एक नौजवान वकील साहब भरी अदालत में जोश-ओ-खरोश के साथ दलीले दे रहे थे | बहस
के बीच ही एक आदमी आकर उनके हाथ में कागज का एक टुकड़ा थमाते हुए कान में कुछ कहा |
वकील साहब कुछ देर ठिठके, लेकिन फिर बहस शुरू कर दी | बहस के बाद जब वे बाहर निकले
तो उनकी आँखों में आंसू थे | सहयोगियों ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उस
कागज के पुर्जे में कैंसर से जूझ रही उनकी पत्नी के मृत्यु की खबर थी | उस समय उस
वकील साहब की उम्र सिर्फ 34 साल थी और आगे की पुरी जिन्दगी उन्हें अकेले काटनी थी
| लेकिन अपने काम के प्रति सदा इमानदार रहने वाले इस वकील ने अपने सुकर्मों की
बदौलत ऐसे ऐसे कीर्तिमान स्थापित किए कि दुनिया आज इन्हें ‘लौहपुरुष' के नाम से
जानती है | ये वही थे जिनकी बदौलत रियासतों में बंटा हिन्दुस्तान अपना आकार पा सका
| जी हाँ ये सरदार वल्लभ भाई पटेल ही थे | एक और घटना है जो यह साबित करती है कि ‘सरदार
पटेल’ कितने बड़े देशभक्त थे | 1934 में स्वतंत्रता आन्दोलन के समय नासिक जेल में
कुछ और साथियों के साथ ‘सरदार पटेल’ बंद थे | वहीँ उनके भाई के मृत्यु की खबर आई |
जेलर ने उनसे सहानुभूति भरे अंदाज में पैरोल देने की अर्जी देने को कहा | तो सरदार
पटेल की ओर से दृढ जवाब मिला, ‘’धन्यवाद, मैं ऐसा नहीं करूंगा | मैं यहाँ
स्वतंत्रता संग्राम के सिलसिले में आया हूँ | युद्ध को ऐसे बीच में छोड़ा नहीं जाता
|
देशवासियों की पीड़ा के आगे अपने निजी गम को भूल जाने वाले ‘सरदार वल्लभ भाई
पटेल’ सच में लौहपुरुष थे | सादगी की ऐसी अनूठी मिशाल शायद आज तक भारतीय राजनीति
ने नहीं देखी | मरने के बाद पटेल के खाते में महज 208 रूपये थे | एकलौती बेटी
मणिबेन की शादी तक नहीं कर पाए और आजीवन अहमदाबाद के किराए के मकान में रहते रहे |
यह भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य है कि सरदार पटेल की शक्सियत, उनकी सादगी और
सियासत की विरासत को उनके तथाकथित उत्तराधिकारी अपना नहीं सके | आज उन्हें अपना
बताने की होड़ में लगे नेता भी जानते हैं कि उनकी गगनचुम्बी मूर्ती बनाना भी जातिगत
राजनीति से प्रेरित है वरना धर्मनिरपेक्षता की धज्जियां उड़ाते बयानों को सुनकर भी
चुप्पी साध लेने की शक्ति ‘सरदार पटेल’ के सच्चे उतराधिकारी में नहीं हो सकती है |
आज इस महान लौह पुरुष की 64 वी पुण्य तिथि पर इनके सपनो के भारत की कल्पना को
बिसारते हुए इस पुरोधा को शत-शत नमन | क्योंकि अगर हम उनके सपनो के भारत और आज के
भारत की तुलना करें तो यह हमारे लिए शर्मिन्दगी की बात होगी | यहाँ तक कि वे हमें
जितनी जमीन सौंप कर गए थे हम तो उसे भी सुरक्षित नहीं रख पाए |
किसी कवि की यह पंक्तियाँ ‘सरदार पटेल’ पर भी चरितार्थ हुई कि, ‘बहुत कठिन है
निष्कलंक रहकर के सब कुछ करना |’ इनके विरोधियों ने इन्हें सांप्रदायिक,
कैपिटलिस्ट और ना जाने क्या-क्या कहा | लेकिन इन तमाम लांछनो से दूर ‘पटेल’ हमेशा
भारत निर्माण में निस्वार्थ भाव से लगे रहे | एक बार अपने भाषण में तो उन्होंने
कहा भी था कि ‘...आज तक ना मेरा कोइ बैंक एकाउंट है ना कोइ जमीन है और ना अपना कोइ
मकान उससे भी आगे जाना पड़े, तो मुकाबला करने को तैयार हूँ | लेकिन हिन्दुस्तान की
बर्बादी में कभी साथ नहीं दूंगा | उससे आप मुझे कहे कैपिटलिस्ट का एजेंट हूँ या
चाहे जो नाम दें...'
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