शनिवार, 30 मई 2015

हिन्दी पत्रकारिता के 189 साल.

‘आज दिवस लौ उग चुक्यो मार्तंड उदन्त,
अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अंत’
आर्थिक परेशानियों के कारण ‘उदन्त मार्तंड’ को बंद करने की सुचना के साथ इसके अंतिम अंक में यही लिखा था ‘प. युगल किशोर शुक्ला जी’ ने. आज से 189 साल पहले शुरू हुआ हिन्दी पत्रकारिता का यह पहला पत्र भले ही अस्त हो गया हो लेकिन इसके द्वारा जलाई गयी पत्रकारिता की लौ ने इसके उद्देश्य को फलीभूत करने में अहम् भूमिका निभाई. पर अफ़सोस कि पत्रकारिता ‘उदन्त मार्तंड’ और ‘पण्डित’ जी की विरासत को संभाल नहीं पाई. आज जब लोकतंत्र का यह चौथा खम्भा सरकार और कॉर्पोरेट के हाथो की कठपुतली बन बैठा है तब अकबर इलाहाबादी की यह पंक्तियाँ वास्तविकता से दूर दिखती है कि,
‘खींचो ना कमानों को ना तलवार निकालो,
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अखबार निकालो.’
एक बड़े समाचार पत्र समूह ने जब इमानदारी से यह स्वीकार कर लिया है कि ‘वे विज्ञापन का धंधा करते हैं’ तो फिर यह बताने की जरुरत नहीं है कि हर सुबह हम खबर के साथ विज्ञापन नहीं पढ़ते बल्कि विज्ञापन के साथ खबर पढ़ते हैं. शायद आप नहीं जानते होंगे कि सैकड़ो चैनलों वाले इस देश में सिर्फ तीन समाचार चैनल ऐसे हैं जिनके मालिक पत्रकारिता करते हैं बाकी सब ‘कॉर्पोरेट किंग’ हैं, और हाँ ऐसा नहीं है कि इन तीन चैनलों पर भी विशुद्ध पत्रकारिता होती है. बहुत पीछे जाने की जरुरत नहीं है, अभी दो दिन पहले की बात है बाबा रामदेव के पतंजली योगपीठ में गोली चली, एक व्यक्ति की हत्या हुई, रामदेव के भाई जेल गए उसके बाद भी कई समाचार चैनलों पर इस खबर को उतनी तवज्जो नहीं दी गयी क्योंकि पतंजली योगपीठ का विज्ञापन करोड़ो का होता है. रामदेव जी सरीके किसी और लोकप्रिय व्यक्ति से जुड़ी यह खबर होती तो इसे ब्रेकिंग न्यूज में स्थान मिलता.
पत्रकार आज भी सच दिखाना चाहते हैं, धुप, गर्मी बरसात में खबरों की पड़ताल कर रहा एक संवाददाता चाहता है कि उसकी खबर उसी रूप में पाठको/दर्शकों तक पहुंचे लेकिन पत्रकारिता को संकट सत्ता के उन चाटुकार चैनल मालिकों से है जो सियासत की जी हजुरी कर राज्यसभा का टिकट पाना चाहते हैं, जो कॉर्पोरेट की दलाली कर करोड़पती बनना चाहते हैं.

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