सोमवार, 19 अगस्त 2013

बढ़ते बिहार के विकास में अवरोध का जिम्मेदार कौन-

मिड डे मिल और चापाकल में जहर से नौनिहालो की मौत तथा नवादा और बेतिया के दंगों से झुलसी बिहार की भूमि एक बार फिर खगड़िया के बदलाघाट रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन की चपेट में आने के कारण हुए 37 लोगो कि मौत से रक्तरंजित हो गई है| बिहार की वह पावन धरती 'बोधगया' जहाँ से महात्मा बुद्ध ने ''वशुधैव-कुटुम्बकम'' की अवधारणा प्रुस्तुत भारत को जगत गुरु होने की संज्ञा दिलाई थी, वहाँ आतंकी अपने नाकाम मंसूबों से निर्दोषों का खून बहा कर चले जाते है| वह बिहार जहाँ के बच्चे अपनी प्रतिभा से भारत ही नही वरन्‌ पुरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनाये हुए हैं, वहाँ छोटे-छोटे निर्दोष बच्चे जहरीले भोजन और पानी से तड़प-तड़प के मर रहे हैं|
प्रत्यक्षदर्शीयो के अनुसार इस रेल हादसे का जिम्मेदार चालक हैं जो अगर सीटी बजाते हुए गाड़ी को आगे बढ़ाता तो कई लोगों की जान बच सकती थी। लेकिन उन हादसों का जिम्मेदार कौन हैं जिसके कारण सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे और उनके अभिभावक खौफ में जी रहे है| उन अराजक ताकतों का सरगना कौन है जो नवादा और बेतिया में हिन्दु मुस्लिम भाईचारे के बीच दीवार खड़ा करता है| पिछ्ले 8 सालों से विका के पथ पर अग्रसर बिहार में बीते एक महिने से अराजकता का जो दौर शुरु हुआ है उसका एकमात्र कारण राजनीति का विषाक्त रक्तबीज है| वह राजनीति जिसके लिए सामाजिक भाईचारा कोइ मायने नही रखती, जो वोट पाने के लिए किसी भी हद तक गिरने को तैयार रहते है|
यह वही बिहार है जिसने 1857 के सिपाही विद्रोह में अंग्रेजी शासन की नीव हिलाने वाला ''कुंवर-सिंह'' पैदा किया| बिहार ही वह पावन भूमि है जहाँ से महात्मा गाँधी ने चम्पा यात्रा शुरू करके भारतीय  स्वतंत्रता संग्राम का श्रीगणेश किया| बिहार की ही धरती से कर्पुरी ठाकुर के नेतृत्व में डा. राम मनोहर लोहिया ने सबसे पहले अपनी समाजवादी पार्टी के सिद्धान्तों को जमीन पर उतारने की शुरूआत की थी| यह नही भुला जाना चहिए कि बिहार भारत का वह पहला राज्य है, जहाँ 58% लोग 25 वर्ष से कम आयु के है| यह बिहारियों के ही श्रम का कमाल है कि 'दिल्ली' पुरे विश्व को अपने वैभव से रूबरू करा रहा है| चाहे महाराष्ट्र की प्रगति हो, पंजाब का कृषि विका हो या गुजराती विकास मॉडल, सब बिहारियों के पसीने का ही प्रतिफ है| बिहार में कुछ साल पहले तक कम के आभाव में लोग जीवकोपार्जन के लिए दुसरे राज्यों का रुख करते थे, पर वर्तमान समय में पलायन में कमी आई है| ''नितीश कुमार जी'' के नेतृत्व में बिहार दिन-दुनी रात-चौगुनी प्रगति कर रहा है| लेकिन ये सब घटनाएँ तेजी से बढ़ते बिहार के लिए 'स्पीड ब्रेकर' के समान है
किसी ने कहा है,
''नदी के घाट पर भी गर सियासी लोग बस जा,
तो प्यासे लोग एक एक बूँद पानी को तरस जा,
गनीमत है कि मौसम पर हुकूमत चल नही सकती,
नही तो सारे बादल इनके आँगन में बरस जा|''

केवल वोट के लिए टीया राजनीति पर आमादा नेताओं को अब समझ जाना चाहिए कि भोली-भाली जनता अपने रहनुमाओं की पहचान भाली-भाँति कर सकती है| 24 जून 1947 को पटना से दिल्ली जाते समय ट्रेन में 'महात्मा गांधी' ने कहा था, ''अब हम पूर्ण स्वराज ले लेंगे। परन्तु राजनीतिक स्वतंत्रता कितनी ही कीमती क्यों न हो, तो भी मिली हुई स्वतंत्रता में खुली आंखों से दिखने वाला लोगों का कल्याण न हो, तब तक हमें चैन न लेना चाहिए। अब हमारी समाज-व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिसमें शोषण का बिल्कुल नाश हो जाये। सारा व्यवहार लोकतंत्र के ढंग पर ही चलना चाहिए।'' आज जरूरत इस बात की है कि पटरी पर लौटे बिहार के निरंतर विकास के लिए सतापक्ष और विपक्ष आपस में मिल कर जन कल्याणकारी योजना बनाये जिसका लाभ आम आदमी तक पहुँच सके| और बिहार महात्मा गाँधी के उस सपने को साकार करे जिसे आँखों में लेकर वे चम्पा की धरती से आजादी का बिगुल फूँकें थे|  

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