शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

माँ हो गई मैली-


हिमालय की शुद्धता को खुद में समेटे हरिद्वार की भूमी को पवित्र कर कर काशी विश्वनाथ के चरणों के पखारती तीर्थराज प्रयाग की धरती को  संगम से पाप मुक्त करती, महात्माबुद्ध की भूमी पाटलिपुत्र को पावन कर, भारत को सुंदरवन की सौगात सौंप, गंगासागर में जाकर समुद्र के आगोश में समाहित हो जाने वाली 'गंगा' देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है| अतः मानव-समाज सदा ही इनका ऋणी रहा है एवं जन्मदायिनी माता की भाँति इनका सम्मान करता आया है| वेदों में भी कहा गया है:
''देवि सुरेश्वरि भगवति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे|
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्ताम तव पद्कमले||''
अर्थात, ''हे गंगा माँ आप स्वर्ग की पवित्र नदी हैं| तीनो लोकों से मुक्ति दिलाने वाली माँ आप सर्वथा शुद्ध हैं| भगवान शंकर के जटा की शोभा बढ़ाती हे माँ गंगा, मेरे मन को अपने चरणों में विश्राम की अनुमति दो|''

आधुनिकता की इस अंधी दौड़ ने वेदो के कई सूक्तियों की सार्थकता समाप्त कर दी है| शायद यही कटु सत्य उपर्युक्त श्लोक के 'तरलतरंगे' के साथ भी घटित होने वाला है| भारत के लगभग एक-चौथाई भू-क्षेत्र को अपवाहित कर उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था का मेरुदण्ड कहलाने वाली गंगा, तटवर्ती क्षेत्रों के जीवन का आधार गंगा, लगभग 130 लाख किलोवाट की अनुमानित जलविद्युत क्षमता वाली गंगा, कई बड़े शहरों के सूखे कंठ को तृप्त करने वाली गंगा और देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी से 'पल्स ऑफ इंडिया' की उपाधी प्राप्त करने वाली गंगा आज अपनों की बेरुखी के कारण ही 'भारतीय संस्कृति की वाहक' से 'मृत्यु के वाहक' में तब्दील हो रही हैं| आज अपने जल में विभिन्न प्रकार के भयंकर बिमारियों का जीवाणु लेकर बहने वाली गंगा क्या वही गंगा है जिसने राजा सगर के 60000 पुत्रों का उद्धार किया था और जिसके लिए वेदों में कहा गया है,
''तव जलममलं येन निपीतं परमपदं तनु येन गृहीतं,
मातगंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुम न यमः शक्तः|''
अर्थात, ''हे माँ, जो भी आपके पावन जल को ग्रहण करता है, वह निःसंदेह परम धाम को प्राप्त होता है| हे माँ गंगा, यहाँ तक की मृत्यु के देवता यमराज भी आपके भक्तो को कोई हानि नहीं पहुंचा सकते हैं|''
भारतीय सिनेमा सामाजिक वास्तविकता को भली-भांति परदे पर प्रदर्शित करता है| राजकपूर साहब ने सन 1960 में भारतीय संस्कृति की वाहक गंगा की विशेषताओ का बखान करती एक फिल्म बनाई, ''जिस देश में गंगा बहती है|'' लेकिन अगले ढाई दशक में ही लोगो की निजी स्वार्थ सिद्दी ने गंगा को उस स्थिति में ला खड़ा किया कि, गंगा की विषम परिस्थिति पर राजकपूर साहब को 1985 में फिर से एक फिल्म बनानी पडी, ''राम तेरी गंगा मैली|'' पवित्रता की सूचक रही गंगा आज अपवित्रता के उस मुहाने पर खड़ी है कि किसी गीतकार को गंगा रूप में लोगो को संबोधित करना पड़ता है, ''मानो तो मै गंगा माँ हूँ, ना मानो तो बहता पानी|''

वर्षों से मानव-समाज का उद्धार करती चली आ रही गंगा आज अपने स्वयं के उद्धार के लिए निरीह अवस्था में स्वार्थी मनुष्यों का मुँह ताक रही है| 'नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम यानी एनसीआरपी' के हाल में हुए एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि गंगा में इतनी ज्यादा धातुएं और घातक रसायन घुल गए हैं कि इस पानी के संपर्क में रहने वाले लोग कैंसर से पीड़ित होने लगे हैं| शोध के मुताबिक गंगा किनारे रहने वाले लोगों में पित्ताशय, किडनी, भोजन नली, प्रोस्टेट, लीवर, यूरिनरी ब्लैडर और स्किन कैंसर होने का सबसे ज्यादा खतरा है| गंगा के किनारे रहने वाले हर 10 हजार लोगों में 450 पुरुष और एक हजार महिलाएं, पित्त की थैली के कैंसर से पीड़ित हैं| अध्ययन के मुताबिक पित्त की थैली के कैंसर के दूसरे सबसे ज्यादा मरीज भारत में गंगा किनारे बसते हैं|

आज अगर कथित भावी प्रधानमन्त्री 'नरेंद्र मोदी' यह कहते हैं कि गंगा की सफाई के लिए दिल्ली और उत्तर प्रदेश में तख्तापलट की जरुरत है, तो यह उनके सता की राजनीति हो सकती है| मगर सच यह है कि 'गंगा' को उसका खोया वैभव और पवित्रता वापस दिलाने के लिए मनुष्य की मानसिकता में बदलाव की जरुरत है, क्योकि वे कुंठित मानसिकता के लोग ही हैं जो गोमुख से हरिद्वार पहुंचते-पहुंचते गंगा को प्रतिदिन 89 मिलियन लीटर मल-मूत्र ढोने को विवश करते हैं| आज जब पर्यावरण गुणवत्ता निगरानी समूह पीपुल्स लोक विज्ञान संस्थान (पीएसआई, देहरादून) की एक अध्ययन में यह सच्चाई सामने आती है कि “हरिद्वार में मात्र दो नालों 'ललताराव पुल' और 'ज्वालापुर' से 140 लाख लीटर से भी ज्यादा मलजल गंगा में गिरता है|'' हर की पौड़ी के ऊपर स्थित नाला एस-1, गंगा में दिन प्रतिदिन 2.4 मिलियन लीटर कचरा ले जाता है। जिसमें 100 मिलीलीटर में 31.3 लाख फैकल कॉलिफोर्म और 140 मिलीग्राम/लीटर बीओडी होता हैं| तो मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि 1984 में बने 'गंगा एक्शन प्लान' के तहत आज तक लगभग 1400 करोड़ रुपयो का क्या हुआ? "गंगा को प्रदुषण मुक्त" करने के लिए मई 2011 में 'विश्व बैंक' से लिया गया करीब साढ़े चार हज़ार करोड़ का क़र्ज़ भी क्या गंगा में मलजल के साथ ही बह गया?
कहा जाता है, ''जब से जागो तभी सवेरा'' अतः अभी भी समय है भारतीय संस्कृति की इस सबसे बड़ी विरासत को बचाने का, नहीं तो सुरसा की भांती मुह फैलाये खड़ी यह समस्या एक दिन पूरी भारतीय संस्कृति को ही निगल जाएगी|

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