जब इस पंक्ति का अर्थ भी नहीं
समझता था तब से मैं इस धरती का बेटा होने का फर्ज निभा रहा हूँ। आज विश्व
पृथ्वी दिवस पर अचानक ही बचपन की वह तस्वीर आँखों के सामने जीवंत हो गई जब
धान-गेंहू की बुआई और धान की रोपनी शुरू होने से पहले माँ पूजा की थाली में
तमाम सामग्रियाँ रखकर सर पर रखे गमछे के ऊपर रख देती थीं और हम भी घर में
सबसे छोटे होने का फर्ज निभाते हुए अपने उन खेतों की पूजा को निकल पड़ते थे
जिसकी उपज ने आज हमे यहाँ तक पहुंचाया है। बचपन से ही पूजा-पाठ में
गहरी रूचि होने के कारण यह मौका हर बार अपने ही जिम्मे आता था और हम भी
जिम्मेदारी से इसका निर्वहन करते थे और कर भी रहे हैं। मुझे अब भी याद है
जब पहली बार गावा लेने (बुआई से पहले खेत की पूजा) जा रहा था। इस पूजा के
बारे में स्पष्ट निर्देश होता था कि एक बार पूजा की थाली सर पर रख ली गई तो
फिर बोलना नहीं है। माँ ने थाली सर पर रख दी और हम भी घर की चौखट पार कर
गए तभी याद आया कि अरे माँ से ये तो पूछे ही नहीं कि खेत माता से मांगना
क्या है। क्योंकि उससे पहले जब पूजा पाठ समझने लगा था तब एक बार माँ से
पूछा था कि पूजा करते समय भगवान् से क्या मांगते हैं तो उन्होंने भी ऐसे ही
बता दिया था, 'बल-बुद्धि-विद्या'...आज भी ईश्वर के सामने हाथ जोड़कर आँख
बंद करते ही माँ की बताई वही मांगे खुदबखुद मन में आ जाती हैं। खैर, खेत
में पहुँचने तक अपना बालमन इसी उधेड़बुन में था कि ये मांगें तो मंदिरों के
भगवान् के लिए है खेत के भगवान् से कुछ और माँगा जाता होगा। चूँकि बोलने का
आदेश नहीं था इसलिए किसी से पूछ भी नहीं सकते थे। यही सोचते सोचते खेत में
पहुँच गए...अब मन में बिना कोई मांग रखे प्रार्थना तो कर नहीं सकते
थे...तभी नज़र खेत में हल चला रहे हमारे जाना (खेतों में काम करने वाले) सतन
काका पर पड़ी सोचा कि एक बार ऐसे ही खेत माता को प्रणाम कर के सतन काका से
पूछते हैं। धरती माता को भुलियाने के भाव से धीरे से गोड़ लाग के (प्रणाम कर
के) दौड़ गए सतन काका के पास। पूछने पर उन्होंने बताया, 'धरती माता से
कहीअ, 'हे अन्नपूर्णा माता नाया अन्न धरे (रखने) के दी पुरान अन्न खाए के
दी'...आज भी जब गाँव जाने के समय खेतों में जाता हूँ तो सतन काका की बताई
वह मासूम सी मांग याद आ जाती है...और अपनी पारिवारिक विरासत पर गर्व होता
है कि हम उस विरासत से निकले हैं जहाँ इस वसुंधरा पर फसल बोन या रोपने से
पहले नतमस्तक होकर दही हल्दी, चंदन, नैवेद और अक्षत से इसकी पूजा करते
हैं...काश अपनी धरती से यह आत्मीयता और यह प्रेम कंक्रीट के जंगल खड़ा करने
वाले समझ पाते...
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