शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

जनता जाए तो जाए कहाँ-

वर्त्तमान समय में जब भारतीय गणतंत्र रूपी रथ के सारथी के चयन को लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज उठी है, जनता यह तय नहीं कर पा रही है कि वह इस रथ का सारथी किसे चुने| उसे जो रथ का पहिया तक निकाल कर नीलाम कर देता है, उसे जो सवार को उतार कर उसके ऊपर ही रथ चढ़ा देता है या उसको जो बीच रास्ते में दौड़ते रथ से कूद जाता है| आजादी के बाद हमारे पूर्वजो ने लोकतंत्र इसलिए अपनाया था ताकि जनप्रतिनिधि जनता से सीधे तौर पर जुड़े रहें लेकिन राजनीतिक धुरंधरो ने सता की बिसात पर ऐसा चाल चला कि सबने मिलकर एक समय मुकर्र कर दिया जनता के दरवाजे पर दस्तक देने का| वह समय फिर से आ चुका है जब कोइ रहनुमा रहजनों के दरवाजे तक जाने की जहमत उठाता है और खुद को उसका सच्चा हितैसी साबित करने की पुरजोर कोशिश करता है| यही वह समय है जब हमारे माननीय जनता के दुःख से इतने दुखी हो जाते हैं कि मखमल के गद्दो से ना उतरने वाले पैर नुकीले पत्थरो वाले टूटी सड़को पर चलने से भी गुरेज नहीं करते|
आज देश के सबसे बड़े सियासी घराने की जमीन पर जनता 'युवराज बनाम कविराज' में कन्फ्यूज है| कविराज का यह जुमला अमेठी की जनता के दिल को छू जा जाता है जब वे कहते हैं कि ''राजमाता की रायबरेली और राजकुमार की अमेठी को जोड़ रही 60 किमी लम्बी सड़क को यदि राहुल गांधी अपनी कार से 5 घंटे में पार कर के दिखा दें तो वे अमेठी और राजनीति दोनों छोड़ देंगे|'' यह सोचने वाली बात भी है कि आजादी के लगभग 7 दसक बीत जाने के बाद भी आप गाँवो के भारत को उन सडको की सौगात देने में कामयाब नहीं हुए जो बैलगाड़ी और बोलेरो की रफ़्तार में अंतर स्पष्ट कर सके| लेकिन इस बार विकास के मुद्दे पर वोट दे कर सड़क स्वास्थ्य और समाज में समानता जैसे सुराज का सपना देखनी वाली उन युवा आँखों का नजरिया उस समय बदल जाता है जब देश का सबसे कामयाब कुंवारा उन आँखों में झांक कर खुद को उसका अपना बताने की काशिश करता है| वो युवा आँखे अतीत के आईने में झाँकने को विवस हो जाती है कि यह हमारा अपना कैसे हुआ जो उस समय भी नजर नहीं आया जब सड़क के गड्ढो में फंसी बैलगाड़ी को धक्का देना था, यह उस समय भी नजर नहीं आया जब समय पर कर्ज ना चुका पाने के कारण दरवाजे पर खड़े होकर महाजन गलियां बक रहा था, और यह उस समय भी शोक व्यक्त करने के लिए जुड़े मजमे में वो यह चेहरा नजर नहीं आया जब बीमार माँ इलाज के अभाव में दम तोड़ दी|
आज जनता सच में ठगा महसूस कर रही है जब खुद को दलितो का सच्चा हितैसी बताने वाले लोग उसी कांड की बरसी पर उस पार्टी का दमन थाम लेते हैं जिसके नेता को दागदार करार, वे नेता तोड़े थे| वंशवाद की राजनीति के खात्मे को जुमले पढ़ने वाले लोग किस विवसता का शिकार हो जाते हैं कि उन्हें हिंदुस्तान में सिर्फ एक ही खानदान का वंशवाद नजर आता है, लेकिन 'बॉलीवुड रिटर्न' वो युवराज नजर नहीं जिनकी 'मार्किट वैल्यू' बढ़ाने के लिए मिलावट का सहारा लिया जा रहा है|

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