मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

बेशकीमती हथियार की कीमत-

आज दिल्ली में लोकतंत्र का महापर्व है| तमाम योद्धा मैदान में हैं| कुछ अपने पूर्वज नेताओ के नक्से कदम पर चलकर दारु-शराब और पैसे के बल पर आम जनता को लुभाते दिख रहे हैं, जैसा कि टीवी चैनल दिखा रहे हैं| तो वही इस चुनाव में भारतीय राजनीति का एक बदला हुआ चेहरा भी नजर आ रहा है| आज तक हमने सुचारु रूप से चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग और पुलिस को ही काम करते देखा था लेकिन दिल्ली के इस विधानसभा चुनाव में एक राजनितिक पार्टी भी लोकतंत्र के इस महापर्व को लोकतंत्र के अनुसार आयोजित करने को प्रतिबद्ध दिख रही है| दिल्ली पुलिस भले ही अपना यह काम ठीक ढंग से नहीं निभा पा रही हो (जैसा कि आम आदमी पार्टी के स्टिंग में दिखाया गया है), लेकिन 'आप' अपने वादे कि ''हम राजनीति करने नहीं बल्कि राजनीति को बदलने आये है'' के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्धता दिखाई| कुछ दिनों पहले 'आप' के एक नेता ने कहा था कि चुनाव लेने के परंपरागत तरीके शराब-पैसे के बाँटने वालो की कलई खोलने के लिए उनकी पार्टी ने 2000 खुफिया कैमरो की खरीदारी की है साथ ही उसके लिए 1500 कार्यकर्ताओ को ट्रेनिग दी गई है| अब जबकि 'आप' ने एक बड़ी पार्टी के एक नेता के गुर्गो को खुलेआम शराब बांटते दिखा दिया, 'आप' का यह मुहीम रंग ला रहा है|
वहीं एक निजी चैनल के स्टिंग में 'दिल्ली विधानसभा के स्पीकर रहे 'श्री योगानंद शास्त्री' जी और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री 'साहिब सिंह वर्मा' के बेटे प्रवेश वर्मा.के दफ्तर में और दफ्तर के बाहर उनके गुर्गों को शराब के साथ दिखाया गया है| वहीं दिल्ली विधानसभा के उप सभापति अमरीश सिंह गौतम के दफ्तर को शराब मिलने की वजह से सील किया गया| अब तक तो हम वोट लेने के लिए नेताओ द्वारा शराब और पैसे बाँटने की ही बात सुनते आ रहे थे लेकिन इस बार दिल्ली में एक नेता द्वारा 'आटे के पैकेट' बांटने की भी खबर आई है| कल रात तक चुनाव आयोग और दिल्ली पुलिस ने आचार संहिता का उल्लंघन करने के मामले में 300 से ज्यादा लोगों पर मुकदमा दर्ज कर दिया है, वहीं लगभग डेढ़ सौ लोग कानून की गिरफ्फत में आ चुके हैं| सोचने वाली बात ये है कि इन तमाम गिरफ्तार लोगों में ना कोई प्रत्याशी है और ना ही किसी दल का कोई प्रमुख चेहरा| ये वो लोग हैं जो आजादी के 6 दशक बीत जाने के बाद भी लोकतंत्र का मतलब नहीं समझ सके हैं| जो एक बोतल शराब और कुछ पैसो से उन तमाम क्रान्तिकारियो के सपनो से खिलवाड़ कर रहे हैं जो आजाद भारत का सपना आँखों में सजाए शहीद हो गए| जिह्वा स्वाद और चंद पैसो के लिए अपना जमीर दाव पर लगाने वाले ये लोग राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भारत के लिए उस सपने की बलि दे रहे है जिसे उन्होंने अपने एक भाषण में व्यक्त किया था, ''मेरे सपनो का भारत ऐसा होना चाहिए जिसमे हर व्यक्ति चाहे वह कितना भी गरीब हो चाहे वह कितना भी छोटा हो, अपनी सारी जरुरतो को पूरा कर सके, उसको सारी सुविधाए मिल जाय और वह बिना किसी डर के खुल कर अपनी बात कह सके| आज अगर हम चंद सिक्को के कारण बिक गए तो हमें तैयार रहना चाहिए उस पल के लिए जब हमारे इन बेशकीमती वोटो, जिन्हे हमने कीमतो में उछाल दिया, के द्वारा चुने हुए राजनेता हमारे सपनो को बेचे और हमारे देश को बेचें| क्या आजादी के 67 साल बाद भी जनता इतनी सजग नहीं हुई है कि वह लोकतंत्र में अपने सबसे बड़े हथियार वोट की कीमत समझ सके? पुरे 5 साल तक अपने हक़ के लिए जन प्रतिनिधियो के चक्कर काटने वाली जनता इसी एक दिन अपने मन का भड़ास क्यों नहीं निकाल लेती? क्यों नहीं वो दिखा देती अपनी ताकत उन तथाकथित नेताओ को जो गरीबी को मनःस्थिति समझते हैं और जिनकी नजर में जठराग्न से तड़पते एक पेट की कीमत सिर्फ 1 रूपये 5 रूपये और 12 रूपये होती है|
''गर आपके इस मुल्क में ये हथियार बेहतर चल गया,
याद रखना ऊंची जुल्म की अब सर कभी होगी नहीं,
आज भी गर बिक गए वजह से चंद सिक्को के तुम,
तो ये तय है कि हालत तेरी बेहतर कभी होगी नहीं|''

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