बुधवार, 19 जून 2013

बुरे दौर में विरासत-


पिछ्ले 17 जून को झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई कि पुण्यतिथि थी| 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास 'कोटा-की-सराय' में अंग्रे़जी सैनिकों से लड़ते हुए लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुई| परन्तु मरते दम तक डलहौजी कि राज्य हड़प नीति का विरोध करती रही| ब्रिटिश जनरल 'ह्यूरोज़' ने लड़ाई कि रिपोर्ट में टिप्पणी की थी कि, रानी लक्ष्मीबाई अपनी "सुंदरता, चालाकी और दृढ़ता के लिए उल्लेखनीय" और विद्रोही नेताओं में सबसे खतरना थीं। आज भारत में महिलाओं के सुरक्षा कि दृष्टि से सबसे बूरा दौर चल रहा है| स्थिति यह है, कि भारत के किसी भी समाचारपत्र का कोई भी संस्करण ऐसा नहीं होता है, जिसमें 'महिलाओं कि आबरू से खिलवाड़' की खबरें ना होइस परिस्थिति में लक्ष्मीबाई के सबल पहलुओं का परिचय लड़कियों से कराया जाना चाहिए| आज पुरे भारत में लड़कियों को सबल बनने के लिए स्कूलों में जुडो-कराटे का प्रशिक्षण दिया जा रहा है| उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें कई तरह के कार्यक्रम चला रही है| शहरों में चौराहों पर नुक्कड़ नाटक कर के महिलाओं को आत्म-सुरक्षा के उपाय सिखाये जा रहें है| लेकिन फिर भी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है| जो औरत बुढ़ापे पे एक आस लगाये रहतीं थी कि हमारी बहु आयेगी जो बुढ़ापे का हारा बनेगी, वो आज सास के नाम से बदनाम है| जिस लड़की को बचपन से ही माता-पिता यह शिक्षा देते थे कि हम तो जन्म देने वाले माता-पिता है, तुम्हे जिस माता-पिता के बुढ़ापे का लाठी बनना है वो तुम्हे शादी के बाद मिलेंगे, वो लड़की आज सास-ससुर का नाम सुनकर डर जाती है| ये सब घटनाये इंगित कर रही है कि जिस संस्कृति की बदौलत हम सारी दुनिया में पहचाने गए, वो आज कठिन दौर से गुजर रही है| कहीं इसका कारण उन टीवी धरावाहीको में तो नहीं छुपा है, जिसमे आज तक सास-बहु को माँ-बेटी से प्रेरित कर के दिखाया ही नहीं गया, जिसमे हमारे बड़े खिलाड़ी और अभिनेता तीन मिनट में लड़की पटाने का दाव सीखते हैं| कारण कोई भी हो हमे इसका त्वरित निदान ढूँढना होगा, नहीं तो हमारी सबसे पुरानी विरासत हमसे छीन जायेगी|


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें