मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

अलविदा 2013

साल 2013 जहाँ हम सबको सियासत और हवस का नंगा नाच दिखाया वहीँ,
इस साल जनता ने अपने लोकतान्त्रिक अधिकार का सार्थक उपयोग किया. साथ ही
और माननीय को 'आम आदमी बनने का दुर्भाग्य और 'आम आदमी को सता सुख प्राप्त हुआ|

एक तरह से यह साल हमारे लिए मिला जुला रहा, आज जब साल 2013 हम सबसे रुखसत हो रहा है|
हमें मिलकर कहना चाहिए,,,,
अलविदा 2013 ,,,,,,

''अलविदा-अलविदा, अलविदा-अलविदा,,,
नए साल के आने की खुशियों में गुम,
भूल गए आप मुझको कहना अलविदा,
अलविदा-अलविदा, अलविदा-अलविदा,,,

वोट बैंक ने मुझको बदनाम किया,
2013 को दंगों का नाम दिया,,,पर
माननीयों को आम आदमी का तगमा दिया
जनता को तख्तो-ताज पे बैठा दिया,,
केदारेश्वर हुए क्यूँ ना जाने खफा,,,
अलविदा-अलविदा, अलविदा-अलविदा,,,

लोग महंगाई की अग्नि में जलते रहे,
नेता 12 5 और 1 रूपये में पेट भरते रहे,
जिनको समझा था हमने कभी रहनुमा,
वो गरीबी को मन का मैल कहते रहे,,,
पर जाने से मेरे तुमको क्या फायदा,
मानसिकता तेरी अब तक बदली नहीं,
अबला की आबरू अब भी लुटती यहाँ,
गुड़िया रो रही देखो अब भी कहीं,
फिर भी कहता रहूँगा यहीं मै सदा
अलविदा-अलविदा, अलविदा-अलविदा,,,''

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें