मंगलवार, 26 सितंबर 2017

जो जस करही वो तस फल चाखा...

इस देश में मुग़ल भी हुए, जिनके महलों की जगह आज खंडहरों ने ले ली है... वे अंग्रेज भी यहीं से अस्त हुए जिनका कभी सूरज नहीं डूबता था... आज़ादी के बाद से कमोबेश 6 दशक तक भारत पर शासन करने वाली कांग्रेस तो भारत को खैरात समझती थी, लेकिन आज हकीकत ये है कि गुजरात में उसके युवराज को सुनने के लिए भाड़े के लोग जुटाने पड़ रहे हैं... बहुत लंबा समय नहीं हुआ जब अजेय माने जाने वाले अटल जी के 'शाइनिंग इंडिया' की हवा निकल गई थी... अपने उरूज पर आप चाहे जो करें, लेकिन उस समय की गई गलती ही आपके कमजोर समय में आपको परास्त करने का कारण बनती है... लेकिन इसमें महत्वपूर्ण बात ये है कि आपको पता चले कि आप जो कर रहे हैं, वो गलत है... वर्तमान सरकार का सबसे दुर्बल पक्ष यही है कि इसके पास ऐसे लोगों की फौज है, जिनमें अंखमुंदे समर्थक ही अधिक हैं... अब देखिए न, सत्ताधारी पार्टी की मातृसंस्था आरएसएस का किसान संगठन तक खस्ताहाल कृषि व्यवस्था और गोते लगाती अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार की कार्यनीति पर सवाल उठा रहा है लेकिन सोशल मीडिया पर सरकार के समर्थकों की नज़र में देश दिन-दूनी, रात-चौगुनी प्रगति कर रहा है... गोरखपुर में बच्चों की मौत मामले की जांच में पता चल गया इसके पीछे का कारण स्वास्थ्य व्यवस्था की नाकामी है, ऑक्सीजन कम्पनी के यहां छापे पड़ गए, बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य निलंबित हो गए, लेकिन तब भी समर्थक आंख मूंद कर इसके लिए पिछली सरकार की खामियों पर दोष मढ़ते रहे... अभी बीएचयू मामले में तो दिख ही रहा है कि कैसे कमिश्नर की रिपोर्ट भी समर्थकों के पल्ले नहीं पड़ रही... रिपोर्ट में सीधे-सीधे विश्वविद्यालय प्रशासन को दोषी माना गया है, लेकिन सरकार समर्थकों की फौज आंदोलनकारी लड़कियों पर लांछन लगाने के बहाने ढूंढ रही है... अच्छा, रगड़ा-झगड़ा भी विपक्षी दलों से हो तो समझ में आता है, पहले एफटीआईआई पुणे, फिर हैदराबाद, जाधवपुर, जेएनयू, और अब बीएचयू, मतलब विपक्ष के निठल्ले होने के कारण सत्ता पक्ष ने लड़कों को अपना प्रतिद्वंदी बना लिया है... डीयू की एक लड़की की सीधी सी बात को सरकार अपनी शासनात्मक चुनौती समझ लेती है और फिर उसकी चारित्रिक कुंडली खंगाली जाने लगती है... एक बात समझ में नहीं आ रही, बीएचयू के वीसी महोदय कल से चैनल-चैनल घूमकर थुथुरलोजी बतिया रहे हैं, फिर भी सत्तापक्ष के सब नेता उनके बचाव में कसीदे पढ़ रहे हैं... माना कि अभी देश में आपके जैसा कोई धुरंधर नहीं है, आपकी सशक्त आवाज़ वैश्विक स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है, इसका मतलब ये तो नहीं कि जो मन में आए वो करें... ये सवा सौ करोड़ लोगों का देश है श्रीमान, इसे चरवाही के पायना से नहीं हांका जा सकता है... और अगर ऐसा करने की कोशिश की जाती है, तो बैल मुड़ी घुमा के कोख में सिंघ घुसेड़ देता है, और किसी गांव वाले से पूछिए कि सिंघ का घाव कितना घातक होता है... इसलिए संभलकर...

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