रविवार, 30 सितंबर 2018

अगला नंबर आपका है...!

अभिज्ञान शाकुन्तलम में एक दृष्टांत आता है कि जंगल में शिकार करने गए राजा दुष्यंत शकुंतला से मिले और उनके साथ सहवास किया, ये खबर जब माता गौतमी को लगी तो वे शकुंतला के साथ रात्रि के तीसरे पहर में राजा दुष्यंत के यहां पहुंचीं। उन्होंने द्वारपाल से पूछा कि क्या हम राजा से मिल सकते हैं, तो उसका जवाब था- 'अवश्यमेवं, लोकतंत्रस्य सर्वाधिकारः'... अंधेरगर्दी वाली सियासत से निकली बेलगाम सरकार की बर्बर पुलिस के हाथों मारे गए एक आम आदमी की विधवा सत्ता के शीर्ष पर विराजमान 'व्यक्ति' से मिलने की गुहार लगाती रह जाती है, लेकिन चंद किलोमीटर दूर उस पीड़िता के दर पर पहुंचकर अपनी पुलिस की गुंडागर्दी के कबूलनामे के साथ उसके आंसू पोछने के बजाए प्रदेश के मुख्यमंत्री आलाकमान के आदेश का पालन करने सैकड़ों किलोमीटर दूर दिल्ली पहुंच जाते हैं... किसे लोकतंत्र कहें...? आज की सरकारों को, जिनके लिए उनकी प्रजा वोटिंग मशीन का बटन दबाने वाली उंगली भर है, या हजार साल पहले के उस समय को, जब रात्रि के तीसरे पहर में भी प्रजा द्वारा अपने राजा से मिलने के लिए उनके दरवाजे पर दी गई दस्तक का जवाब होता था, 'अवश्य, आप मिल सकते हैं अपने राजा से, यह लोकतंत्र में आपका अधिकार है...' जैसा कि सियासत चाहती है और जैसा कि हर बार होता है, इस बार भी सत्ता की कारगुजारियों पर यह चर्चा हावी हो गई कि मरने वाला हिन्दू था या मुसलमान, सवर्ण या दलित... किसी ने इस मामले को दिल्ली के मुख्यमंत्री के हिन्दू-मुस्लिम एंगल वाले ट्वीट की तरफ मोड़ दिया, तो किसी ने अखिलेश और मायावती की चुप्पी की तरफ... हे भारतवासियों, इन सियासतदानों की चुप्पी या सवाल इनके हर बिरादर भाई के लिए कवच-कुंडल का काम करती है, भुगतने के लिए रह जाते हैं हम और आप... अगर अपने जैसे किसी निर्दोष इंसान की बेहरमी से हुई हत्या भी आपको नहीं झकझोरती तो, नवाज़ देवबंदी की इन पंक्तियों का सुबह-शाम पाठ कीजिए, हो सकता है कि सियासी समर्थन और विरोध के बोझ से दबा जमीर जाग जाए-
'जलते घर को देखने वालों फूस का छप्पर आपका है,
आपके पीछे तेज़ हवा है आगे मुकद्दर आपका है
उसके क़त्ल पे मैं भी चुप था मेरा नम्बर अब आया,
मेरे क़त्ल पे आप भी चुप हैं अगला नंबर आपका है...'

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