गुरुवार, 5 जून 2014

भाई खुद पर भी तो रहम करो,,,,,



पिछले 10 महीने से यानी अगस्त 2013 से मै डीटीसी की बस नंबर 534 का नियमित यात्री हूँ| चुकी यह बस अपने सफ़र में यमुना नदी पार करती है इसलिए कृष्ण को उनकी बंसी के लिए तट देने वाली इस पावन नदी को हर दिन आधुनिकता की महामारी से जूझते देखता हूँ| विकास की बात करने वाली बिगड़ी व्यवस्था के हाथो बर्बाद होना तो जैसे इस नदी की बदनसीबी बन गयी है| लेकिन आरामपरस्त युवा पीढी जिसे भविष्य के भारत का कर्णधार कहा जा रहा है, वे भी भारत की इस अमूल्य धरोहर का सम्मुल नष्ट करने पर आमादा हैं| यह बात मै यूँ ही नहीं कह रहा हूँ, मेरी आँखे वो हकीकत देखी है कि कैसे आस्था का ढोंग करने वाले बहुरूपिये अपने घर से यमुना तट तक किसी कीमती सामान की तरह गाड़ी की डिक्की में सहेज कर लाए हुए घर के कूड़े को इस नदी में बहा देते हैं| जी हाँ, आप दिल्ली में यमुना पर बने किसी भी सड़क पुल पर चले जाईए खासकर सुबह ऑफिस जाने के समय आपको ऐसे अनगिनत नज़ारे दिख जाएँगे कि लोग कैसे अपने घर के अवशिष्ट को इस भारतीय विरासत को अपवित्र बनाने के काम ला रहे हैं| एक काम और जिसे करना लोग हिन्दू धर्म की रीति समझते हैं, आप सब भी शायद ये करते हों जब तक मै इसके कुफल से अनभिग्य था मै भी किया करता था| यह काम है भगवान् पर चढ़ाए हुए फूलो को सहेज कर नदी में फेंकना भले ही वो सड़ क्यों नहीं गए हों| हद तो तब हो जाते है जब लोग ऐसे सड़े गले फुल नदी में बहाकर उसकी ईह लीला की समाप्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं और फिर हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं| वाह रे ‘आँख के अंधे नाम नयनसुख|’ जो लोग ऐसा करने की सलाह देते हैं या जो इसके कुप्रभाव जानते हुए भी यह सब करते हैं उन अक्ल के अन्धो से मै पूछना चाहूंगा कि यह किस धार्मिक ग्रन्थ में लिखा है कि बेकार फूलो को नदी में ही फेकना चाहिए और अगर कहीं लिखा भी हो तो मै उसकी जगह ‘माखन लाल चतुर्वेदी जी’ द्वारा व्यक्त की गयी पुष्प की अभिलाषा को तरजीह दूंगा कि,
‘’मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमी पर शीश चढाने जिस पथ जावें वीर अनेक|’’
अगर आंकड़ो की बात करें तो वेदों में पवित्र कही गयी इस नदी को अपवित्र बनाने के 57 फीसदी उस पानी का योगदान है जो मॉल मूत्र के रूप में यमुना में गिरता है| साथ ही यह भी गहन चिंतन का विषय है कि लाखो करोड़ रूपये इसकी सफाई के नाम पर बहाए जाने के बाद भी आज स्थिति यह है कि 3296 मिलियन लीटर गंदा पानी हर रोज यमुना में बहाया जाता है|
आज ‘पर्यावरण दिवस’ पर ही सही हमें अपनी इन प्राकृतिक विरासतों की हिफाजत के लिए सोचना चाहिए, नहीं तो सुरसा की भांति मुंह फैलाए खड़ी यह समस्या एक दिन पुरी मानवता को ही अपनी चपेट में ले लेगी लेकिन तब तक बड़ी देर हो चुकी होगी और हम इसका कुप्रभाव सहन करने के सिवा कुछ नहीं कर पाएँगे| इसलिए अपनी ही बर्बादी का सामान तैयार करते समय हमें खुद पर ही रहम करने की आवश्यकता है,,,,,,

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