बुधवार, 6 अप्रैल 2016

कश्मीर में छात्रों की पिटाई और मुखर्जी जी के सपने

'अपने देश में मातृभूमि का नारा जहाँ निषेध लगे,
भारत माँ की जय कहने पर जहाँ अपनों को मारा है,
इस अखंड भूमि भारत में बोलो अब हम कैसे कहें
कि दूर हटो ऐ दुनिया वालो हिन्दुस्तान हमारा है...'

मेरी इन चार पंक्तियों से निकला प्रश्न आज भाजपा के 36 वे स्थापना दिवस पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते समय शायद अमित शाह या भाजपा के अन्य नेताओं के ध्यान में नहीं आया होगा क्योंकि हर मौके पर मुखर्जी जी को कश्मीर से जोड़कर 'जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है' के नारे लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी के आलाकमान को यह अहसास होता कि अगर आज श्यामा प्रसाद मुखर्जी होते तो भारत के अभिन्न अंग कश्मीर में भारत माता की जय के नारे लगाने पर छात्रों की हड्डी तोड़े जाने वाली घटना पर उनका रुख क्या होता, तो आज भाजपा मुख्यालय में गर्व के नारों के साथ साथ कुछ समय खुद पर शर्म करने के लिए भी निकाला गया होता क्योंकि मुखर्जी जी ने उसी कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के अपने सपने को पूरा होते देखने के लिए कांग्रेस के मंत्री पद को ठुकरा कर जनसंघ की स्थापना की थी और जीते जी 'एक निशान, एक प्रधान, एक विधान' के लिए लड़ते रहे। अपने हितार्थ ऐसी घटनाओं को असहिष्णुता करार देने वालों और इनकी तुलना आपातकाल से कर के टीवी स्क्रीन ब्लैक करने वालों से मैं नहीं पूछूँगा कि यह असहिष्णुता है या नहीं क्योंकि उनकी थुथुरलोजी वाला लॉजिक सबको पता है। पीडीपी के साथ मिलकर भाजपा के सरकार बनाने पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि सरकार में शामिल होकर ही रीति-निति में बदलाव किया जा सकता है लेकिन सवाल यह है कि केंद्र और कश्मीर में भी एक राष्ट्रवादी सरकार के रहते राष्ट्रवाद की धज्जियां कैसे उड़ सकती है और अपनी मातृभूमि, भारत माँ के जय के नारे लगाने वाले छात्रों पर लाठियां क्यों बरसाई गई?

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