गुरुवार, 5 सितंबर 2013

पाखंडियो के कारण धूमिल होती संत की महता-

भारत के बारे में कहा जाता है,
''बिना वेदाम बिना गीताम बिना रामायाणी कथाम,
बिना कवि कालिदासम भारतम नैव भारत:''
भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही साधु-संतो का महत्वपूर्ण स्थान रहा है| भले ही उनका प्रारंभिक जीवन कैसा भी रहा हो लेकिन एक सन्यासी के तौर पर, एक तपस्वी के तौर पर उन लोगो ने भारतीय संस्कृति को वो शक्तियाँ दी जिनकी बदौलत हमने अपनी जमीन से पुरे विश्व का मार्गदर्शन किया| महर्षि वाल्मीकि जो कभी रत्नाकर नामक भयंकर डाकू हुआ करते थे| एक बार निर्जन वन में उन्होने नारद मुनि को लुटना चाहा, तो नारद मुनि जी ने उन्हे समझाया, कि इस कार्य के फलस्वरुप जो पाप तुम्हें होगा उसका दण्ड भुगतने में तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारा साथ देंगे? अपने घर वालों से इस प्रश्न का नकारात्मक उतर सुन कर रत्नाकर की दश्युकर्म से विरक्ति हो गई| तत्पश्चात नारद जी के समझाने पर वे राम नाम के जप में तल्लीन हो गए| शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि, एक बार महर्षि वाल्मीकि प्रेमालाप में लीन एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि किसी बहेलिये ने नर पक्षी का वध कर दिया, जिसके वियोग में मादा पक्षी विलाप करने लगी| उसके इस करुण विलाप को सुन कर महर्षि की करुणा जाग उठी, और उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ाः
''मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥''
अर्था, 'अरे बहेलिये, तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी|' यहीं से महर्षि को ज्ञान की प्राप्ति हुई जिसके बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य "रामायण" की रचना की|
गोस्वामी तुलसीदास की कथा भी कुछ इसी प्रकार की है| तुलसीदास के बारे में कहा जाता है कि, एकबार आधी रात को वे उफनती यमुना नदी तैरकर अपनी पत्‍‌नी रत्नावली से मिलने उसके मायके पहुँच गए| पति के इस अप्रत्याशित व्यवहार से खीज कर रत्नावली ने उन्हे एक दोहे के माध्यम से शिक्षा दी, उसी दोहे ने उन्हें तुलसीदास बना दिया| वह् दोहा था,
''अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?''
ये वो संत महात्मा थे जिनके जिन्दगी की एक घटना ने उन्हें भगवान के लिए समर्पित कर दिया| पिछ्ले कुछ सालों में बहुत सारे तथाकथित सन्यासियो का उद्भव हुआ, जिन्होंने अपने आप को भगवान का दूत बताकर आम जनमानस की आस्था के साथ खिलवाड़ किया| लेकिन कहा जाता है, ''सच्चाई छूप नही सकती बनावट के वसुलो से|'' इन पाखंडियो के साथ भी ऐसा ही हुआ| ये जहाँ से आए थे वहाँ पहुँच गए है या पहुँचने वाले है| पिछले दिनो टीवी 'निर्मल बाबा' का उदय हुआ, जो अनोखे ढ़ग से लोगों पर कृपा बरसाते थे| ये लोगो की परेशानिया दूर करने के लिए उन्हें गोल्गप्पे और धनिये की चटनी खाने की सलाह देते थे| मैने जब उनके बारे में सुना तो मुझे लगा आयुर्वेद के कोइ डॉक्टर होंगे, लेकिन उनके भक्तों के अनुसार वे बहुत बड़े सिद्ध ज्ञानी महात्मा थे| लेकिन जब सच्चाई सबके सामने आई तो पता चला ये तो निर्मलजीत सिंह नरूला हैं, जो 80 के दसक तक ईंट भट्टा का का काम करते थे| धोखाधड़ी के आरोप में पुरे देश में कई जगहो पर लोगो ने इस 'निर्ल्लज' बाबा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है|
लोगो की आस्था को तक पे रख कर एक लड़की के साथ कुकृत्य करने वाले आशाराम की कहानी भी कुछ ऐसी ही है| अपने को भगवान बताने वाले आशारा कोयला चोर से कथावाचक तक का सफर पूरा कर वर्तमान में सलाखों के पिछे अपने कुकर्मो की सजा भुगत रहे है| भगवान में लोगो की आस्था का गलत फायदा उठा कर एक मज़दूर से आशाराम बापू बनकर इस पाखंडी ने कई लोगो को बेघर कर उनके जमीन पर कब्जा कर लिया| हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक इनके पास 10000 करोड़ रुपये का साम्राज्य है| सन्यासियो को रुपये-पैसे से कोई मतलब नही होता| अगर किसी सन्यासी के पास अपार धन-संपदा है तो वह संत हो ही नही सकता|      

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