्नत तकनीक से विश्व व्यापार पर अपना एकाधिकार कायम किए हुए है| भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ 64 फीसदी लोग 15-62 आयु वर्ग के है जिसे कामकाजी आयुवर्ग माना जाता है| फिर भी हम विक्ष के क्षेत्र में फिसड्डी है क्यों? आँकड़े बताते है कि भारत में हर वर्ष 5 साल से कम उम्र के 10 लाख से अधिक बच्चे इलाज के अभाव में मर जाते है| स्वाभाविक है जो अभिभावक अपने लाड़ले की तन की भूख को तृप्त नही कर सकता उसके लिए बच्चे का इलाज और उसे स्कूल भेजने कि बात सोचना भी बेमानी होगी| महान समाजवादी नेता श्री लोहिया जी ने कहा था, ''प्रधानमंत्री का बेटा हो या राष्ट्रपति कि हो संतान, टाटा या बिड़ला का छौना सबकी शिक्षा एक समान|'' पर आज जब 66 वे स्वतंत्रता दिवस पर सुबह के पहले साक्षात्कार में पीठ पर कचरे का थैला लिए एक छोटे बच्चे को देखते है तो लोहिया जी कि ये बातें सपना ही प्रतीत होती है| यह हालत केवल एक शहर या राज्य विशेष कि नही है, कोहिमा से कांडला और जम्मुकश्मिर से कन्याकुमारी तक पुरे भारत में हम देश के भविष्य कहे जने वाले इन नौनिहलो के इस गर्तोन्मुख गन्तव्य से रूबरू हो सकते है| तो क्या यह आजाद भारत में गुलामी की तस्वीर नही है

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

जनता जबाब चाहती है-



उन दिनो बिहार में सता परिवर्तन की लहर थी, नितीश कुमार, सुशील मोदी और उनके अन्य सहयोगी जहाँ कहीं भी जाते जनता से एक बात जरूर कहते, '15 साल के लालू-राबड़ी शासन को उखाड़ फेंकिये|'
मुझे याद है इसके प्रत्युतर में लालू यादव ने मजाकिया अंदाज़ में कहा था, ''हो हम गाजर मुरई हई कि केहू उखाड़ के फेंक दी|''
लगता है हमारे पड़ोसी देश और दुश्मन अब हमे गाजर मुली समझने लगे है| इनका यह समझना भी गैरवाजिब नही है, हमारे हुक्मरान दिन--दिन इतने निष्क्रिय होते जा रहे है, कि आज हम अपने ही घर में आतंक के साये में जी रहे है| हालत ये हो गई है कि विरले ही कोई दिन ऐसा होता है जब भारत का कोई शहर हाई अलर्ट पर नही हो| शुक्रवार सुबह ख़बर , लश्कर ए तैयबा के संस्थापक और 26/11 के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की निगाहें दिल्ली में आतंकी हमला करवाने पर टिकी हैं| और दिल्ली में हा अलर्ट| आखिर कब तक? कब तक हम हा अलर्ट में जीते रहेंगे?
हमारे प्रधानमंत्री जी को ये बात समझ में क्यो नही आती कि एबटाबाद में घुसकर सामा बिन लादेन को मारने वाला अमेरिका हाफिज़ सईद को मारने में क्यो गुरे कर रहा है जिसपर उसने 10 मिलियन डॉलर का इनाम घोषित कर रखा है| प्रधानमंत्री जी वो समय याद करें जब 1971 में हमारी फौजों को कश्मीर मोर्चे पर आगे बढ़ने से रोकने के लिए अमेरिका अपना सातवाँ जंगी एटमी जहाजी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेज दिया था| अमेरिका भारत कि खुशहाली नही देख सकता| यह बात सबको पता है कि पाकिस्तानी फौज पर अमेरिका का पूरा दबदबा है, क्योकि वह् उसके ही दिए पैसे पर फल-फुल रही है| युपी अध्यक्ष सोनिया गाँधी को भी यह बात समझ में जानी चाहि कि ये देश और जनता की सुरक्षा से जुड़ा मसला है| लिंकन द्वारा दिया हुआ लोकतंत्र का सबसे प्रभावशाली परिभाषा कहता है, ''जनतंत्र जनता का जनता के द्वारा और जनता के लिए शासन है|'' लेकिन विश्व के सबसे बड़े जनतंत्र के जनप्रतिनिधियों द्वारा इस परिभाषा को निरर्थक किया जा रहा है| देश में आम बजट आता है, वितमन्त्री जी कहते है, शिक्षा को इतना, यातायात को इतना, इन सब का जनता हिसाब मांगती है| लेकिन आज तक ऐसा नही हुआ कि मन्त्री जी बोले हो सेना को इतना और किसी ने ये कहा हो हिसाब दो| सुरक्षा के सवाल पर जनता अपने टैक्स का हिसाब नही मांगती पर जब उस सुरक्षा में सेंध दिखेगा तब तो जनता सरकार से जरूर हिसाब मांगेगी| नेताओं को अब यह भूल जाना चाहि कि इस भोली-भाली जनता को मूर्ख बनाकर ये अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे| यह वही जनता है जिसने 1977 में अपनी सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को सता से बेदखल कर मोरारजी देशा को गद्दी सौंप देती है| यह इस जनता कि ताकत है जो 1971 के चुनाव में देश के सबसे बड़े उधोगपतियों जे आर डी टाटा को मुम्बई से और केके बिड़ला को राजस्थान से हरा देती है| चाहे क्रिकेट के मसीहा नवाब पटौदी हो या बिहार में 15 साल तक शासन करने वाले लालू राबड़ी, जो जनता की कसौटी पर खड़ा नही उतरता उसे जनता चुनावो में जनता उसे उसके औकात से अवगत करा देती है| यह वह् जनता है जो अपने पर जा तो सरकार की बाट नही देखती| उतर प्रदेश का पानियारी बाँध इसका उदाहरण है, जिसे लोहिया जी के नेतृत्व में आम जनता ने चंदा इकट्ठा कर के बनाया था| हमारी सरकार को 17 दिसंबर 2012 कि वह् सुबह नही भूलनी चाहिए कि जब अपने बहन-बेटियों के सुरक्षा की बात तो बिना किसी नेतृत्व के लाखों कि संख्या में नौजवान रायसीना हिल पर देश के राष्ट्रपति से जबा माँगने पहुँच गए| हम सालों से सुनते रहे है कि एक संत को देश-दुनिया से कोई मतलब नही होता, वह् भगवद् भजन में ही डूबा रहता है| लेकिन जब मुरारी बापू जैसे संत यह कहते है, 'शरीफ साहब.शराफत दिखाओ, सिंह साहब दहाड़ो, तो हम समझ सकते है कि इस मुद्दे पर देश का हर वर्ग जबा चाहता है|

