सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

पटाखा जलाइए, हिन्दू बचाइए, मर जाइए...

ऑफिस पहुंचकर अख़बार पलट रहा था, तो मेल टुडे की कवर स्टोरी पर नज़र पड़ी। ये रिपोर्ट वर्तमान की एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करती है। खबर ये है कि दिल्ली में बढ़ रहे प्रदूषण के कारण दिल्ली पुलिस के खोजी कुत्तों की सूंघने की क्षमता खत्म होती जा रही है, ये उस पुलिस तंत्र के लिए बड़ी चिंता की बात है, जिसका आतंक को मात देने का एक बड़ा हथियार इन कुत्तों की सूंघने वाली क्षमता है। आप सोच सकते हैं कि ये खबर कितनी भयावह स्थिति की ओर इंगित करती है। खैर, अखबार के पन्ने पलट ही रहा था कि दिल्ली में पटाखों की बिक्री बैन करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की ख़बर मिली। प्रदूषण की भयावहता वाली खबर से उपजी चिंता की लकीरें इस खबर को सुनने के बाद कुछ कम हुईं। आप अगर दिल्ली में रहते हों, तो पता होगा कि दिवाली के अगले दिन सुबह सड़कों पर निकलने पर कैसा महसूस होता है। बिन बादल चारो तरफ कोहरा नज़र आता है और ये सिर्फ कोहरा नहीं होता, दिल्ली वासियों को धीरे-धीरे मौत की नींद सुलाने वाला कफ़न होता है। लोग समझते हैं, वे दमा के कारण मर रहे हैं, एलर्जी के कारण मर रहे हैं, हार्ट ब्लॉकेज के कारण मर रहे हैं। लेकिन नहीं, वे प्रदूषण के कारण मरते हैं और इस मौत को वो नहीं समझेंगे, जो हरियाली वाले लॉन से घिरे घर के एसी कमरे में बैठकर अपने आईटी सेल को आदेश देते हैं कि चढ़ा दो इस खबर पर मंदिर-मस्जिद का मुलम्मा, रंग दो इसे हिंदू-मुस्लिम के रंग में और फिर व्हाट्सएप फेसबुक के जरिए इसे हमारे-आपके दिमाग तक पहुंचाया जाता है कि अरे ये जज तो हिन्दू विरोधी है, इसे तो सिर्फ दिवाली में ही पटाखे बैन करने की चिंता होती है, ये तो मुस्लिम त्योहारों पर कुछ भी बैन करने की बात ही नहीं करता।
यही हुआ भी इस खबर के साथ। अभी मेरे मोबाइल में 20 से ज्यादा ऐसे मैसेज-फोटो हैं, जो दिल्ली में पटाखा बैन करने की खबर को हिन्दू विरोधी बता रहे हैं। अभी कुछ देर पहले फ़ेसबुक पर एक लड़के ने मुझे एक ऐसे ही मैसेज में टैग किया है। बेतिया में रहने वाले उस लड़के को शायद आभाष नहीं है कि दिल्ली किस तरह के मौत के आगोश में सांसे ले रही है। वैसे, दिल्ली में रहने वाले भी बहुत से लोग अपनी भावी दशा की चिंता से दूर इसे हिन्दू-मुस्लिम करते हुए लहालोट हुए जा रहे हैं। वैसे इस रेस में सिर्फ अनपढ़-कुपढ़ ही नहीं, बड़े-बड़े बुद्धिमान और विद्वतजन भी शामिल हैं, जिनकी सोच पर सियासत रूपी ओजोन ने पर्दा डाल दिया है। हमारे बेतिया के सांसद हैं, 'डॉ' संजय जायसवाल। 'डॉ' को इन्वर्टेड कॉमा में इसलिए लिखा क्योंकि डॉक्टर जमीन पर ईश्वरीय दूत समझा जाता है, उसपर लोगों की जिंदगी बचाने की नैतिक जिम्मेवारी होती है। हालांकि बतौर सांसद मैं इनके जनहित के कार्यों का मुरीद हूं, लेकिन एक जनप्रतिनिधि केवल सड़क-पुल बनवाने के लिए नहीं होता, उसे जनता के दुःख-दर्द की भी चिंता करनी होती है। इन्हें भी दिल्ली में प्रदूषण की भयावहता की चिंता होनी चाहिए। लेकिन इस मुद्दे पर इनका फेसबुक पोस्ट है- 'मैं 10 वर्षों से पटाखा नहीं उडाया हूं, पर माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशनुसार इस बार जरूर उड़ाऊंगा। दिल्ली में नए साल में ज़ितना चाहिए, उतना प्रदूषण फैलाइए, पर दीपावली में यह बैन है। आप सबों से भी अनुरोध है कि एक पटाखा जरूर जलाएं।' सांसद महोदय, पता नहीं लटीयन की दिल्ली के हरियाली से घिरे अपने फ्लैट से निकलकर बुराड़ी, किराड़ी, करावल नगर, पालम जैसे इलाकों में कितनी बार गए हैं, खबरों की खोज में हमें जाना पड़ता है और हम महसूस करते हैं, दिल्ली की आबोहवा में फैले जहर को। मैंने भी खूब पटाखे जलाए हैं, लेकिन सच कहता हूं, प्रदूषण के कारण होने वाली दिल्ली की दारुण दशा देखने के बाद एक भी पटाखा नहीं छोड़ा। सांसद संजय जी या कोई भी और, अगर आप नहीं मानते सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तो मत मानिए, लेकिन दूसरों को तो इसके लिए मत भड़काई कि वो भी करोड़ों की आबादी के लिए बनाए जा रहे जहर के घूंट में एक एक बूंद का इजाफा करे। अरे महाशय, मार दिए जाएंगे हम आप इन हिन्दू-मुस्लिम मुद्दों में पीसकर। हमारे यहां एक कहावत है, 'रहियें जीव त खइहें घीव...' अगर जिंदा रहे, तो फरिया लेंगे अभी तो मरने से बचने का उपाय सोचिए। अगर ये पूरा पढ़ने के बाद भी कुछ पल्ले नहीं पड़ा, तो ये आंकड़ा रटते जाइए, शायद सामान्य ज्ञान ही दुरस्त हो जाए- दिल्ली में प्रदूषण जनित रोगों के कारण हर दिन औसतन 80 लोग दम तोड़ देते हैं... और पूरे भारत में हर साल 12 लाख से ज्यादा लोगों की मौत दूषित हवा वाले सांस के कारण हो जाती है...

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