शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

अवसरवादी नेता


"मिसरी मलाई खईलु भईलु तनबुलंद,
अलगा भईले झारखंड, अब खईह सकरकंद,
अलगा भईले झारखंड,,,,"

बिहार-झारखंड बंटवारे के बाद बिहार के वर्तमान कला संस्कृति मंत्री 'विनय बिहारी' ने यह गीत उसी 'लालु यादव' की पत्नी को इंगित करते हुए लिखा था जिन्होने यह कसम खाई थी कि 'बिहार बंटेगा तो लालु की लाश पर' वैसे ही जैसे बिहार की जनता को सुशासन का सब्जबाग दिखाने वाले अवसरवादी नेता नीतीश कुमार ने यह कहा था कि 'लालु राज यानी जंगल राज' । वैसे कमाल की बात यह है कि नीतीश कुमार को अवसरवादी नेता का टाइटल भी उसी लालु यादव ने दिया था जिन्हे आज नीतीश सीधा आदमी और छोटे भाई नजर आ रहे हैं । वैसे राजनीति मे यह खेल नया नही है । 'येल' डिग्रीधारी 'स्मृति ईरानी' को भी कभी 'मोदी' मे हत्यारे का अक्स नजर आता था । 'चिराग पिता पासवान' जी की तो पुछिए मत, बेटे के लिए विचारो की तिलांजली देना तो कोई ईनसे सीखे । सीखे इनसे कोई सीखे, कि कैसे मौके पर चौका मारा जाता है । वैसे अभी इस महाठगबंधन की सभाओ मे आने वाली भीङ यह बताने के लिए काफी है कि 'रंगा-बिल्ला' (यह मै नही कह रहा, जेपी आंदोलन के बाद बिहार के राजनीतिक गलियारे मे ये दोनों इस नाम से भी जाने जाते थे) की यह जोङी जनता को रास नही आ रही है । एक बार फिर से 'किंकर्तव्यविमुढ' वाले हाल से बेहाल बिहार के लोगों से तो मै यहीं कहुंगा,
"हे भाई बच के, सियारा उहे ह रंग अउर संग बदलले बा ।"

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