पिछले अक्टूबर की बात है छठ में घर जा रहा था. रात के लगभग 3 बज रहे
थे अभी कुछ देर पहले ही ट्रेन शाहजहांपुर जंक्सन से खुली थी. छठ के समय वैसे भी बिहार-यूपी
की ओर जाने वाली ट्रेनों ट्रेनों में बहुत भीड़ होती है इसलिए बहुत से लोग इतनी देर
रात भी जगे थे और लाईट भी जल रही थी. मैं ‘अहा जिन्दगी’ के पन्नो में मगन था कि पैरो
पर एक सिपाही जी के डंडे का स्पर्श हुआ, भाई साहब ये टीवी आपकी है ? मेरे साथ एक
भैया की एलईडी टीवी भी थी जिसे मैं अपने साईड अपर वाले सीट की दीवाल से सटा कर रखा
था. उस वर्दीधारी की ओर मुखातिब होते हुए मैं कहा, जी हाँ मेरी ही है कहिए ? इसका
रसीद दिखाईए, रसीद, कैसा रसीद, 2 स्टार वाले उस सब इन्स्पेक्टर साहब के सवालों पर
मैं चौंकते हुए बोला. ये टीवी आप ऐसे नहीं ले जा सकते ये ज्वलनशील होता है इसके गिर
कर टूटने से आग लग सकती है, इसके लिए आपको रसीद कटाना पड़ेगा. एक ही सांस मे कहे गए
उस पुलिस अधिकारी की इस अजीब बात से मैं ज्यादा अचंम्भित नहीं हुआ क्योंकि 10वी तक
केमिस्ट्री मैंने भी पढी थी साथ ही ‘क्या रसीद है और रसीद कटाना पड़ेगा’ तक के उनके
सफ़र का औचित्य भी मैं समझ चुका था.
मेरे पास तो रसीद है नहीं, और कटाऊंगा भी नहीं क्योंकि मैं जानता हूँ
किसी रसीद की जरुरत नाहीं है. अब बोलिए ? पता नहीं मेरी दृढनिश्चयता या ऐसे ही उस
पुलिस अधिकारी ने पूछा करते क्या हैं आप ? जी पढाई, पत्रकारिता की. अच्छा आप इस
सिपीही जी से बात कर लीजिए, इतना कह कर वह पुलिस अधिकारी आगे बढ़ गए. अब आई उनके
सिपाही जी से निबटने की बारी. सर आप रसीद कटाएँगे तो पैसे ज्यादा लग जाएंगे एक काम
कीजिए कुछ ले-देकर मामले को रफा-दफा कीजिए. सिपाही जी के इतना कहते ही मैं भी उनके
ही मोड में आ गया, ‘देखिए रेल के कायदे कानून मैं भी अच्छी तरह से जानता हूँ और
लेना-देना आता नहीं इसलिए जाईए और अपने साहब से कह दीजिए जो करना है कर लें,,,,अच्छा,
आते हैं इतना कह कर सिपाही जी जो निकले अकेले तो दूर अपने साहब के साथ भी दर्शन
नहीं दिए. इन सब के बीच कम्पार्टमेंट के बाकी लोग भी जग गए थे, सबने यही कहा आप
डरे नहीं इसीलिए बच गए वरना ये ऐसे ही डरा धमका कर हजारो वसूल लेते हैं. पूछने पर
इन तथाकथित सुरक्षा कर्मियों ने अपना नाम बताया नहीं था और चूकी वे जैकेट पहने थे
इसलिए उनका नाम भी मैं नहीं पढ़ सका था. हाँ इस घटना का उल्लेख करते हुए मैं ‘आईआरसीटीसी’
को एक मेल किया था जिसका उत्तर तो दूर उसके प्राप्ति की सुचना भी आज तक मुझे नहीं
मिली.
कल ‘प्रभु’ जी आगामी 5 साल से जुड़ी रेलवे की कुण्डली बांचंगे. पूंजीपतियों
के लिए हर विभाग का दरवाजा खोल देने वाली सरकार रेलवे की रफ़्तार को भी पीपीपी के
हवाले करने की दिशा में कदम उठाएगी इसमें तो कोइ संदेह नहीं है लेकिन यात्रियों को
सुरक्षा बलो के भरोसे छोड़ कर सुकून की सांस लेने वाली हमारी सरकार को इस बात पर भी
ध्यान देना चाहिए कि क्या ये सुरक्षा बल सच में सुरक्षा ही कर रहे हैं ?
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