बुधवार, 14 अगस्त 2013

आजाद भारत में गुलामी की तस्वीर-

आज हम सब, 200 साल की गुलामी के बाद मिली आजादी की 66 वी वर्षगाँठ मना रहे है| आज फिर वही सब होगा जो पिछ्ले 65 सालों से होता चला रहा है| आज फिर हमारे प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम संबोधन देंगे, आज फिर सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में तिरंगा लहरायेगा, आज फिर हम अपने शहीदों और उनकी कुर्बानीयों को याद कर उनके प्रति श्रद्धांजलि के दो शब्द बोलेंगे| चारों तरफ महात्मा गाँधी जिंदाबाद, सरदार पटेल जिंदाबाद, सुभाष चन्द्र बोस जिंदाबाद के नारों से आकाश गुंजयमान होगा|
पर क्या इतने सब से हम अपने पूर्वजों को सच्ची श्रद्धांजलि दे पा रहे है, जिनकी कुर्बानीयो कि बदौलत आज हम खुली हवा में साँस ले रहे है| आज कल हमारी सरकारें हमे अपनी कथित उपलब्धियों से अवगत कराने के नए नए तरीके ईजाद कर रही है, पर क्या ये जनता को उन समस्याओं से रूबरू करा पा रही है, जिनका समाधान जनता भी हो सकती थी| कवि कुल से सम्बन्ध रखने वाले हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपनी कविता 'स्वतंत्रता कि पुकार' में 15 अगस्त को सही अर्थो में पेश किया है| जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार है-
''15 अगस्त का दिन कहता आजादी अभी अधूरी है,
सपने सच होने बाकी है राखी की शपथ ना पुरी है,
जिनके लाशों पर पग धर कर आजादी भारत में आई,
वे अब तक है खानाबदोश गम की काली बदली छाई|''
सच में क्या आज हम पूर्णतया आजाद है? आज चारों तरफ भारत महान के नारे लगेंगे, पर मुझे कोइ बतायेगा कि भारत महान क्यो है? क्या इसलिए कि आजादी के 66 साल बाद भी हमारे देश में हर 5 मिनट में 1 आदमी भर पेट भोजन मिलने के कारण तड़प के मर जाता है? या इसलिए कि आज भी हमारी 78 फीसदी आबादी 20 रुपये प्रतिदिन पर गुज़ारा करने को विवस है| या इसलिए कि आज भी हमारी माँ बहनों को डर के साये में घर से निकालना पड़ता है| आज जब हमारे देश के दो बड़े पदो पर दो महान अर्थशास्त्री बैठे हुए है तब भी हालत ये है कि किसी समाचारपत्र के संपादक को विवस होकर यह लिखना पड़ता है कि ''कर ना सके हम प्याज का सौदा कीमत ही कुछ ऐसी थी|'' हमारे वे अर्थशास्त्री नेता जो बड़ी और बढ़ती हुइ आबादी को विका के रास्ते कि रुकावट मानते है, उन्हे दुनिया कि सबसे बड़ी आबादी वाले चीन से सीख लेनी चाहिए जो आज भी उस जगह खड़ा है जहाँ अमेरिका भी उस पर उँगली उठने से डरता है| परमाणु बम का प्रकोप सहने के बाद भी जापान अपनी उन्नत तकनीक से विश्व व्यापार पर अपना एकाधिकार कायम किए हुए है| भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ 64 फीसदी लोग 15-62 आयु वर्ग के है जिसे कामकाजी आयुवर्ग माना जाता है| फिर भी हम विक्ष के क्षेत्र में फिसड्डी है क्यों? आँकड़े बताते है कि भारत में हर वर्ष 5 साल से कम उम्र के 10 लाख से अधिक बच्चे इलाज के अभाव में मर जाते है| स्वाभाविक है जो अभिभावक अपने लाड़ले की तन की भूख को तृप्त नही कर सकता उसके लिए बच्चे का इलाज और उसे स्कूल भेजने कि बात सोचना भी बेमानी होगी| महान समाजवादी नेता श्री लोहिया जी ने कहा था, ''प्रधानमंत्री का बेटा हो या राष्ट्रपति कि हो संतान, टाटा या बिड़ला का छौना सबकी शिक्षा एक समान|'' पर आज जब 66 वे स्वतंत्रता दिवस पर सुबह के पहले साक्षात्कार में पीठ पर कचरे का थैला लिए एक छोटे बच्चे को देखते है तो लोहिया जी कि ये बातें सपना ही प्रतीत होती है| यह हालत केवल एक शहर या राज्य विशेष कि नही है, कोहिमा से कांडला और जम्मुकश्मिर से कन्याकुमारी तक पुरे भारत में हम देश के भविष्य कहे जने वाले इन नौनिहलो के इस गर्तोन्मुख गन्तव्य से रूबरू हो सकते है| तो क्या यह आजाद भारत में गुलामी की तस्वीर नही है

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