गुरुवार, 8 अगस्त 2013

बयानबाजी का नही, सोचने का समय-



''दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक आजादी पर्व मनाएँगे॥
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें॥''
यह सपना है उस महान पुरोधा 'श्री अटल बिहारी वापेयी' जी का जो इस समय लाचार अवस्था में भारत की वर्तमान व्यवस्था पर आँसू बहा रहे होंगे| गिलगित से गारो पर्वत तक अखंड भारत बनाने का सपना था हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री का, पर अफसोस हमारी वर्तमान सरकार अपनी ही भूमि को सुरक्षित रखने में नाकाम साबित हो रही है| दिन फिरंगी हमारे जमीन पर हमे आँख दिखा कर चले जाते है, और हम सिवाय लाचारी से देखने के कुछ नही कर पाते| पुंछ में भारतीय सीमा में घुसकर पांच जवानों को शहीद करने के बाद पाकिस्तानी सेना ने उड़ी सेक्टर में भी मंगलवार रात को भारतीय चौकियों व नागरिक ठिकानों को निशाना बनाया। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री जी ने अब तक पाकिस्तान को जबा देना तो दूर, हीद हुए सैनिकों के परिजनों के लिए सांत्वना के दो शब्द भी नही बोले| शहीदों के शव जब दिल्ली वाअड्डे पर उतरे गए उस समय भारत सरकार का कोइ भी नेता या मन्त्री वहाँ मौजूद नही था| वही हाल बिहार सरकार का भी था, जब बिहार के चारों शहीदों का शव पटना हवाअड्डे पर पहुँचा उस समय वहाँ भी बिहार सरकार का कोई भी मन्त्री मौजूद नही था| आज जब पाकिस्तान को सबक सिखाने और शहीदों के परिजनों को सांत्वना देने का समय है हमारे नेता अपने कामों और अपने बयानों से अपना चरित्र सिद्ध कर रहे हैबिहार सरकार के एक मन्त्री ने तो यहा तक कह दिया कि सेना और पुलिस में तो जवान शहीद होने के लिए ही होते हैं| शायद ये माननीय शहीद की वर्दी और खद्दर में अंतर नही समझ पा रहे है| शहादत पर भी ऐसे बेतुके बयानबाजी करने वाले ये नेता क्यो भूल जाते है कि संसद पर हमले के समय 8 जवानों की शहादत ने भारत की एकता का मान बढ़ाया था| उस समय ये माननीय मेजों के निचे छुपे पड़े थे| शहीद विजय कुमार राय की पत्नी पुष्पा देवी का यह कहना कि ''हमे मुआवजा नही पाकिस्तान से बदला चहियें'' उन हुक्मरानों के उस मानसिकता का करारा जबा है, जिनकी नजर में शहादत की कीमत सिर्फ़ 15-20 लाख रुपये है|

कभी-कभी मन सोचने पर विवस हो जाता है कि क्या यह वही संसद है जिसने भारत को साढ़े 5 फुट का सबसे बड़ा प्रधानमंत्री दिया जिनके समय में भारतीय सेना पाकिस्तान में लाहौर तक पहुँच गई थी| पर अफसोस कुछ अपनों और कुछ परायों की सोंची समझी रणनीति ने पाकिस्तान कि जीती हुइ जमीन वापस करने संबंधी ताकंद समझौतेके लिए रूस बुलाया गया| जब समझौता वार्ता चली तो शास्त्रीजी की एक ही जिद थी कि उन्हें बाकी सब शर्तें मंजूर हैं परन्तु जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाना हरगिज़ मंजूर नहीं। काफी जद्दोजहेद के बाद शास्त्रीजी पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर ताशकन्द समझौते के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करा लिये गये। उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर किये थे कि 'वे हस्ताक्षर जरूर कर रहे हैं पर यह जमीन कोई दूसरा प्रधान मन्त्री ही लौटायेगा, वे नहीं'| पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घण्टे बाद 11 जनवरी, 1966 की रात में ही उनकी मृत्यु हो गयी। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर रहे हमारे सता और विपक्ष को अटल और इंदिरा जी कि उस पारी से सीख लेनी चाहिए, जब इंदिरा जी का समर्थन करते हुए अटल जी ने कहा था ''आप दुर्गा बनाकर शत्रु पर टूट पड़ो हम आपके साथ है|

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