मंगलवार, 26 अगस्त 2014

कमंडल को मंडल की ललकार

29 अक्टूबर 2013 को एक सभा में नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी की चाय बेचने वाली छवि के काट में खुद को एक स्वतंत्रता सेनानी और एक वैध को बेटा बताते हुए कहा था कि मुझे तो स्टेशन पर चाय बेचने का तजुर्बा नहीं हैं लेकिन मै भी अपने वैध पिताजी के काम में हाथ बंटाते हुए दवा की पुड़िया बनाता था और पुड़िया भी ऐसा बना देता था कि एक बार बाँध दे तो फिर फेंकने पर भी खुलेगा नहीं | वहीं लालू यादव ने अपने वर्तमान गठबंधन सहयोगी और तत्कालीन प्रतिद्वंदी नीतीश कुमार पर अपने चिर-परिचित अंदाज में पलटवार करते हुए कहा था कि 'हम कवनो गाजर मुरई ना हईं कि केहु उखाड़ के फेंक दी |'
हाल ही में आए बिहार विधानसभा उपचुनाव परिणाम ने 2 दशक बाद फिर से जेपी के इन दो सिपाहियों के पूर्व बयानों की सार्थकता सिद्ध कर दी है | यह भी तय हो गया है कि न ही उस इंजीनियरिंग ग्रेजुएट पूर्व मुख्यमंत्री की पुड़िया खोलना सब के वश की बात है और ना ही कोई बिहार को लालू विहीन कर सकता है |
हाल के लोकसभा चुनाव में जम्हूरियत के हाथो ठुकराए गए नीतीश और लालू की कांग्रेस के साथ गलबहिया अब सीधे तरह से भाजपा को मात देने वाले अंदाज में नजर आने लगी है | कमंडल की आंधी को रोकने के लिए जिस तरह से वी.पी सिंह ने मंडल का सहारा लिया था ठीक उसी तरह से यह महागठबंधन भी अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मोदी लहर को ललकार साबित हो सकता है | लेकिन कुछ अपवादों को छोड़ दें तो इतिहास गवाह है कि भारतीय राजनीति में सेमीफाइनल का परिणाम कभी भी फ़ाइनल में नजर नहीं आया है | इसलिए इस जीत पर महागठबंधन को ज्यादा इतराने की बजाय जनता में और पैठ बनाने का काम करना चाहिए |

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