मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

क्रिकेट के कोहिनूर को भारत रत्न का तगमा-

'मै खेलेगा, मै खेलेगा', यही शब्द थे उस जख्मी युवा के जो अपने पहले ही अंतराष्ट्रीय मैच में पकिस्तान के तेज गेंदबाज 'वकार युनुस' की कहर बरपाती गेंद का शिकार हुआ था| नाक से खून की अविरल धारा फुट पडी थी लेकिन दिल में अरमान था क्रिकेट के क्षितिज पर छा जाने का| लड़के ने अब तक जिंदगी की 16 मोमबत्तियां ही बुझाई थी लेकिन आँखों में सपना था क्रिकेट के इतिहास में अमर हो जाने का| शायद 'रमेश तेंदुलकर' को यह पता नहीं था कि उनका बेटा लोकप्रियता के मामले में उस हस्ती को भी पीछे छोड़ देगा जिस महान संगीतकार 'सचिन देव वर्मन' के नाम पर उन्होंने अपने लाडले का नामकरण किया था|
कहते हैं न कि 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात|' यहीं सूक्ति उस महान खिलाड़ी पर चरितार्थ होती है| अपनी काबिलियत के बल तमाम बल्लेबाजी रिकॉर्ड को बौना साबित करने वाले पांच फुट पांच इंच के उस खिलाडी ने 1988 में स्कूल के एक हॅरिस शील्ड मैच में 664 रन की भागीदारी, जिसमे उसने  320 रन बनाए थे कि बदौलत 15 साल की उम्र में ही क्रिकेट जगत में अपनी अविस्मरणीय उपस्थिति का सन्देश दे दिया था| तब से लेकर वेस्टइंडीज के खिलाफ पिछले वर्ष 200वां टेस्ट मैच खेलकर अपने 24 साल लंबे क्रिकेट करियर को अलविदा कहने वाले इस विश्व के महान क्रिकेटर ने रिकार्डों का जो ईमारत खड़ा कर दिया है उसे ढाहना शायद ही किसी के वश की बात होगी| क्योकिं ये केवल आंकड़ो के रिकार्ड नहीं है ये रिकार्ड है हर उस काम का जिसे पूरा करने वाले ने उसे उसी हाल में छोड़ दिया क्योकि मैदान में बल्ला लेकर सचिन उतर चुका था, यह रिकार्ड है उन हाथों का जिसने सचिन के हर चौके-छक्के के बाद अपनी हथेलियाँ लाल की है, यह रिकार्ड है उस बंद होती टेलीविजन स्क्रीन का जिसको सचिन के आउट होते ही यह मान लेना पड़ा कि अब खेल खतमं हो चुका है, और सबसे बढ़ कर यह रिकार्ड है लाखों आँखों से टपके उन करोड़ो-अरबो बूंद आंसुओं का जो इसलिए बरसीं क्योकि अब 22 गज की पट्टी से 24 साल के ऐतिहासिक क्रिकेट का पटाक्षेप हो चुका था| क्रिकेट के इतिहास ने ही नहीं वरन माँ वसुंधरा ने ऐसा ऐतिहासिक विदाई कभी नहीं देखा था| मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने भरी आंखों से टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहा। इस मौके पर स्टेडियम में मौजूद लोगों की आंखें भी नम थी। जैसे ही टीम इंडिया के कप्तान महेन्द्रसिंह धोनी और विराट कोहली ने सचिन को कंधे पर उठाया। पूरा स्टेडियम शोर में डूब गया। यह संस्कारों की ही ताकत है कि अपने सामर्थ्य के बूते समृद्धि की चोटी पर विराजमान सचिन ने अपने अंतिम मैच में उन सभी का जिक्र किया जिनकी बदौलत दुनिया ने इन्हे सर आँखों पर बिठाया| सचिन ने सबसे पहले अपने पिता को याद किया जिनसे बिछुड़ते वक्त वे आशीर्वाद भी नहीं ले सके थे, लेकिन बकौल सचिन कभी ना ख़त्म होने वाला वो आशीर्वाद हमेशा इनके साथ रहता है जो इनके पिता ने 11 साल की उम्र में इन्हे  इस आजादी के साथ दी कि ये अपने सपने पूरे कर सकें| फिर सचिन ने जन्मदायिनी माता के साथ साथ अपने परिजनो और गुरु रमाकांत आचरेकर को याद किया|
जिस जनता को सचिन ने अपने क्रीड़ा शक्ति के माध्यम से पल-पल हिन्दुस्तानी होने पर गर्व महसूस कराया, उस जनता के द्वारा चुनी गयी सरकार ने भी सचिन को ससमय भारत के सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार से सम्मानित करने का एलान किया|
4 फरवरी का दिन भारत ही नहीं वरन विश्व इतिहास में अमर हो गया जब भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति पहले भारतीय खिलाड़ी और अब तक के सबसे कम उम्र के व्यक्ति 'खेलरत्न सचिन तेंदुलकर' को भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ''भारत रत्न'' प्रदान कर रहे थे| उस पल शायद हर माँ ने ईश्वर से अपने लिए सचिन जैसे बेटे की प्रार्थना की हो जब उन्होंने  कहा कि 'भारत रत्न' सिर्फ मेरी मां के लिए नहीं है, बल्कि भारत की लाखों माताओं के लिए हैं जो अपने बच्चों के लिए कई कुर्बानियां देती हैं। इसीलिए मैं यह देश की उन तमाम माओं को समर्पित करना चाहूंगा।' क्रिकेट के क्षेत्र में इस महान खिलाड़ी के उपलब्धियों का बखान सूर्य को दिया दिखाने जैसा है| लेकिन फिर भी मै उनके लिए इतना ही कहूंगा-
''रिकार्डों का बादशाह है जो और क्रिकेट का भगवान है,
देश हित को रखे सर्वोपरि सचिन भारत की शान है|''

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