मंगलवार, 20 मई 2014

‘नैतिक’ नीतीश का कारगर कदम-

29 अक्तूबर 2013 को एक सभा में नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी की चाय बेचने वाले की छवी के काट में खुद को एक स्वतंत्रता सेनानी और एक वैध का बेटा बताते हुए कहा था कि, ‘’मुझे तो स्टेशन पर चाय बेचने का तजुर्बा नहीं है लेकिन मै भी अपने वैध पिताजी के काम में हाथ बटाते हुए दवा की पुड़िया बनाता था और पुड़िया भी ठीक ठाक बाँध देता था पुड़िया बाँध दे तो फेंकने पर भी खुलेगा नहीं|’’
आज जम्हूरियत के हाथो ठुकराए गए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्थिपा देने के बाद बिहार में हासिए पर पड़े मुसहर समुदाय के ‘जीतन राम मांझी’ को मुख्यमंत्री बना कर बिहार की राजनीति में ऐसा चाल चला है जिसका काट उनके विरोधियो के पास नहीं दिख रहा| बिहार में अपनी राजनीतिक स्थिरता को बनाए रखने का नीतीश कुमार का यह नायाब तरिका यह साबित करता है कि इस इंजीनियरिंग ग्रेजुएट की राजनीतिक पुड़िया खोलना सबके बस की बात नहीं है|
एबीपी के कार्यक्रम ‘7आरसीआर’ में वरिष्ठ पत्रकार ‘सुरेन्द्र किशोर’ जी कहते हैं कि जब नीतीश कुमार ने 1977 में अपना पहला विधनासभा चुनाव हारा तब उन्होंने कहा था मै ‘सता में आउंगा, बाई हुक और बाई क्रुक और सता में आकर अच्छा काम करूंगा|’ 2000 में 7 दिनों तक मुख्यमंत्री बनने के बाद और 1995 में केवल 7 सीट पाकर 2005 में गठबंधन सरकार का मुख्यमंत्री बनने तक का नीतीश का सफ़र बाई हुक और बाई क्रुक वाला ही रहा है| यह कहने वाली बात नहीं है कि ‘लालू-राबड़ी’ के बिहार और नीतीश के बिहार में क्या अन्तर है लेकिन फिर भी 2009 में लोकसभा की 22 सीटें जितने वाली जदयू आखिर क्यों 2014 में 2 सीट पर सिमट गई| राजनीतिक पंडित भले ही इसे भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने या कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार बचाने की घटना से जोड़ें लेकिन यह भी सच है कि विकास के साथ राजनीती करने का नीतीश का फार्मूला बिहार की जनता को रास नहीं आया|
मुझे आज भी याद है 2005 विधानसभा चुनाव के लिए सिकटा (पश्चिम चंपारण का एक छोटा शहर) में प्रचार करने आए नीतीश कुमार ने कहा था, ‘वहीँ पुलिस गोली चलाएगी, वही अफसर काम करेगा, और उसी रजिस्टर में शिकायत लिखी जाएगी|’ अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने अपनी इन बातो पर बखूबी अमल किया| उस समय बिहार में अपराध का ग्राफ भी नीचे गया, हजारो अपराधियों को जेल भेजा गया| लेकिन दुसरे कार्यकाल में ये वह कमाल दिखा पाने में कमयाब नहीं हो पाए जिसकी बिहार की जनता को दरकार थी |
असरफी यादव सिकटा में किराने की दूकान चलाते हैं 2005 के सता परिवर्तन में इन्होने विकास के मुद्दे पर नीतीश का समर्थन किया था लेकिन पिछले दिनों मिले तो एकदम से मोदी रंग में रंगे दिखे कारण बताया कि ‘नितीश ने वोट बंटोरने के लिए बिहार की जनता को बाँट कर रख दिया है| दलित, महादलित, पिछड़ा, अतिपिछड़ा, अत्यंतपिछड़ा जैसे शब्द लालू राज में सुनने को नहीं मिलते थे| ‘अबकी बार मोदी सरकार’, अगले साल फिर से बिहार में लालू को लाएंगे क्योकि उन्हें उनकी गलती का अहसास हो चुका है| नीतीश पर बिहार में शिक्षा को चौपट करने का इल्जाम भी लग रहा है| ‘अखिलेश मिश्र’ टीईटी पास हैं कहते हैं कि, ‘मेरे जैसे लाखो लोग बड़ी-बड़ी डिग्रीया लेकर बेकार बैठे हैं वहीँ स्कुलो में वे शिक्षक पढ़ा रहे हैं जिन्हें ये भी पता नहीं कि जोड़ का चिन्ह बाईं तरफ दिया जाता है या दाईं तरफ|
मजधार में फंसी अपनी राजनीतिक नैया को तो नीतीश ने एक मंझे हुए राजनीतिक खिलाड़ी के तर्ज पर फिर से जाति आधारित कार्ड खेलकर किनारे लगा दिया लेकिन बिहार में ‘जदयू’ की राह आसान नहीं है|

निरंजन कुमार मिश्रा.
विद्यार्थी- स्नातक पत्रकारिता.

9555223221

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