रविवार, 28 जुलाई 2013

लोकतंत्र की फजीहत-



मैंने कही पढ़ा था किसी भारतीय दार्शनिक ने कहा था कि ''वर्तमान में भारतीय लोकतंत्र जमीन पर लेटी उस कुतिया की तरह है, जिसे कोई भी लात मार सकता है''| वर्तमान में हमारे राजनीतिज्ञों द्वारा देश के आंतरिक मसलों पर जिस तरह कि गंदी बयानबाजी का दौर शुरु हुआ है, जिसका एकमात्र ताल्लुक वोट की राजनीति से है, यह इस बात को और पुख्ता करता है| भारतीय संविधान भारतीय लोकतंत्र का प्राण है, और इसकी अवहेलना इस विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की अवहेलना है| बात चाहे भाजपा सांसद 'चंदन मित्रा' द्वारा 'अमर्त्य सेन' से भारत रत्न वापस लिए जाने के माँग की हो| 65 सांसदों द्वारा अमेरिका को आवेदन लिख कर मोदी को वीज़ा न दिए जाने की माँग हो| उन लोगो कि बात हो जो 12, 5 व 1 रुपये में भर पेट भोजन उपलब्ध होने की बात करते हैं| या युपी भाजपा के एक अध्यक्ष की बात हो जो यह कहते सुने जाते है कि 'पूर्ण बहुमत मिला तो बनेगा भव्य राम मंदिर'|

भारतीय संविधान अपने हर एक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है| हर एक भारतीय नागरिक अपने जन प्रतिनिधियों के बारे में अपने विचार अभिव्यक्त करने को स्वतन्त्र है| यह स्वतंत्रता 'भारत रत्न अमर्त्य सेन' को भी प्राप्त है| धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर अमल करते हुए अगर उन्होंने यह कह दिया कि वे नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनते नही देखना चाहते है, तो क्या ग़लत कह दिया| कौन सा पहाड़ टूट पड़ा? कोई भी आदमी जिसे धर्मनिरपेक्ष भारत में अटूट विश्वास है, जिसके जेहन में आज भी गोधरा और गुजरात की रक्तरंजित तस्वीरे ताजी है, उसका भी विचार अमर्त्य सेन जैसा ही होगा| पर लानत है मोदी का महिमामंडन करने वाले उन भाड़े के टट्टूओ पर, जो इस राज़नीतिक मुद्दे को अमर्त्य सेन की निजी जिन्दगी से जोड़ कर उनके पारिवारिक पहलुओं कि बखिया उधेड़ रहे है|

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, इतिहास गवाह रहा है कि कोई भी राजनीतिक दल हिन्दुत्व या इस्लामिक चोला पहन कर सरकार नही बना सका है| अपने शुरुआती दिनों में हिन्दुत्व का राग अलापने वाले अटल जी और आडवाणी जी को भी समय रहते यह बात समझ में आ गई| यही कारण है कि आडवाणी जी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नही बनाना चाहते| केवल हिन्दुत्व का नारा लगा कर नरेन्द्र मोदी भारतीय मतदाताओं के दिल में अपने लिए जगह नही बना सकते| ये बात आडवाणी जी अच्छी तरह जानते है, इसलिए वे नही चाहते कि जो गलती पिछ्ले दो लोकसभा चुनावो से हो रही है, वह इस बार भी हो| भारतीय संविधान भारत की संपूर्ण जनता के लिए समानता की बात करती है| अतः एक कथित भावी प्रधानमंत्री के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह ख़ुद को एक मुख्यमंत्री की छवी से निकाल कर एक राष्ट्र नेता के रूप में प्रतिस्थापित करे| नरेन्द्र मोदी द्वारा उतराखंड आपदा के समय केवल 15000 गुजरातियों की सहायता करना इस ओर इंगित करता है कि उन्होंने अभी वो कबिलियत नही पाई है जिसके बूते वे 121 करोड़ की आबादी को सुरक्षित रख सकें|

यह भारतीय लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि लगातार चौथी बार त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बने ''मणिक सरकार'' मीडिया की नजरों में नही आते| न ही उनके पास चमचों की बड़ी फौज है, जो चिल्ला-चिल्ला कर लोगों को यह बता सके कि वे भारत के सबसे गरीब मुख्यमंत्री है| और न ही ट्विटर और फेसबुक पर लोगो को यह पता है कि घोटाले कर कर के सामान्य ज्ञान बनाने वाले मुख्यमंत्रियों के देश में एक ऐसा भी मुख्यमंत्री है जो अपना पूरा वेतन अपनी पार्टी को दे देता है और पार्टी उन्हें भरण-पोषण के लिए महज 5000 रुपये हर महिने देती है|

यह उन गरीबो का मजाक नही तो और क्या है कि 67 साल की आजादी में आप भारत की दो तिहाई आबादी को भर पेट भोजन नही करा सके| और आज आपके सांसद 12, 5 व 1 रुपये में भर पेट भोजन उपलब्ध होने की बात कर रहे है| भारत में अगले पांच वर्षों में अमीरों की संख्या 53 फीसदी बढ़ कर 2 लाख 42 हजार हो जाएगी, आँकड़े कुछ भी कहें पर ये भी सच है कि आज भी भारत की 78% आबादी 20 रुपये या उससे कम पर प्रतिदिन गुज़ारा करने को विवश है|

केवल वोट की खातिर हिन्दु-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद का राग अलापने वाले हमारे नेताओं को 'डॉ कुमार विश्वास' की इन पंक्तियों से कुछ सीख लेनी चाहिए|
''गीता का ज्ञान सुने ना सुने, इस धरती का यशगान सुने,
हम शबद तीर सन् सुन ना सके, भारत माँ का जयगान सुने,
परवद दिगार मै तेरे द्वार पर ले पुकार ये कहता हूँ,
चाहे अज़ान ना सुने कान पर जय-जय हिंदुस्तान सुने|