मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

सियासत सिनेमा नहीं है साहेब

लोगों की नज़र में सिनेमा की दुनिया हीरो से शुरू होकर हीरो पर ही खत्म हो जाती है। लोग जानते हुए भी नहीं समझना चाहते कि हीरो का हर अगला शब्द और एक्शन निर्देशक के आदेश पर निर्भर करता है। ठीक उसी तरह से, पत्रकारिता और खासकर टीवी पत्रकारिता का दायरा लोगों की नज़र में एंकरों की दुनिया से आगे नहीं बढ़ पाता। दुनिया नहीं जानती कि जिस एंकर को वह सर्वज्ञाता समझ रही है, उसका पूरा ज्ञान सामने के टेलीप्रॉम्प्टर पर होता है और उसका हर अगला वाक्य कान में लगे इयरफोन से आ रही आवाज़ पर निर्भर करता है। वह चाहे हीरो के लिए निर्देशक का आदेश हो, या एंकर के कान में लगे इयरफोन में चैनल के प्रोड्यूशर की आवाज़, दोनों का मूल उद्देश्य दर्शकों की पसंद पर निर्भर करता है। सियासत में ऐसा नहीं होता, लेकिन सिनेमाई अवतार के दीवाने भारतीय समाज को 2014 में एक ऐसा नेता मिला, जो हीरो भी था, एंकर भी और नेता तो था ही, जिसके सिनामाई डायलॉग सदृश सियासी नारों ने गत 10 साल तक मौन रही कांग्रेस का धमाकेदार विकल्प पेश किया। खुद को विकल्प से विजेता बनते देख इस नेता में सर्वशक्तिशाली बनने की चेष्टा हिलोरे लेने लगी और बस यही से सियासी नेता पर सिनेमाई हीरो और पत्रकारीय एंकर की छवि हावी होनी शुरू हुई। फिर तो दर्शकों की तालियों और वाहवाही के लिए कुछ भी बोलने को तैयार इस नेता ने वो भी बोला, जो उसके पद की गरिमा के गर्त से भी नीचे था। इस हीरोइक छवि में देश का पर्याय ढूंढ चुकी जनता ने बाकी उन सभी नेताओं को कूप मंडुप समझ लिया जो न हीरो थे न ही एंकर। इस देश को ऐसा नेता स्वीकार ही नहीं था, जो सोच-सोचकर बोले, जिसके पास लच्छेदार भाषा का अभाव हो, जो वाकपटु न हो। लेकिन कहते हैं न कि 'अति का भला न बरसना', हीरोइक छवि बनाए रखने की कोशिशें जब लक्ष्मण रेखा पार कीं और विरोधी को नीचा दिखाने के शाब्दिक वाण विधवा का मजाक बनाने से भी पीछे नहीं हटे, फिर जनता ने विकल्प तलाशना शुरू किया, जिसकी परिणति आज का परिणाम है। हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों में कांग्रेस का वनवास खत्म करने के बाद, आज प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने खुलकर कहा कि 'इस चुनाव में हमारी लड़ाई भले इनके साथ रही, लेकिन इन तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने जनता के लिए जो काम किया, उसे हमारी सरकार आगे बढ़ाएगी।' आजादी के 7 दशक की प्रगति को ज़ीरो बताकर खुद को भाग्यविधाता साबित करने की हीरोगिरी वाली सियासत के इस दौर में पप्पू सिद्ध किए जा चुके नेता का यह ईमानदार बयान काबिल-ए-तारीफ तो है ही। काश साहेब यह समझ पाते कि सियासत सिनेमा नहीं है...

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