बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

कब रुकेगी गोलियों की गडगडाहट और बुटो की धमक-

''ना बुजुर्गो के ख्वाबो की ताबीर हूँ, ना मै जन्नत सी अब कोई तस्वीर हूँ,
जिसको सदियो से मिलकर के लुटा गया, मै वो उजड़ी हुई एक जागीर हूँ,
हाँ मै कश्मीर हूँ, हाँ मै कश्मीर हूँ, हाँ मै कश्मीर हूँ, हाँ मै कश्मीर हूँ ,
मेरे बच्चे बिलखते रहे भूख से ये हुआ है सियासत की एक चुक से,
रोटिया मांगने पर मिली गोलिया चुप कराया गया इनको बन्दुक से|''
इमरान प्रतापगढ़ी की ये पंक्तिया वर्तमान कश्मीर पर सटीक बैठती है| जहाँ नामुराद पाक की नापाक हरकत और भारतीय हुक्मरानों की चुप्पी ने कश्मीर वाशियों को इस हालत में ला खड़ा किया है कि वे आज अपना घर होते हुए भी विस्थापित की जिन्दगी जीने को मजबूर है| जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री 'उमर अब्दुला'' का यह कहना एकदम सही है कि अब केवल बातचीत से बात नहीं बनेगी, भारत सरकार पाकिस्तान के इस हरकत का जबाब देने का कोई दूसरा विकल्प ढूंढे|
आज दुश्मनों और सैनिको के बुटो तले रौंदे जा रहे कश्मीर की धरती का इतिहास बहुत ही स्वर्णिम रहा है| जिसका उल्लेख कल्हण की रचना राजतरंगिणी में मिलता है| कहा भी जाता है कि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वो कश्मीर है| सबसे पहला कारण और जो सब से बड़ा कारण रहा है कश्मीर की सुन्दरता मे दाग लगाने मे ,वो है आतंकवाद| इन आतंकवादियों के नापाक इरादे और उनके गलत मंसूबो को नाकाम करने के लिए हमारी सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम ने कश्मीर वासियों को उन्हें उनके ही घर में गुलाम बना दिया है| आए दिन कर्फ्यू की मार झेल रही कश्मीरी जनता को लगातार जिस तरह फौजी संगीनों के साये और अपमान में जीना पड़ता है, वह किसी भी कौम के लिए दमघोंटू होगा।
अगर हम इतिहास के आईने से देखे तो यह पाते है की कश्मीर और कश्मीरियों की इस दुर्दशा का बीजारोपण भारत और पाकिस्तान के निर्माण के समय ही हो चूका था| कश्मीर का भारत में विलय ही विषम परिस्थितियों में हुआ था| अंग्रेजो की साजिश नेहरु का अड़ियल रुख और जिन्ना द्वारा सांप्रदायिक राग अलापे जाने के कारण भारत का विभाजन सांप्रदायिक आधार पर किया गया|  उन दिनों कश्मीर एक स्वतन्त्र रियासत हुआ करता था| जो एक मुस्लिम बहुल रियासत था लेकिन वहां का राजा हरी सिंह हिन्दू था| अपने स्वर्णिम इतिहास के साथ कश्मीर उस समय तक साम्प्रदायिकता से मुक्त रहा था| भारत के बटवारे पर हुए समझौते के दस्तावेज के अनुसार रियासतो के राजाओं को दोनो मे से एक राष्ट्र को चुनने का अधिकार था परंतु कश्मीर के महाराजा हरी सिंह अपनी रियासत को स्वतंत्र रखना चाहते थे और उन्होने किसी भी राष्ट्र से जुड़ने से बचना चाहा। लेकिन हरी सिंह का स्वतन्त्र रहने का सपना सपना ही रह गया और रियासत पर पाकिस्तानी सैनिको और पश्तूनो के कबीलाई लड़ाको (जो कि उत्तर पश्चिमी सीमांत राज्य के थे) ने हमला कर दिया। पाकिस्तानी हमले से अपनी सुरक्षा को महाराजा हरी सिंह ने भारत से सैनिक सहायता की अपील की तो भारत ने विलय की शर्त रख दी| इस बार हरी सिंह को विलय के लिए तैयार होना पड़ा| इसप्रकार 1949 में कश्मीर ने सशर्त भारतीय संघ में होना स्वीकार किया। कश्मीर के भारत में शामिल होने पर कश्मीरी जनता के जनमत संग्रह का भी वायदा किया गया था, जिसे कभी निभाया नहीं गया। इसके लिए पंडित नेहरू का तर्क यह था कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1947-48 में पाकिस्तान-समर्थित हमले के बाद यह तय किया गया था कि पाकिस्तान कश्मीर के उत्तर-पश्चिमी हिस्से से अपनी सेनाएँ वापस बुलायेगा और उसके बाद जनमत संग्रह कराया जायेगा। पाकिस्तानी शासकों ने अपना कब्ज़ा छोड़ा नहीं और इसके कारण जनमत संग्रह कराने से भारतीय शासकों ने इनकार कर दिया। लेकिन भारत और पाकिस्तान की क्षेत्रीय महत्तवाकांक्षाओं में पिस गया कश्मीरी अवाम।
80 के दसक में कश्मीर में आतंकवाद अपना पैर पसार चुका था| 1989 से 1991 -92 तक हजारो कश्मीरी नौजवान आतंकवाद और भारतीय राज्य के बीच टकराव की भेंट चढ़ चुके थे| भारत सरकार से कश्मीरियों की अविश्वसनीयता के बल पर ऐसे बहुत से अलगाववादी समूह कश्मीरियों के बीच पैठ बना चुके थे जो आजाद कश्मीर या पाकिस्तान में शामिल होने की ख्वाहिस रखते थे| हत्या, बलात्कार, अपहरण और सेना द्वारा अकल्पनीय दमन की प्रतिक्रिया में हजारो कश्मीरी नौजवान आतंकवाद के रास्ते पर चल निकले| युवा हाथो ने कलम की जगह बन्दुक और गोले बारूद थाम लिए|  इनके दमन को भारत ने कठोर कदम अख्तियार किया| 1989 से भारतीय राज्य ने कश्मीर घाटी में आतंकवाद के विरुध्द बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान शुरू किया और अपनी सैन्य शक्ति के बूते पर 1993 आते-आते आतंकवादी समूहों को काफी हद तक कुचल डाला। लेकिन आतंकवाद को कुचलने के नाम पर कश्मीरी जनता का भी सेना ने भयंकर दमन और उत्पीड़न किया। 1993 में भारत सरकार ने दावा किया कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद और पाकिस्तान से होने वाली घुसपैठ को ख़त्म कर दिया गया है और अब घाटी में एक अनुमान के अनुसार केवल 600 से 1,000 सशस्त्र आतंकवादी मौजूद हैं। इसके बाद 90 का दसक सामान्यतः शांत बिता| नई शताब्दी के पहले दसक के मध्य में कश्मीरी जनता में सैन्य-दमन और अत्याचार के ख़िलाफ सुलग रहे भयंकर असंतोष का फायदा उठाया हुर्रियत कान्फरेंस के नेता सैयद अली शाह गिलानी ने, जो की एक इस्लामी कट्टरपन्थी नेता हैं| इस समय कश्मीर में कोई दुसरी ताकत मौजूद नहीं थी जो भारतीय दमन का विरोध कर सके इसलिए गिलानी को कश्मीरी जनता का अपर समर्थन प्राप्त हुआ| 2004-05 आते-आते इस आन्दोलन ने कश्मीर घाटी में गहरे तक अपनी जड़ें जमा ली थीं। 2009 में अमरनाथ यात्रा के लिए भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ हुए आन्दोलन में इसका प्रमाण भी मिला| अब कश्मीर में भारत विरोधी नारे लागते वे लोग दिखने लगे जिनका सम्बन्ध किसी आतंकी संगठन से नहीं था| वे कश्मीर के आम लोग थे|
आज सारा भारत पकिस्तान की भारत विरोधी कर्मो से दुखी और आक्रोशित हो सकता है लेकिन इस विपदा के भुक्तभोगी उन परिवारों का दर्द कौन समझेगा जिनके सामने कभी कभी ऐसे हालत आते है कि वे महीनो अपने घर की चारदीवारी में कैद रहते हैं| कश्मीर में पिछले डेढ़ दशक में सशस्त्र बलों के हाथों 60,000 कश्मीरी अपनी जान गँवा चुके हैं और 7,000 लापता हैं। इसकी कोई गिनती नहीं कि कितनी औरतों का अपहरण और बलात्कार किया जा चुका है और कितने मासूम अपाहिज हो चुके हैं। भारत सरकार को कश्मीर में ऐसे हालत पैदा करने होंगे जिससे की वहां का हर बच्चा शाह फैजल बन सके|

