सोमवार, 11 नवंबर 2013

कुछ याद इन्हे भी कर लें-

आज 31 अक्टूबर का दिन भारतीय इतिहास का वह् दिन है जब भारत की ऐतिहासिक भूमि पर उस महान पुरोधा 'सरदार वल्लब भाई पटेल' का प्रादुर्भाव हुआ था जिन्होंने 600 देशी रियासतों को मिलाकर एक गणतंत्र भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई|
दुसरी तरफ़ यह दिन भारत के राजनीतिक इतिहास का वह् काला दिन है जब भारतीय गणराज्य को अपने कार्यकाल में एक नई दिशा देने वाली सिंहनी श्रीमती इंदिरा गाँधी जी की निर्मम हत्या कर दीं गई थी|
आज जब हम इन दो महान नेताओं के भारत के लिए सपने ओर वर्तमान भारत की तुलना करते है तो यह पाते है कि आज भी हम इनके सपनों के भारत से कोसो दूर हैं|
आज जब हमारी 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि चीन के कब्जे में है, अरुणाचल प्रदेश और लद्दक के कुछ क्षेत्रों पर चीन आज भी अपनी नजर गड़ाए बैठा है, चीनी सैनिक हमारे सीमा क्षेत्र में आकर गश्त करते है, पाकिस्तान आज भी अपनी नमुराद हरकतों से बाज़ नही आ रहा है, इस समय हमे भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल की याद आती है जिन्होंने अपने बूते 600 देशी रियासतों का भारत में विलय कराया था| आज सता सूख के लिए किसी भी हद तक गिरने वाले नेताओं को सदर पटेल के जीवन से सिख लेनी चहिए जिन्होंने प्रधानमंत्री पद को तरजीह ना देते हुए आज़ाद भारत के अस्तित्व को तरजीह दी| मैंने 'राजीव दीक्षित' जी के एक भाषण में सुना था, ''आजादी के बाद प्रधानमंत्री पद के चुनाव में सरदार पटेल को बहुमत मिला, लेकिन नेहरू किसी भी कीमत पर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठना चाहते थे| इसके लिए वे महात्मा गाँधी के पास गए और कहा कि अगर मै प्रधानमंत्री नही बना तो काँग्रेस भंग कर दूँगा| चुकी काँग्रेस भंग हो जाती तो अँगरेजों को एक बहाना मिल जाता कि भारत के पास नेतृत्व का अभाव है इसलिए हम भारत को स्वतंत्र नही कर सकते, यह सोच कर गाँधी जी ने नेहरू की बात मान ली और पटेल जी ने गृहमंत्री बनना मुनासिब समझा| 
दूसरी तरफ़ आज हम 'श्रीमती इंदिरा गाँधी जी'' की 29 वी पुण्य तिथि मना रहे  है| लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु के पश्चात जब इन्दिरा गाँधी भारत की प्रधानमंत्री बनी, उस समय भारत सूखे की मार झेल रहा था| लेकिन अपनी कार्य कुशलता और सफल नेतृत्व की बदौलत इन्दिरा जी ने भारत को विकाश के पथ पर ला खड़ा किया| 1980 के आम चुनाव में जब की पुरे भारत में ''कांग्रेस हटाओ देश बचाओ'' का स्लोगन जन-जन का नारा बन चूका था| उस विषम परिस्थिति में इंदिरा जी ''गरीबी हटाओ देश बचाओ'' का नारा देकर पुनः आम-जन के दिल पर काबिज हो गई| पर दुर्भाग्यवश, शायद ''जठराग्नि को आर्थिक सुधारों के पैरो तले रौदा जाना, भारतीय जनता के नसीब में लिखा ही था| एक प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा जी की ''गरीबी हटाओ देश बचाओ'' की आखिरी ख्वाहिस आज 29 साल बाद भी पूरी तरह अधूरी है| आज भी 34 करोड़ 47 लाख भारतीय आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर कर रही है| ये सरकारी आँकड़े है, इनमें वे लोग शामिल नही है जिन्हें आज तक फूटपाथ छोड़कर छपापड़ नसीब नही हुआ| महँगाई से त्रस्त जनता का बुरा हाल किसी से छुपा नही है| खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही है| दुःख होता यह देखकर इंदिरा जी की पार्टी के नेता 1, 5 और 12 रुपये में भरपेट खाना मिलने की बात कर गरीबों का मजाक उड़ा रहे है| उनके पौत्र कहते है गरीबी तो केवल मनः स्थिति है|
हमारी वर्तमान काँग्रेस सरकार 'जन वितरण प्रणाली' का नाम बदलकर 'इंदिरम्मा अन्न योजना' करने पर विचार कर रही है| आम आदमी को महँगाई की आग में जलने को मजबूर करने वाली काँग्रेस नित यूपीए सरकार को यह जानना चहिए कि केवल किसी योजाना का नाम इंदिरा गाँधी के नाम पर रख देने से उन्हें श्रद्धांजलि नही दी सकती| उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन करोड़ों लोगो के मुँह तक निवाला पहुँचाना जो कई-कई दिन भूखे पेट सोने को मजबूर रहते है ओर अंततः एक दिन जठराग्नि की भेंट चढ़ जाते है|

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