शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

काम नहीं आएँगे आयातित जुमले-

कल गुजरात के बारडोली में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कांग्रेस के खेवैया राहुल गांधी जी ने नरेंद्र मोदी के गुजरात विकास के दावे को झुठलाने का असफल प्रयास करते हुए कहा कि ''हम गरीबी को मिटाने की बात करते हैं वो गरीबो को मिटाने की बात करते हैं|'' ये अलग बात है कि यह जुमला पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी के भाषण से आयातित है| लेकिन यह जुमला राहुल गांधी पर फिट नहीं बैठता| लगता है शहजादे की स्मरण शक्ति कमजोर है, युवराज यह भूल गए कि उन्होंने ही कुछ समय पहले इलाहाबाद में कहा था कि गरीबी एक मानसिक अवस्था है।

राहुल बाबा, इस देश की जनता सब समझती है कि कौन गरीबी हटाने की बात करता है और कौन गरीबो को हटाने की? राजनीतिक हलकों में सब लोग इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि कांग्रेस की निति और रणनीति आपके द्वारा ही तय की जाती है| वो सिर्फ आप हैं जो भारतीय आलाकमान के फैसले को धत्ता बताते हुए एक अध्यादेश की कॉपी फाड़ने की हैसियत रखते हैं, वो सिर्फ आप हैं जिनके नेतृत्व में वो शख्स काम करना चाहता है जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक वैश्विक पहचान दी, और पिछले 10 सालों से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज है| आज केवल बयानबाजी कर के खुद को गरीबो का हितैसी बताने वाले राहुल गांधी सही अर्थों में गरीबों के हितैसी तब होते जब उन्होंने अपनी पार्टी के उन नेताओ से जबाब तलब किया होता जिन लोगों ने 1 , 5 और 12 रूपये में पेट भरने की बात का कर गरीबों की भूख का मजाक उड़ाया था| गरीबों की भूख का अंदाजा केवल एक दिन कैमरे के सामने बैठकर दलित की झोपड़ी में खाना खा कर नहीं लगाया जा सकता, जठरागन क्या होती है वो तो उस गरीब से पूछिए जो सुबह से कटोरा लेकर किसी मंदिर या गुरूद्वारे के सामने शाम के भंडारे के इन्तजार में बैठा है| आप को तो वंशानुगत अधिकार मिला है कभी भी किसी चुनाव के समय किसी दलित की झोपड़ी में घुस जाने का लेकिन बेहतर होता कि आपके तुगलक लेन स्थित आवास में एक दरवाजा उस दलित के लिए भी होता जहाँ आकर वह अपनी वेदना आपको सुना सके| सुरक्षा कवच से घिरी रांची की सड़को पर केवल केवल हाथ हिला कर अभिवादन कर देने भर से आप जनता के दिलों पर काबिज नहीं हो सकते हैं, इसके लिए आपको उन सपनों को साकार करने की दिशा में काम करना होगा जिन्हे आपने उन गरीबों के आँखों में सजाया है| अपनी मेहनत के बूते अपने भोजन का स्तर सुधारने वाले एक गरीब को बहुत तकलीफ होती है जब हार्वर्ड विश्वविद्यालय से क़ानूनी शिक्षा प्राप्त लेकिन जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ एक बड़े मंत्री कपिल सिब्बल खुद और अपनी सरकार के कारनामो पर पर्दा डालने के लिए यह कहते हैं कि देश के गरीब अब दाल के साथ सब्जी भी खाने लगे हैं जिससे महंगाई बढ़ गई है। किसी भी देश में आर्थिक असमानता को दूर करने की दिशा में काम करने की पहली जिम्मेदारी वित् मंत्री की होती है लेकिन भारत में यह कैसे सम्भव है जब एक वित् मंत्री ही यह कहे कि ''लोग 15 रुपये की पानी की बोतल तो खरीद ही लेते हैं लेकिन अगर अनाज की कीमत में एक रुपये बढ़ा दिया जाता है तो लोगों को समस्या आने लगती है।'' अरे चिदंबरम साहब वातानुकूलित कार, बंगले और कार्यालय में बैठकर आप एक गरीब की मेहनत का अंदाजा नहीं लगा सकते| हर साल कई लोग अनाज के अभाव में जठरागन की भेंट चढ़ जाते हैं लेकिन कोइ भी माननीय संसद में इसके लिए आवाज नहीं उठाता, कोइ नहीं कहता कि यह उस संसद का अपमान है जहाँ बैठकर हम इसलिए काम करते हैं कि एक गरीब को दो जून की रोटी और एक सुखद जीवन व्यतीत करने वाला समाज मिले| लेकिन जब महंगाई और भ्रष्टाचार से तंग आकर कोई युवक हमारे कृषि मंत्री को तमाचा जड़ देता है तो इसे लोकतंत्र और संसद पर हमले का नाम दिया जाता है| यह घटना निंदनीय है लेकिन उतना नहीं जितना राजनेताओ ने इसे बना दिया| इस घटना को अपनी पंक्तियों में पिरोने वाले उस कवी की इन पंक्तियों का मै समर्थन करता हूँ जो अभी वंशवाद की बेल को उखाड़ फेंकने के लिए अमेठी की गलियों में घूम रहा है-
''हम से पूछो उठाए हैं कितने सितम,
जिंदगी से चले मौत तक आ गए,
एक हम हैं जो दुःख दर्द सहते रहें,
आप थप्पड़ लगा और घबरा गए|''

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