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

रामेश्वरम के एक छोटे गाँव से निकल कर भारत को परमाणु संपन्न बनाने वाले एक मछुवारे के बेटे 'भारत रत्न' ''अवुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम'' को उनके 82 वे जन्म दिवस पर मै उन्हें तहे दिल से बधाई देता हूँ, जिन्होंने अपने राष्ट्रपत्रित्व काल में भारतीय गणराज्य को एक नई ऊँचाई दी|

''अपने सुकर्मो से जिन्होंने भारत को परमाणु संपन्न किया,
राष्ट्रपति पद पर बैठ भारतीय गणराज्य को धन्य किया,
जन्म दिवस पर करता हूँ मै इस पुरोधा को शत बार नमन,
मिशाईल मैन बनकर जिन्होंने भारत का पताखा बुलंद किया|''

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

जबाब कौन देगा?           
संसद जबाब देगी इसका या संविधान बतलायेगा,
पुलिस तमाशा देख रही इन्हें कौन बचाने आएगा,
अपने ही घर में लोग यहाँ पर जिन्दा जलाए जाते है,
अफ़सोस न्यायालय द्वारा कातिल निर्दोष बताए जाते है|
भारत के लिए हमने गांधी का सपना कहाँ साकार किया,
जब दिन-दहाड़े दबंगों ने दलितों पर अत्याचार किया,
गांधीजी के हरिजन यहाँ दहशत के साये में जीते हैं,
उनके लाडले आज भी बिन बिस्तर भूखे पेट ही सोते हैं,
धर्म के नाम पर आतंकी से दोष हटाये जाते हैं,
अफ़सोस न्यायालय द्वारा कातिल निर्दोष बताए जाते है|
बाबा साहब का एक सपना इनको सशक्त करने का था,
सम्मानित जीवन देकर,इनको बंधन से मुक्त करने का था,
हिंदुस्तान में भी इनको अंग्रेजो के जैसे सताया जायेगा,
भारत के वीर शहीदों को  फिर क्या संदेशा जाएगा,
सारे समाज की गंदगी ढोने के काम इनके सर आते है,
अफ़सोस न्यायालय द्वारा कातिल निर्दोष बताए जाते है|