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

बयानबाजी का नही, सोचने का समय-



''दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक आजादी पर्व मनाएँगे॥
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें॥''
यह सपना है उस महान पुरोधा 'श्री अटल बिहारी वापेयी' जी का जो इस समय लाचार अवस्था में भारत की वर्तमान व्यवस्था पर आँसू बहा रहे होंगे| गिलगित से गारो पर्वत तक अखंड भारत बनाने का सपना था हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री का, पर अफसोस हमारी वर्तमान सरकार अपनी ही भूमि को सुरक्षित रखने में नाकाम साबित हो रही है| दिन फिरंगी हमारे जमीन पर हमे आँख दिखा कर चले जाते है, और हम सिवाय लाचारी से देखने के कुछ नही कर पाते| पुंछ में भारतीय सीमा में घुसकर पांच जवानों को शहीद करने के बाद पाकिस्तानी सेना ने उड़ी सेक्टर में भी मंगलवार रात को भारतीय चौकियों व नागरिक ठिकानों को निशाना बनाया। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री जी ने अब तक पाकिस्तान को जबा देना तो दूर, हीद हुए सैनिकों के परिजनों के लिए सांत्वना के दो शब्द भी नही बोले| शहीदों के शव जब दिल्ली वाअड्डे पर उतरे गए उस समय भारत सरकार का कोइ भी नेता या मन्त्री वहाँ मौजूद नही था| वही हाल बिहार सरकार का भी था, जब बिहार के चारों शहीदों का शव पटना हवाअड्डे पर पहुँचा उस समय वहाँ भी बिहार सरकार का कोई भी मन्त्री मौजूद नही था| आज जब पाकिस्तान को सबक सिखाने और शहीदों के परिजनों को सांत्वना देने का समय है हमारे नेता अपने कामों और अपने बयानों से अपना चरित्र सिद्ध कर रहे हैबिहार सरकार के एक मन्त्री ने तो यहा तक कह दिया कि सेना और पुलिस में तो जवान शहीद होने के लिए ही होते हैं| शायद ये माननीय शहीद की वर्दी और खद्दर में अंतर नही समझ पा रहे है| शहादत पर भी ऐसे बेतुके बयानबाजी करने वाले ये नेता क्यो भूल जाते है कि संसद पर हमले के समय 8 जवानों की शहादत ने भारत की एकता का मान बढ़ाया था| उस समय ये माननीय मेजों के निचे छुपे पड़े थे| शहीद विजय कुमार राय की पत्नी पुष्पा देवी का यह कहना कि ''हमे मुआवजा नही पाकिस्तान से बदला चहियें'' उन हुक्मरानों के उस मानसिकता का करारा जबा है, जिनकी नजर में शहादत की कीमत सिर्फ़ 15-20 लाख रुपये है|

कभी-कभी मन सोचने पर विवस हो जाता है कि क्या यह वही संसद है जिसने भारत को साढ़े 5 फुट का सबसे बड़ा प्रधानमंत्री दिया जिनके समय में भारतीय सेना पाकिस्तान में लाहौर तक पहुँच गई थी| पर अफसोस कुछ अपनों और कुछ परायों की सोंची समझी रणनीति ने पाकिस्तान कि जीती हुइ जमीन वापस करने संबंधी ताकंद समझौतेके लिए रूस बुलाया गया| जब समझौता वार्ता चली तो शास्त्रीजी की एक ही जिद थी कि उन्हें बाकी सब शर्तें मंजूर हैं परन्तु जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाना हरगिज़ मंजूर नहीं। काफी जद्दोजहेद के बाद शास्त्रीजी पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर ताशकन्द समझौते के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करा लिये गये। उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर किये थे कि 'वे हस्ताक्षर जरूर कर रहे हैं पर यह जमीन कोई दूसरा प्रधान मन्त्री ही लौटायेगा, वे नहीं'| पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घण्टे बाद 11 जनवरी, 1966 की रात में ही उनकी मृत्यु हो गयी। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर रहे हमारे सता और विपक्ष को अटल और इंदिरा जी कि उस पारी से सीख लेनी चाहिए, जब इंदिरा जी का समर्थन करते हुए अटल जी ने कहा था ''आप दुर्गा बनाकर शत्रु पर टूट पड़ो हम आपके साथ है|