शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

लोकतंत्र पर भारी स्वार्थ-


30 अक्टूबर को ''अरविन्द केजरीवाल'' द्वारा मुकेश अम्बानी के विरुद्ध किये गए खुलासे के तह में जाने पर हम पाते है, कि विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र में आम आदमी सुरक्षित नहीं रह गया हैअगर हम भारत के वर्तमान राजनीतिकपरिदृश्यो कि बात करें तो इस निष्कर्स पर पहुंचना मुश्किल हो जाता है, कि हमारे निति निर्देशक, हमारे हुक्मरान, हमारी विरासत और हमारी अमूल्य सम्पदा का प्रयोग जनहितार्थ कर रहे है या खुद के स्वार्थहितार्थ| एक प्रजातान्त्रिक देश में जनता का अधिकार केवल वोट देने तक ही सीमित नहीं है, उसे हक है अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने का| हमारे संविधान की प्रस्तावना में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कही गई है| पद्दुचेरी के एक युवक के खिलाफ केस दर्ज कर उसे जेल भेज दिया जाता है, क्योकि उसने ट्विटर पर लिख था ''भारत में रॉबर्ट वाड्रा से ज्यादा अमीर वित् मंत्री जी के बेटे है|'' हमारे नेता रास्ट्रीय प्रतिको का किसी तरह प्रयोग करें कोई बात नहीं, लेकिन एक कार्टूनिस्ट उस पर कार्टून बना देता है, तो वह देशद्रोही है| क्या ये सब हमारे संविधान का अपमान नहीं है? क्या आम जनता ये समझने से महफूज रह सकती है, कि क्यों रिलायंस का लाइसेंस रद्द करने कि बात कहने पर मणिशंकर अय्यर पर गाज गिरी थी, और अब 7000 करोड़ की पेनाल्टी लगाने पर जयप्रकाश रेड्डी को सम्बंधित मंत्रालय से बहार का रास्ता दिखा दिया गया| अन्धो को रोशनी, लंगड़ो को लाठी और बहरो को श्रवण शक्ति से महफूज रखने के आरोपी को मंत्रिमंडल से निष्काषित करने के बजाय और भी ऊँचे ओहदे पर बैठा देना कहा का जनतंत्र है| हमारे हुक्मरान जो यह कहते है, कि ''जनता बोफोर्स कि तरह कोयला घोटाले को भी भूल जाएगी|'' मै उनसे कहना चाहूँगा-
''हमें टू जी भी याद है हमें कोयला भी याद है,
 सब बोफोर्स कि माफिक ही याद है,
 इस भ्रम में मत रहना कि, हम भूले है इसे,
 हमें लोकसभा चुनाव की तारीख भी याद है|''

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